डिस्टेंस में फंसे पूर्व रजिस्ट्रार, प्रॉक्टर पद से छुट्टी
बीआरएबीयू के प्रॉक्टर को एक पुराने घटनाक्रम में पद से इस्तीफा देना पड़ा।
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के प्रॉक्टर डॉ. विवेकानंद शुक्ला ने सोमवार को एक पुराने घटनाक्रम को लेकर पद से इस्तीफा दे दिया। राजभवन के आदेश पर उन्होंने अपना इस्तीफा कुलपति को सौंपा। दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में बिना अप्रूवल चल रहे विभिन्न कोर्सो के मामले में प्रॉक्टर को राजभवन ने रजिस्ट्रार रहते दोषी ठहराया था। इस मामले में कड़ा रुख अख्तियार करते हुए राजभवन ने मौजूदा प्रॉक्टर के पद समेत तमाम प्रशासनिक पदों से उन्हें तत्काल प्रभाव से मुक्त करने का आदेश दिया था। दो नवंबर को ही डॉ. शुक्ला के खिलाफ राजभवन से कार्रवाई की चेतावनी भरा पत्र भेजा गया। रेग्युलेशन व ऑर्डिनेंस की अनदेखी कर दूरस्थ शिक्षा निदेशालय में छात्र-छात्राओं का नामांकन और परीक्षा लेने की सहमति देने के लिए राजभवन ने उन्हें दोषी माना है। इस कृत्य के लिए कुलपति को उनके खिलाफ जवाबदेही तय करने के भी आदेश निर्गत किए हैं। प्रॉक्टर ने कहा कि उन्होंने तत्काल इस्तीफा कुलपति डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव को सौंप दिया है। 58 दिन रजिस्ट्रार रहे थे। 20 फरवरी से वे प्रॉक्टर के पद पर बहाल थे। इस प्रकार आठ माह के लगभग प्रॉक्टर भी रहे। अब वे पीजी इतिहास विभाग में अध्यक्ष भर रह गए हैं। बहरहाल, प्रॉक्टर के इस्तीफे की खबर से विश्वविद्यालय कैंपस में हड़कंप है।
बिना अनुमति विद्यार्थियों का दूरस्थ शिक्षा में नामांकन लेने के चलते ही विद्यार्थियों का कॅरियर दांव पर लग गया है। इस मामले में दोषी पदाधिकारियों व कर्मचारियों के खिलाफ हाईकोर्ट ने प्रशासनिक व कानूनी कार्रवाई के आदेश दिए थे। उसी के आलोक में राजभवन ने पूर्व रजिस्ट्रार व मौजूदा प्रॉक्टर को हटाते हुए सभी प्रशासनिक पदों से भी हटाने के आदेश दिए हैं। राजभवन ने कुलपति को यह भी आदेश दिया है कि कार्रवाई रिपोर्ट से अविलंब अवगत कराया जाए। उधर, प्रॉक्टर ने कहा कि एमफिल की परीक्षा के लिए रजिस्ट्रार के नाते हमने हाईकोर्ट में एफिडेविट कर दिया था कि यदि कोर्ट हमको आदेश देता है तो हम परीक्षा ले लेंगे। चूंकि मैंने विद्यार्थियों का नामांकन लिया था तो परीक्षा भी लेनी थी। लेकिन, यही बात राजभवन को नागवार गुजरी है। माना गया कि रजिस्ट्रार ने राजभवन की इच्छा के विरुद्ध काम किया। उन्होंने हालांकि, यह भी कहा कि कोई भी लेटर इश्यू होता है तो उसमें कुलपति की अनुशंसा होती है, कोई भी अधिकारी खुद के मन से कोई काम नहीं कर सकता।
22 सितंबर को ही हमने इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफा स्वीकार करने के लिए फिर 30 अक्टूबर को कुलपति को रिमाइंडर भी दिया था। यह बात मीडिया में भी आई थी। आज हमने कुलपति आवास पर बैठकर इस्तीफा मंजूर करवा लिया। विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अनशन के दौरान ही एक छात्र ने बोल दिया कि आपसे विश्वविद्यालय नहीं संभलता तो आप इस्तीफा क्यों नहीं दे देते? यह बात सुनते ही मैंने तत्क्षण नैतिकता के आधार पर अपना इस्तीफा कुलपति को सौंप दिया था। लेकिन, उन्होंने स्वीकार नहीं किया।