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Emergency : वो बेहद काले दिन : सकरा के डीके विद्यार्थी को बंदरा में खोजे पुलिस तो निकल लेते थे मुरौल

डीके विद्यार्थी मीसा के तहत जेल में रहे नजरबंद। 25 जुलाई 1975 को जेल गए तो आपातकाल खत्म होने के बाद एक मार्च 1977 को वहां से बाहर निकले।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 24 Jun 2020 01:23 PM (IST)Updated: Thu, 25 Jun 2020 09:58 AM (IST)
Emergency : वो बेहद काले दिन : सकरा के डीके विद्यार्थी को बंदरा में खोजे पुलिस तो निकल लेते थे मुरौल
Emergency : वो बेहद काले दिन : सकरा के डीके विद्यार्थी को बंदरा में खोजे पुलिस तो निकल लेते थे मुरौल

मुजफ्फरपुर, [अमरेंद्र तिवारी]। मैं डीके विद्यार्थी, सकरा गोरीगामा में रहकर जेपी आंदोलन से जुड़े। अब मेरी उम्र 72 साल की हो गई है। अभी रामदयालु में रहते हैं। लेकिन, इस उम्र में जब भी जेपी की बात होती है तो मन में गजब की ताकत भर आती है। उनके आंदोलन में साथ देने और फिर जेल जाने का मौका मिला। सरकार ने मीसा लगाकर नजरबंद किया। हमारे साथ जेल में रहे साधु शरण शाही व रामशृंगार सिंह तो दिवगंत हो गए। अब वह एकलौते बचे हैं जो मीसा के तहत लंबे समय तक जेल में रहे हैं। हमको सरकार ने जेपी सेनानी का सम्मान दिया। राज्य की कमेटी में स्थान दिया है।

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भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी पर था आक्रोश, बन गया आंदोलन

बात उस समय की है जब आरडीएस कॉलेज में बीए की पढ़ाई करने के साथ-साथ जयप्रकाश नारायण की विचारधारा से प्रभावित हुए। युवाओं में तत्कालीन सरकार में बढ़े भ्रष्टाचार, महंगाई व बेरोजगारी के खिलाफ गजब का आक्रोश था। जयप्रकाश नारायण ने उस आक्रोश को एक आंदोलन की दिशा दी। जिसे लोग जेपी आंदोलन कहते हैं। वह पहली बार तीन अक्टूबर 1974 से लेकर 21 दिसंबर 1974 तक जेल में रहे। उसके बाद जब आपातकाल लगा तो 25 जुलाई 1975 को जेल गए। आपातकाल खत्म होने के बाद ही एक मार्च 1977 को वहां से बाहर निकले। मुजफ्फरपुर के साथ आरा व हजारीबाग जेल में रहने का अवसर मिला। एक से एक आंदोलनकारी से मुलाकात हुई।

पटना में लालू-नीतीश और मुजफ्फरपुर में हम लोग

पटना की सड़कों पर उस समय के आंदोलनकारी नीतीश कुमार, लालू प्रसाद, सुशील मोदी आदि की टोली आंदोलन करती थी। यहां पर हम लोगों की टोली उस आंदोलन का रूप खड़ा करती थी। गांव-गांव में जुलूस निकालना। बैठक करके युवाओं सहित आम लोगों को आंदोलन से जोडऩा मुख्य उद्देश्य था। मुशहरी में जितनी भी ग्राम सभाएं थीं। सबको सक्रिय किया गया। जहां पर सक्रिय नहीं थीं वहां फिर से गठन किया गया।

ढोल बजा जमा करते थे लोग

उस समय पुलिस भी हमको बहुत तलाश रही थी। इससे कहीं पर रहने का संकट होता था। गांव में दिन बीता। शाम में ढोल बजाकर लोगों को एक जगह पर जमा किया। जेपी का संदेश सुनाया। सब लोगों ने समर्थन किया। उसके बाद गांव-गांव में जुलूस निकलने लगे। पुलिस अगर सिमरा में पहुंची तो निकल गए मुरौल, मुरौल आई तो निकल लिए बाजी, इस तरह लगातार जिले में इधर से उधर भागते रहते थे। कभी बाल बढ़ा लिए तो कभी दाढी। पुलिस पहचान न पाए। इसलिए तरह-तरह का वेश बनाकर घूमते रहते थे।

कई बार मिले थे जेपी से

जेपी जब मुशहरी आए थे। उसके बाद से लगातार उनसे मिलने का मौका मिलता रहा। ग्राम सभा की गतिविधि की रिपोर्ट देने के लिए मिलना-जुलना होता रहता था। उनसे बहुत कुछ सीखने का मौका मिला। उस तरह के विचारवान व कार्यकर्ताओं के मददगार नेता अब कहां मिलने वाले हैं?  


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