इस आदिवासी इलाके की बेटियां ज्ञान की गठरी भारी करने के साथ-साथ बड़ा कर रहीं बचत की पोटली
Beti Bank पश्चिम चंपारण में बचत की आदत बढ़ाने को छात्राएं चला रहीं बेटी बैंक। ।कस्तूरबा बालिका विद्यालय भितिहरवा में तीन साल से संचालित। अध्यक्ष से लेकर कैशियर तक छात्राएं।
पश्चिम चंपारण, [सुनील आनंद] । शिक्षा पाने के साथ बेटियां बचत के प्रति जागरूक हों। कुछ ऐसी ही सोच के साथ तीन साल पहले 'बेटी बैंक' की शुरुआत की गई थी। गौनाहा प्रखंड के भितिहरवा स्थित कस्तूरबा बालिका विद्यालय में संचालित इस बैंक में अभी 52 हजार रुपये जमा हैं। अध्यक्ष से लेकर कोषाध्यक्ष तक का काम छात्राएं संभालती हैं। कोरोना के चलते कई माह से स्कूल बंद है। इसके बाद भी बैंक का काम सुचारु है।
थारू-आदिवासी बहुल इलाके में संचालित कस्तूरबा बालिका विद्यालय में छह गांवों की 400 बच्चियां पढ़ती हैं। यहां वर्ष 2017 में बेटी बैंक की स्थापना की गई थी। इसकी अध्यक्ष आठवीं की निक्की कुमारी, सचिव 10वीं की अनिशा कुमारी, कोषाध्यक्ष नौवीं की पुनीता कुमारी के अलावा दो छात्राएं सदस्य हैं। 200 छात्राओं का इसमें खाता है। उन्हें पासबुक भी दी गई है।
कोरोना काल में जमा हुए आठ हजार
कोरोना के चलते कई माह से स्कूल बंद है। इस कारण विद्यालय के पोषक क्षेत्र कहरगड्डी गांव में कक्षा सात की निशा, भितिहरवा में 10वीं की खुशी, श्रीरामपुर में नौवीं की लक्ष्मीना कुमारी, माधोपुर में 11वीं की अंजली और टिकुलटोला में आठवीं की रानी कुमारी को बैंक की प्रतिनिधि के रूप में तैनात किया गया है। जिस छात्रा को रुपये जमा करना होता है, वह उन्हें दे देती है। इसके लिए बैंक का संचालन प्रत्येक शनिवार को डेढ़ घंटे हो रहा। इस दौरान आठ हजार रुपये भी जमा हुए हैं।
सिर्फ पढ़ाई की जरूरत के लिए निकाल सकतीं पैसा
बैंक की अध्यक्ष छात्रा निक्की कुमारी ने बताया कि एक बार में कम से कम 10 और अधिकतम 50 रुपये जमा करने का प्रावधान है। जरूरत पर जमा राशि का 40 फीसद निकाला जा सकता है। इसके लिए सादे कागज पर जानकारी देनी होती है। साथ ही ङ्क्षप्रसिपल से मिलकर जरूरत बतानी पड़ती है। पढ़ाई से जुड़ा कारण होने पर ही पैसा निकालने की अनुमति है। स्कूल छोडऩे पर पूरी राशि निकाली जा सकती है। अभिभावक विनोद पटेल ने बताया कि इससे बच्चियों में अच्छी आदत विकसित हो रही है। ङ्क्षप्रसिपल दीपेंद्र बाजपेयी ने बताया कि बेटियों में बचपन से जब बचत की आदत विकसित होगी तो आगे वे घर-गृहस्थी संभालने में सक्षम होंगी। बेटियां घर से नाश्ते के लिए मिलने वाले पैसे को खर्च करने के बजाय जमा करती हैं। विद्यालय प्रबंध समिति के सचिव दिनेश यादव ने कहा कि सारे रुपये विद्यालय प्रबंधन के पास जमा हैं। भविष्य में राशि बढ़ेगी तो बैंक में खाता खोला जाएगा। जमा रुपये या फिर निकासी पर ब्याज का प्रावधान नहीं है। आर्थिक तंगी से कई बार अभिभावक उच्च कक्षा में बच्चियों का नामांकन नहीं करा पाते हैं। ऐसे में 'बेटी बैंक' से मदद मिल जाती है।