तीन बेटियों का कॅरियर संवारकर सुधा ने तोड़ीं रूढि़वादी बेडिय़ां, भ्रूण हत्या का नहीं माना परिवार का दबाव
पहली संतान बेटी हुई तब परिवार के बड़े बुजुर्ग खुश नहीं हुए। एक बेटी श्वेता सिंगापुर में इंजीनियर तो अनन्या सीए और अंजलि दिल्ली में एमएस है।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। मारवाड़ी परिवार की श्रीमती सुधा ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनको दो से अधिक संतान होगी। लेकिन, एक बेहद सामान्य परिवार में अरुण बरजोरिया से उनका विवाह हुआ था। वो कहती हैं कि युवावस्था में पड़ोस व अन्य नजदीकी परिवारों में बेटे के जन्म लेने पर विशेष उत्साह व उत्सव देखा। तब उन्होंने निर्णय लिया कि वे अपनी संतान के रूप में बेटियों को ही प्रश्रय देंगी। अपने जीवन में इस बात को चरितार्थ भी किया। वे बताती हैं कि उनके परिवार में कम उम्र में शादी होने की परंपरा थी। उनकी शादी भी हाईस्कूल पास होने के बाद कर दी गई। पति दवा व्यवसायी हैं।
उनकी पहली संतान बेटी हुई। तब परिवार के बड़े बुजुर्ग खुश नहीं हुए। जबकि सुधा का अपना परिवार खुश था। घर में लक्ष्मी का आगमन हुआ। बड़ी बेटी श्वेता घर के लिए वास्तव में लक्ष्मी साबित हुई। इसके बाद दूसरी संतान पर परिवार के बड़ों ने अल्ट्रासाउंड कराने का दबाव बढ़ाया। लेकिन, सुधा ने बात नहीं मानी। संयोग से दूसरी संतान भी बेटी हुई। परिवार में जैसे सन्नाटा छा गया। स्थिति यह हो गई कि जो परिवार हम दो हमारे दो को मानकर जीवन गुजार रहा था, उसे तीसरी संतान के लिए बड़े बुजुर्गों का दबाव इतना हुआ कि पति पत्नी दोनों तनाव में थे।
तीसरी संतान के लिए साफ मना कर दिया। कहा कि दो बेटियों का ही सुंदर भविष्य बनाने की कोशिश करेंगे। लेकिन, उनकी एक न चली। आखिर में फिर गर्भधारण किया। इस बार तो साथ लेकर लोग अल्ट्रासाउंड कराने पर उतावले हुए। दोनों ने विद्रोह कर दिया। तीसरी संतान भी बेटी हुई। कभी अच्छे अंक लाने के लिए दबाव नहीं डाला। आज श्वेता सॉफ्टवेयर इंजीनियर, अनन्या सीए की नौकरी कर रही। और अंजलि एमएस कर रही है। सुधा को ही नहीं बल्कि जो परिवार उनके निर्णय पर नाराज थे, आज तीनों संतानों की सफलता पर गर्व महसूस कर रहे हैं।