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Sawan 2020 : 61वर्ष में पहली बार इस वजह से पहलेजा के जल से नहीं हो सका बाबा गरीबनाथ का जलाभिषेक

Sawan 2020 कोरोना संक्रमण बना कांवर यात्रा में बाधा। अछूते नहीं मुजफ्फरपुर के बाबा गरीबनाथ महादेव। भक्तों की करते हैं मुरादें पूरी।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 12:26 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 12:26 PM (IST)
Sawan 2020 : 61वर्ष में पहली बार इस वजह से पहलेजा के जल से नहीं हो सका बाबा गरीबनाथ का जलाभिषेक
Sawan 2020 : 61वर्ष में पहली बार इस वजह से पहलेजा के जल से नहीं हो सका बाबा गरीबनाथ का जलाभिषेक

मुजफ्फरपुर, [नीरज] । Sawan 2020 : मुजफ्फरपुर का नाम जेहन में आते ही जो पहली तस्वीर उभरती है वह है बाबा गरीबनाथ महादेव की। नाम भले ही गरीबनाथ है लेकिन, ये धन और दिल दोनों से अमीर हैं। कहते हैं कि यहां आने से हर मुराद पूरी होती है। पूर्व में बिहार, यूपी, एमपी और पड़ोसी देश नेपाल से भी लाखों लोग यहां जलाभिषेक के लिए आते रहे हैं । यहां से जुड़ी आस्था की जड़ें सैकड़ों साल पुरानी है।

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77 किमी लंबी दूरी तय करते

सावन माह में पहलेजा घाट से 77 किमी लंबी दूरी तय कर कांवरिये यहां जलाभिषेक करते रहे हैं। लेकिन, 61 साल में यह पहला मौका है जब पहलेजा के जल से बाबा का जलाभिषेक नहीं हुआ है। वहीं 61 साल में पहली बार कोरोना वायरस ने आस्था पर ग्रहण लगा दिया है। सावन के प्रत्येक शुक्रवार को पहलेजा घाट से हजारों कांवरियों के कदम बाबा गरीबनाथ मंदिर की ओर बढ़ते रहे हैं। 77 किमी की दूरी तय कर बाबा के दरबार में पहुंचने वाली आस्था के साल दर साल बढ़ते कदम इस बार रुक गए हैं। कोरोना को लेकर मंदिर के पट बंद हैं। हालांकि, नियमित पूजन, आरती और श्रृंगार पूजा का आयोजन जारी है।

धीरे धीरे प्रसिद्धि मिलती गई

आज जहां शिवलिंग है यह इलाका घनघोर जंगल का था। सैकड़ों वर्ष पूर्व जमींदार रहे मदन मोहन मिश्र की जमीन नीलाम की गई। इसे शहर के चचान परिवार ने खरीदी। इसके बाद जंगल की सफाई की जाने लगी। जंगल में सात पीपल के पेड़ भी थे। छह के बाद मजदूरों ने सातवें पेड़ के पास खोदाई शुरू की। इस दौरान कुल्हाड़ी के पत्थर पर पड़े प्रहार से 'लाल द्रव' निकलने लगा। इसके बाद खोदाई रोक दी गई। बाद में चचान परिवार ने सात धूर जमीन को घेरकर पूजा शुरू कराई। उक्त पत्थर को दूसरे स्थान पर ले जाने के लिए खोदाई की गई। मगर, जैसे-जैसे खोदाई की गई, पत्थर फैलता गया। अंतत: इसे यहीं छोड़ पूजा-पाठ जारी रहा। आज भी पीपल का पेड़ यहां है। साथ ही शिवलिंग पर कटे का निशान भी।

गरीब की परेशानी दूर कर बन गए गरीबनाथ

बाबा गरीबनाथ से जुड़ी दर्जनों कथाएं हैं। कहते हैं कि इलाके के एक व्यापारी के मुंशी इस मंदिर में रोज पूजा करते थे। उनकी एक बेटी थी। जिसकी शादी कम उम्र में हो गई थी। उसके गौना का समय आने पर मुंशी के पास देने को कुछ नहीं था। उन्होंने घर व जमीन बेचने का निर्णय लिया। जमीन रजिस्ट्री करने जाने से पहले वे नित्य की तरह पूजा करने आए। मगर, उदासी चेहरे पर थी। वहां एक बालक ने उदासी का कारण पूछा। रजिस्ट्री के लिए जाने के समय टोकने को अपशकुन मान मुंशी बौखला गए। कहते हैं कि मुंशी का रूप धारण कर एक बैलगाड़ी में गौना के सारे सामान लेकर महादेव उनके घर पहुंच गए, वहां उन्होंने मुंशी की पत्नी को हुक्का बनाकर रखने की बात कही और निकल गए। इधर, किसी कारण से मुंशी की जमीन की रजिस्ट्री नहीं हो सकी। चिंतित हो वे घर आए। पैसे का जुगाड़ नहीं होने की बात कही। पत्नी ने आश्चर्य जताते हुए कहा कि फिर आप सामान कहां से लाए। मुंशी को समझते देर नहीं लगी। बोल पड़े, मंदिर में मिला ब्राह्मण लड़का कोई और नहीं, साक्षात गरीब के नाथ महादेव थे। तभी से बाबा का नाम गरीबनाथ और मंदिर का नाम गरीब स्थान पड़ गया।

1950 के दशक में चढ़ा पहला कांवर

धीरे-धीरे बाबा गरीबनाथ की प्रसिद्धि फैलने लगी। लोगों की मन्नतें पूरी होने लगीं। इसी कड़ी में सरैयागंज के कुछ लोगों ने वर्ष 1950 के आसपास पहलेजा से जल लेकर पहला कांवर चढ़ाया। तबसे यह प्रथा चली आ रही। पिछले साल तक हर सावन में आठ से दस लाख श्रद्धालु यहां जलाभिषेक करते थे। वर्ष 2006 में मंदिर का अधिग्रहण किया गया। बाबा गरीबनाथ न्यास समिति बनी। यह समिति गरीबों की सेवा भी करती है। डे केयर सेंटर में आयुर्वेद व होम्योपैथ का निशुल्क इलाज होता है। समय-समय पर यह समिति दिव्यांग, गरीबों की मदद के लिए कार्यक्रमों का आयोजन भी करती है। मंदिर प्रशासक पंडित विनय पाठक की मानें तो पहली बार 1959 में करीब 15-20 लोगों ने बाबा गरीबनाथ को कांवर चढ़ाया था। इसके बाद यह परिपाटी चल पड़ी। हालांकि, इस बार कोरोना संक्रमण संकट कांवर यात्रा में बाधा बनी है। 


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