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समस्तीपुर के भिरहा की होली में दिखती वृंदावन की छटा, रंगों का त्योहार मिथिलांचल में प्रसिद्ध

सौहार्दपूर्ण वातावरण में अनुशासित ढंग से मनाई जाती यह होली। राष्ट्रकवि दिनकर पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्रा और कर्पूरी ठाकुर समेत कई नामचीन हस्तियां ले चुकी हैं इसका आनंद।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 18 Mar 2019 06:53 PM (IST)Updated: Tue, 19 Mar 2019 09:20 AM (IST)
समस्तीपुर के भिरहा की होली में दिखती वृंदावन की छटा, रंगों का त्योहार मिथिलांचल में प्रसिद्ध
समस्तीपुर के भिरहा की होली में दिखती वृंदावन की छटा, रंगों का त्योहार मिथिलांचल में प्रसिद्ध

समस्तीपुर, [शंभूनाथ चौधरी]। स्व अनुशासन और आपसी सौहार्द की मिसाल है भिरहा की होली। समस्तीपुर जिला अंतर्गत रोसड़ा अनुमंडल मुख्यालय से पांच किलोमीटर दूर स्थित भिरहा गांव में होली के मौके पर तीन दिवसीय आयोजन होता है। इसमें संपूर्ण मिथिलांचल के विभिन्न हिस्से से हजारों की संख्या में पहुंचे लोग बिना किसी राग-द्वेष सजावट, नृत्य-गायन व बैंड प्रतियोगिता का आनंद लेते हैं। इस होली महोत्सव में आज भी वृंदावन की झलक मिलती है।

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   यही वजह थी कि राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर, पूर्व सीएम जगन्नाथ मिश्र, बिंदेश्वरी दुबे, कर्पूरी ठाकुर, कविवर आरसी प्रसाद सिंह जैसी नामचीन हस्तियां यहां पहुंचीं और रंग के इस त्योहार का आनंद लिया। यहां के एक वृद्ध ने कहा कि राष्ट्रकवि दिनकर इस आयोजन से अभिभूत हो गए थे। उस समय उन्होंने कहा था कि वृंदावन तक नहीं पहुंचने वाले लोग भिरहा में भी वहां की झलक देख सकते हैं।

1835 से चली आ रही परंपरा

गांव के बुजुर्ग बताते हैं कि सैकड़ों वर्ष पूर्व यहां के प्रबुद्ध होली का आनंद लेने वृंदावन गए थे। लौटने के बाद उन्होंने वृंदावन की तर्ज पर ही होली मनाने का निर्णय लिया। उसी दिन से आज तक प्रतिवर्ष भिरहा में पारंपरिक होली महोत्सव मनाया जाता है। करीब 20 हजार की आबादी वाले इस गांव में तीन माह पूर्व से ही होली की तैयारी शुरू हो जाती है। होली के दौरान गांव के लोग पुवारी, पश्चिमवारी और उत्तरवारी टोले में बंटकर बेहतर साज-सजावट और सांस्कृतिक कार्यक्रम की प्रतिस्पद्र्धा करते हैं।

   देश के विभिन्न स्थानों की प्रसिद्ध बैंड पार्टी, गायक और नृत्य कलाकार यहां आमंत्रित किए जाते हैं। प्रथम दिन तीनों कार्यक्रम स्थल पर बैंड पार्टी के कलाकार अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करते हैं। शाम ढलते ही गायन और नृत्य की महफिल सज जाती है। इसका लुत्फ सभी आयुवर्ग के लोग लेते हैं। अल सुबह नीलमणि उच्च विद्यालय प्रांगण में होलिका दहन के बाद घंटों तीनों बैंड पार्टी के बीच प्रतियोगिता होती है।

   संध्या काल में पुन: रंगारंग सांस्कृतिक कार्यक्रम का आगाज होता है। तीसरे दिन भी सुबह से ही महोत्सव के रंग में डूबे लोग गांव के उत्तर स्थित फगुआ पोखर पहुंचते हैं। यहां दो भागों में बंटकर ग्रामीण हजारों पिचकारियों की मदद से रंग बरसाते हैं। कुछ ही देर में फगुआ पोखर का रंग गुलाबी हो जाता है। रोसड़ा संस्कृत महाविद्यालय के पूर्व प्राचार्य डॉ. रामविलास राय ने कहा कि यहां की होली सामाजिक समरसता का आदर्श स्वरूप है।

   आयोजन के दौरान हर कोई प्रेम के रंग में रंगा नजर आता है। युवक संघ भिरहा के अध्यक्ष महेश प्रसाद राय ने कहा कि ब्रज की होली की छटा यहां आज भी दिखती है। महोत्सव के बीच गांव पहुंचने वाले अतिथि पूरे गांव के मेहमान होते हैं। हमलोग एकता और भाईचारे की इस परंपरा को बरकरार रखने की कोशिश में लगे हैं।


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