स्वर्णिम इतिहास से धूल हटे तो ऐतिहासिक खजाना सामने आए
अपने गर्भ में इतिहास के सुनहरे पन्ने समेटे मुसहरनिया डीह पर उपेक्षा की गर्द पड़ी है।
मुजफ्फरपुर। अपने गर्भ में इतिहास के सुनहरे पन्ने समेटे मुसहरनिया डीह पर उपेक्षा की गर्द पड़ी है। इस पर न तो प्रशासन और न ही पुरातत्व विभाग ध्यान दे रहा है। अगर इसकी खुदाई कराई जाए तो ऐतिहासिक धरोहरों का खजाना सामने आ सकता है। पर्यटन की संभावनाएं बन सकती हैं।
मधुबनी जिले के अंधराठाढ़ी प्रखंड मुख्यालय से महज चार किलोमीटर दूर एक छोटा सा गांव है नवटोली पस्टन। यहां बौद्ध महाविहार होने के साक्ष्य मौजूद हैं। दो बडे़ टीलों के अलावा चार छोटे-छोटे टीलों का अस्तित्व बचा है। स्थानीय लोग इसे मुसहरनिया डीह कहते हैं। आज भी यहां किसानों को जुताई के समय बुद्ध आदि की मूर्तियां व मिट्टी के बर्तन मिलते हैं। यहां मिलीं कुछ महत्वपूर्ण मूर्तियां स्थानीय वाचस्पति संग्रहालय में रखी हैं।
चीन और तिब्बत के यात्री यहां करते थे विश्राम : पुरातत्वविद भैरव लाल दास के अनुसार लगभग 1200 वर्ष पहले मिथिला के पालवंशी राजाओं ने यहां बौद्ध स्तूप बनवाया था। इसका स्वरूप राजगीर, वैशाली या केसरिया आदि जगहों के स्तूप जैसा ही था। पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग इस स्थान का सर्वेक्षण कर विशाल और उन्नत बौद्ध महाविहार होने की बात कह चुका है। चीन और तिब्बत से आने वाले यात्रियों का पड़ाव यहां होता था। अभी बचे भग्न परिसर में बौद्ध साधुओं के मठ, कुआं, पोखर एवं घाट के चिन्ह विद्यमान हैं। बौद्ध साहित्य में इसका वर्णन :
बौद्ध साहित्य में बिहार के पट्टन गांव की चर्चा है। पस्टन की भौगोलिक स्थिति और आसपास के गांव आदि उसी पट्टन गांव से मिलते-जुलते हैं। बौद्ध साहित्य में वर्णित इस गांव से जनकपुर की दूरी हूबहू मिलती है। सामाजिक रीति रिवाज, खानपान आदि का वर्णन भी पट्टन गांव से मेल खाता है। विद्वानों और इतिहासकारों का मानना है कि पट्टन ही कालांतर में अपभ्रंशित होकर पस्टन हो गया। हालांकि कुछ इतिहासकार मानते हैं कि पस्टन नवटोली गांव में मौजूद टीला कर्णट वंशीय राजा हरि¨सह देव के राजमहल का अवशेष है।
मिथिलांचल का पहला बौद्ध महाविहार : सेवानिवृत्त डीएसपी इंद्र नारायण झा ने मिथिला दिग्दर्शन में मुसहरनिया डीह को बौद्ध मठ ही माना है। क्षेत्र के प्रसिद्ध पुरातत्वविद पंडित सहदेव झा इसे बौद्ध भिक्षुओं के रुकने की जगह मानते हैं। उनके अनुसार देश-विदेश से बौद्ध धर्म के लोग यहां अध्ययन करने आते थे। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के डॉ.सुनील कुमार झा एवं कामेश्वर ¨सह संग्रहालय के डॉ. शिवकुमार मिश्र कहते हैं कि पूर्व में यह महाविहार था। इसके नौ पिलर अभी सुरक्षित हैं। मिथिलांचल का यह प्रथम महाविहार हो सकता है। अंधराठाढ़ी में बुद्ध भगवती तारा की प्रतिमा पर खुदा श्लोक था प्रवर्तनपुर सुधा विहार। यही प्रवर्तनपुर कालांतर में पस्टन के नाम से प्रसिद्ध हो गया। पुरातत्वविद भैरव लाल दास के अनुसार यहां उत्खनन होना चाहिए। पर्यटन की सुविधा विकसित की जानी चाहिए। पं. महेश झा कहते हैं कि सरकार और स्थानीय प्रशासन को इस पर ध्यान देना चाहिए।
एसडीएम , विमल कुमार मंडल ने बताया कि कला-संस्कृति विभाग ने मुसहरनिया डीह को संरक्षित करने का निर्देश दिया था। डीएम को पत्र लिखकर आवश्यक दिशा-निर्देश मांगा जाएगा। जल्द ही ठोस और आवश्यक कार्यवाही होगी।