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मधुबनी में परती हो चुकी राजनीतिक जमीन को उर्वर बनाना वामदलों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती

मधुबनी में कभी लाल झंडा का बोलबाला था लेकिन धीरे-धीरे लाल झंडा का जनाधार सिमटता गया। वाम दलों के विधायक से लेकर सांसद तक हुआ करते थे अब जिले में एक विधायक एवं एक सांसद के लिए तरस रहा वामदल

By DharmendraEdited By: Published: Sat, 28 Nov 2020 04:15 PM (IST)Updated: Sat, 28 Nov 2020 04:15 PM (IST)
मधुबनी में परती हो चुकी राजनीतिक जमीन को उर्वर बनाना वामदलों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती
मधुबनी में धीरे-धीरे लाल झंडा का जनाधार सिमटता गया।

मधुबनी, जेएनएन। परती हो चुकी राजनीतिक जमीन को फिर से उर्वर बनाना वामदलों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती बनी हुई है। मधुबनी जिले की धरती वाम दल के लिए अतीत में काफी उर्वर हुआ करती थी। कभी जिले में लाल झंडा का बोलबाला हुआ करता था। लेकिन, धीरे-धीरे लाल झंडा का जनाधार सिमटता गया। अब हाल यह है कि कई चुनावों से एक अदद सीट पर जीत के लिए भी वाम दल तरसता आ रहा है। जबकि, जिले में पहले वाम दलों से कद्दावर नेता हुआ करते थे। जिले में वाम दलों का विधायक से लेकर सांसद तक हुआ करता था। लेकिन, विगत कई चुनावों से वाम दलों को जिले में अपना एक सांसद या एक विधायक के लिए भी तरसना पड़ रहा है। भोगेन्द्र झा, चतुरानन मिश्र जैसे दिग्गज वामदलों के सांसद हुआ करते थे।

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लेकिन, धीरे-धीरे वामदलों का जनाधार सिकुड़ता गया। अब हाल तो यह है कि वाम दल जिले में एक विधायक या एक सांसद उम्मीदवार को भी जिता नहीं पा रहे हैं। हालांकि, इस साल संपन्न हुए विधान सभा आम चुनाव में वामदलों ने महागठबंधन में शामिल होकर अपनी खोयी हुई राजनीतिक जमीन को वापस लेने का प्रयास किया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी। महागठबंधन की ओर से वामदल भाकपा को जिले में दो सीट हरलाखी एवं झंझारपुर हाथ लगी थी। वामदलों को उम्मीद थी कि इन दो सीटों में से कम से कम एक सीट पर जरूर कामयाबी हाथ लगेगी। हरलाखी सीट फतह करने की उम्मीद थी। लेकिन, कामयाबी हाथ नहीं लगी।

हरलाखी में भाकपा उम्मीदवार के जीत के मार्ग में एक निर्दलीय उम्मीदवार ने बड़ा रोड़ा अटका दिया। एक निर्दलीय उम्मीदवार ने महागठबंधन के वोट बैंक में बड़ी सेंधमारी कर डाली, जिस कारण भाकपा उम्मीदवार को पराजय का सामना करना पड़ा। इस विधान सभा चुनाव में भले ही जिले में वामदल को पराजय का सामना करना पड़ा, लेकिन नए जोश एवं नई ऊर्जा का संचार हुआ। वामदल जिले में एक बार फिर अपनी राजनीतिक जड़ को मजबूती प्रदान करने में जुट गया है, ताकि जिले में खो चुके जनाधार को वापस प्राप्त कर जिले में वामदल का विधायक एवं सांसद बनाया जा सके। अब देखना है कि आने वाले चुनावों में वामदल की यह हसरत पूरी हो पाती है या नहीं।


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