हौसले से हारी दिव्यांगता, सफलता चूम रही कदम
हौसला इस कदर कि दिव्यांगता ने भी हार मान ली। सफलता कदम चूमने लगी तो दूसरे मिसाल देने लगे। 34 वर्षीय धनंजय दुबे उन्हीं में से एक हैं।
मुजफ्फरपुर। हौसला इस कदर कि दिव्यांगता ने भी हार मान ली। सफलता कदम चूमने लगी तो दूसरे मिसाल देने लगे। 34 वर्षीय धनंजय दुबे उन्हीं में से एक हैं। दोनों हाथों और पैरों में जन्म से ही महज दो-दो अंगुलियां हैं, लेकिन लगन और मेहनत के चलते उन्होंने न सिर्फ पढ़ाई पूरी की, बल्कि बतौर सरकारी शिक्षक बच्चों को राह भी दिखा रहे हैं। स्कूल से खाली होने के बाद घर पर निश्शुल्क शिक्षा देते हैं। वे उन दिव्यांगों के लिए प्रेरणास्रोत बन गए हैं, जो खुद को कमजोर महसूस करते हैं।
पश्चिमी चंपारण के बगहा प्रखंड के ¨सगाड़ी गांव निवासी मदन दुबे पुरोहित के पुत्र धनंजय के घर की माली हालत ठीक न थी। जन्म से ही दिव्यांग होने के बाद समस्या और बढ़ गई। हालांकि उनकी परवरिश सामान्य बच्चों की तरह हुई। पैरों में महज दो-दो अंगुलियों की वजह से शुरुआत में चलने-फिरने में काफी कठिनाई होती थी। लेकिन, नियमित अभ्यास से आराम से चलने लगे। यहां तक कि साइकिल भी चला लेते हैं। इसी तरह महज दो अंगुलियों से लिखना सीखा। शुरुआत में स्कूल में उन्हें काफी उपेक्षा का सामना करना पड़ा। कोई दोस्त नहीं बनना चाहता था। लेकिन, मेहनत की वजह से पढ़ाई में जब आगे रहने लगे तो नजरिया बदला। शिक्षकों के भी प्यारे हो गए।
गरीबी के चलते छूट गई पढ़ाई : मेड्रौल विद्यालय से वर्ष 2000 में मैट्रिक की परीक्षा पास की। इसके बाद टीपी वर्मा कॉलेज नरकटियागंज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी की। गरीबी के चलते आगे की पढ़ाई बंद हो गई। इसके बाद वे नौकरी के लिए प्रयास करने लगे। इस बीच वर्ष 2006 में उनका नियोजन दिव्यांग कोटे में बतौर शिक्षक प्राथमिक विद्यालय हरका साधु कुटिया ¨सगाड़ी में हो गया। धनंजय ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा। नौकरी में आने के बाद स्नातक की डिग्री हासिल की। अभी स्नातकोत्तर की पढ़ाई दूरस्थ शिक्षा के माध्यम से कर रहे हैं।
ताकि कोई बच्चा न हो दिव्यांग : खुद दिव्यांगता का दंश झेलने वाले धनंजय ने इंटर के बाद रोजगार की तलाश शुरू की तो दिव्यांगता आड़े आई। उन्होंने स्वास्थ्य विभाग के अभियान के तहत काम किया। वह पोलियो के प्रति लोगों को जागरूक करते थे, ताकि उनकी तरह कोई दिव्यांग न हो। बच्चों को पल्स पोलियो ड्राप भी पिलाने का काम किया। अभी धनंजय स्कूल से छूटने के बाद घर में गरीब बच्चों को निश्शुल्क पढ़ाते हैं। वे कहते हैं, यदि हौसला हो तो दो अंगुलियां भी 10 के बराबर हैं।
शिक्षा पदाधिकारी बगहा दो, सुभाष बैठा कहते हैं कि धनंजय जीवटता के पर्याय हैं। वे अपनी ड्यूटी के प्रति पूरी संजीदगी दिखाते हैं। ऐसे शिक्षक वास्तव में समाज के लिए प्रेरणास्रोत हैं।