जीवन में शांति और भक्ति बड़ी ही दुर्लभ
मुजफ्फरपुर जीवन में शांति और भक्ति बड़ी ही दुर्लभ है।
मुजफ्फरपुर : जीवन में शांति और भक्ति बड़ी ही दुर्लभ है। हम तीर्थो में, बाबाओं में शांति को खोजते रहते हैं। वास्तव में शांति, भक्ति अथवा शुद्धि कहीं इतर नहीं, बल्कि हमारे पास ही है। यदि जीवन में भक्ति नहीं तो फिर न तो शांति मिलती है और न ही शुद्धि होती है। ये बातें सिकंदरपुर स्थित श्री राणी सती मंदिर 'दादी धाम' में चल रही श्री हनुमंत कथा के दूसरे दिन गुरुवार को कथा व्यास वृन्दावन से आए महाराज प्रदीप भैया ने कहीं। कहा कि खोजने से भगवान नहीं मिलते और न ही भक्ति ही मिलती है। भगवान को देखने के लिए शांत व निर्मल मन होना चाहिए। सुंदरकांड सत्य भी है, शिव भी है और सुंदर भी। इस कांड में जहां प्रतीक्षा, दीक्षा व भीक्षा भी है। वहीं इसमें रोग, योग और भोग भी है। इसमें पुरुषार्थ है तो परमार्थ भी। भक्ति के बीज को पल्लवित व पुष्पित होने के लिए मृदु व नमी युक्त भूमि होनी चाहिए। मद से युक्त कठोर भूमि पर भक्ति पल्लवित नहीं होती।
दीक्षा मतलब
'दी हुई इच्छा'
महाराजजी ने कहा कि दीक्षा का मतलब है 'दी हुई इच्छा'। गुरु अपनी इच्छा देते हैं। आसक्ति किसी के भी प्रति आ सकती है, मगर जाती बड़ी मुश्किल से है। हम अपने जीवन में सहायक किसको रखते हैं, यह महत्वपूर्ण है। यद्यपि सुग्रीव में कई अवगुण थे, लेकिन उसने एक अच्छा काम किया। उसने अपना सहायक हनुमानजी को बनाया। कथा के दौरान बीच-बीच में संगीतमय प्रस्तुति लोगों को मुग्ध कर रही थी। कथा में संयोजक पुरुषोत्तम लाल पोद्दार, मंदिर ट्रस्ट बोर्ड के अध्यक्ष श्याम सुंदर भीमसेरिया, श्रीराम बंका, वार्ड पार्षद रतन शर्मा, रतन लाल तुलस्यान, रामऔतार नाथानी, रमेश झुनझुनवाला, अंकज कुमार, श्रवण सर्राफ, दीपक पोद्दार, गोविंद भिवानीवाला, लक्ष्मण भिवानीवाला आदि थे।