हमेशा पुत्र पर बना रहता मा का स्नेह
मुजफ्फरपुर मा के द्वारा पुत्र पर वात्सल्य प्रेम का दुनिया में कोई दूसरा उद्धरण नहीं हो सकता है।
मुजफ्फरपुर : मा के द्वारा पुत्र पर वात्सल्य प्रेम का दुनिया में कोई दूसरा उद्धरण नहीं हो सकता है। मां को चोट लग जाए तो वह सह लेती है लेकिन वही चोट पुत्र को लग जाए तो मां बर्दाश्त नहीं कर सकती। पुत्र के लिए कोई भी जोखिम उठा लेती है। उक्त बातें मुशहरी प्रखंड के शेरपुर शिव मंदिर प्रांगण में हनुमान कथा का वाचन करते हुए कथावाचक प्रदीप भैया ने कहीं। कहा कि लंका में महाबली हनुमानजी जब अशोक वाटिका में जाकर मा जानकी से मुलाक़ात कर प्रभु श्रीराम व लक्ष्मण की व्यथा को सुनाया। उस वक्त का संवाद एक मां और पुत्र हनुमान का था। तब हनुमान जी ने वाटिका में जाकर फल खाने की इच्छा जाहिर की। तब सीताजी ने यह समझाया कि सावधानी से जाकर फल खाए। इस संवाद में भी एक मां का पुत्र पर जो स्नेह होता है वह मिला। इसीलिए हनुमान निश्चिंत भाव से थे। जब फल खाने के दौरान रावण पुत्र अक्षय कुमार ने उनपर प्रहार किया तो हनुमान जी ने भी उसका प्रतिउत्तर दिया। उसी क्रम में रावण के पुत्र की मौत हो गई। रावण के दरबार में हनुमानजी ने स्पष्ट कहा कि जौं मुझे मारा तौं मारा। मतलब शास्त्र के अनुसार कोई आप पर प्रहार करे तभी उसका परस्ती उत्तर देना चाहिए। कलयुग में पुत्र कुपुत्र हो सकता है, माता कुमाता नहीं। इसलिए मां का सम्मान हमेशा करना चाहिए। मां को सम्मान नहीं देने वाला या कष्ट देने वाला कभी सुखी नहीं हो सकता। कथा का श्रवण करने को बड़ी संख्या में महिलाएं मौजूद थीं।