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बदइंतजामी से बदरंग हो गई शहर की सूरत, नहीं मिली प्रदूषण से मुक्ति

वादों की अहमियत और पाने की जिद में अधूरी रह गई कसक। शहर को प्रदूषण से मिले मुक्ति चालू हो पताही हवाई अड्डा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 13 Apr 2019 05:25 PM (IST)Updated: Sat, 13 Apr 2019 05:25 PM (IST)
बदइंतजामी से बदरंग हो गई शहर की सूरत, नहीं मिली प्रदूषण से मुक्ति
बदइंतजामी से बदरंग हो गई शहर की सूरत, नहीं मिली प्रदूषण से मुक्ति

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मुजफ्फरपुर का नाम जेहन में आते ही एक ऐसे क्षेत्र की तस्वीर सामने आती है, जिसने अपनी धरोहरों और मिजाज को बरसों से संभाल रखा है। मगर बदलते वक्त के साथ उपेक्षा भारी पडऩे लगी है। उत्तर बिहार की जीवनदायिनी कही जाने वाली बूढ़ी गंडक नदी अपने नाम के अनुरूप बूढ़ी हो गई है। लटकते तारों का जाल, टूटी सड़कें और फुटपाथ, खराब हालात में सार्वजनिक शौचालय, बजबजाती नालियां, पानी की समस्या, अतिक्रमण की जद में फुटपाथ और वाहनों के भारी दबाव में जाम से कराहती सड़क इस शहर की पहचान बनती जा रही। न जन प्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर गया और न ही किसी राजनीतिक दल ने अपने एजेंडे में शामिल किया।

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 एलएस कॉलेज के ऑडिटोरियम में दैनिक जागरण की ओर से आयोजित 'चुनावी चौपालÓ में ये बातें शुक्रवार को उभरकर सामने आईं।

इन्होंने रखे अपने-अपने विचार 

जिला नियोजन पदाधिकारी शंभूनाथ सुधाकर, डा. विनय शंकर राय, डॉ. त्रिपदा भारती, डॉ. शैल कुमारी, डॉ. अर्चना ठाकुर, डॉ. नवेश कुमार, नंद किशोर यादव, डॉ.ललित किशोर, डॉ.सतीश कुमार, अजय कुमार चौधरी, डॉ.ऋतुराज कुमार, शिवदीपक शर्मा, छात्र नेता ठाकुर प्रिंस, आलोक कुमार सिंह, सुनील कुमार, धीरज कुमार, रितेश कुमार, चैतन्य कुमार, रवि कुमार सिंह, कन्हैया कुमार, आशुतोष कुमार, शेखर मिश्रा, सूरज तिवारी, रवि सिंह, निशांत सिंह।

बूढ़ी हो गई गंडक नदी, संरक्षण का नहीं हुआ प्रयास

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. पंकज कुमार राय कहते हैं कि उत्तर बिहार की जीवनदायिनी कही जाने वाली बूढ़ी गंडक नदी अपने नाम के अनुरूप बूढ़ी हो गई है। कलकल करती धारा का रंग बदरंग हो चुका है। नदी को प्रदूषित होने से रोकने की कोई व्यवस्था सरजमीं पर नहीं दिखती। न सिर्फ नदी की गहराई घट रही बल्कि इसका पानी जहरीला हो रहा।

चौपाल में उभरीं ये बातें....

-शहर अब स्मार्ट सिटी की ओर बढ़ तो रहा है, मगर स्मार्टनेस का सपना कब साकार होगा पता नहीं।

-आज तक पताही हवाई अड्डा नहीं चालू हो पाया। एक भी अंतरराष्ट्रीय स्तर का संस्था जैसे कॉलेज, अस्पताल नहीं खुल पाया।

-महिलाओं को पचास फीसद आरक्षण मिले। सुरक्षा भी मिले, ताकि बेखौफ बाहर आ जा सकें।

-85 एकड़ जमीन लंगट बाबू एलएस कॉलेज को देकर गए हैं, मगर इसकी सुध लेने वाला कोई नहीं।

 एलएस कॉलेज प्राचार्य प्रो. ओमप्रकाश राय ने कहा कि शैक्षणिक विकास हो। शहर को प्रदूषण से मुक्ति मिले। बेरोजगारी दूर करने के लिए रोजी-रोजगार के साधन उपलब्ध हों। एलएस कॉलेज हेरिटेज कॉलेज में शुमार है। इसको विश्व पटल पर लाने का प्रयास हो।

 बीआरएबीयू भूगोल विभाग एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. रामप्रवेश यादव ने कहा कि उत्तर बिहार में बाढ़ से होने वाली तबाही पर नियंत्रण और पानी का उपयोग सिंचाई की खातिर करने के लिए एक विस्तृत परियोजना भी बनी मगर वह धरातल पर नहीं उतर पाई। 


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