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रोजगार देने वाली योजनाएं नहीं हो रहीं साकार

सरकार चाहे बेरोजगारी खत्म करने की कितनी भी कोशिश कर ले लेकिन जबतक योजनाओं का आकार बड़ा नहीं होता बेरोजगारों को व्यापक स्तर पर रोजगार की गारंटी नहीं दी जा सकती।

By JagranEdited By: Published: Fri, 29 Jan 2021 01:22 AM (IST)Updated: Fri, 29 Jan 2021 01:22 AM (IST)
रोजगार देने वाली योजनाएं नहीं हो रहीं साकार
रोजगार देने वाली योजनाएं नहीं हो रहीं साकार

मुजफ्फरपुर : सरकार चाहे बेरोजगारी खत्म करने की कितनी भी कोशिश कर ले, लेकिन जबतक योजनाओं का आकार बड़ा नहीं होता बेरोजगारों को व्यापक स्तर पर रोजगार की गारंटी नहीं दी जा सकती। आजादी के बाद से आजतक रोजगार को लेकर हाय-तौबा मचती रही है, लेकिन चुनावी विसात से ऊपर नहीं उठ सका है। सामाजिक स्तर पर जो बदलाव होने की उम्मीदें बंधीं, लेकिन उसमें खास बदलाव होता नहीं दिख रहा है। जीविका समूहों से भी गांवों की तस्वीर नहीं बदल सकी। बढ़ती बेरोजगारी से समाज के युवाओं में खलबली सी मची हुई है। वहीं, सरकार पोखर व नाला उड़ाही के जरिए बेरोजगारी दूर करने में जुटी है।

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प्रखंड की मुहब्बतपुर पंचायत में साढ़े तीन हजार बेरोजगारों को रोजगार मुहैया कराना मुश्किल हो गया है। लॉकडाउन के दौरान पंचायत के करीब पाच हज़ार मजदूर गाव लौटे थे, लेकिन काम नहीं मिलते देख दो हजार से अधिक मजदूर पुन: रोजगार की तलाश में विभिन्न प्रदेशों को लौट गए। वहीं, तीन हजार मजदूर आज भी रोजगार की उम्मीदें पाल बैठे इंतजार कर रहे हैं।

80 फीसद आबादी खेती पर निर्भर : पंचायत की 80 फीसद आबादी कृषि पर निर्भर है जिसमें किसान और मजदूर शामिल हैं। 20 फीसद लोग निजी रोजगार कर जीविका चला रहे हैं। पंचायत में बेरोजगारी दूर करने के लिए नाला और पोखर उड़ाही के अलावा अन्य कोई योजना नहीं चलाई गई। इसमें साढे़ तीन हजार निबंधित मजदूरों में से मात्र 15 सौ लोगों को काम मिल सका है। वह भी सरकार द्वारा निर्धारित दिनों से कम दिन ही। इससे मजदूरों में भुखमरी की समस्या जस की तस बनी हुई है।

परिवार की परवरिश को परदेश जाना मजबूरी : परिवार चलाने के लिए बहुत मजदूर आज भी असम, पंजाब, हरियाणा समेत अन्य प्रदेशों में जाने को विवश हैं। वहां सिर और पीठ पर 50 किलो से लेकर एक क्विंटल तक का बोझ उठाकर दो जून की रोटी का इंतजाम करते हैं। जो काम करने के लायक हैं और काम की तलाश में भटक रहे हैं, उन्हें काम नहीं मिल रहा। बोले युवा मजदूर

बहुत मुश्किल से काम मिल रहा है। काम के बदले मिले पैसे से घर के लोगों के लिए रोटी की व्यवस्था करनी पड़ती है। जिस दिन काम नहीं मिलता उस दिन चूल्हे का जलना भी मुश्किल हो जाता है। हम बहुत खुश हैं कि दो महीने से अधिक दिनों तक का यहां काम मिल सका।

मनोज कुमार, युवा मजदूर।

तीन दिनों तक काम नहीं मिला था। आज राज मिस्त्री के साथ पिलर ढलाई करने आए हैं। पंचायत की ओर से कुछ दिनो तक के लिए काम मिला था, लेकिन अब पंचायत में काम नहीं है। इस कारण काम की तलाश में भटकता रह्ता हूं।

जीतन पासवान, युवा मजदूर।

बोले बुजुर्ग

समाज में कोई खास परिवर्तन नहीं हुआ है। पहले लोग सोहनी, तमनी और हल जोत कर पेट पालते थे, लेकिन आज उस तरीके का काम नहीं मिलता। पहले से लोग बहुत चैन में रहते हैं। गावों की हालत में थोड़ा बहुत सुधार हुआ है, मगर अभी बहुत कुछ होना शेष है।

चनदरदेव भगत

बोले मुखिया

पंचायत स्तर पर रोजगार देने की बात सरकार जरूर कहती है, लेकिन योजनाओं के संबंध में विचार नहीं कर पाती। मेरी पंचायत में साढ़े तीन हजार निबंधित मजदूरों में से करीब दो हजार को ही काम मिल पाया है। योजना के छोटी होने से व्यापक स्तर पर मजदूरों को रोजगार का अवसर नहीं मिल पाता है। नहर उड़ाही, नए नालों का निर्माण, गावों में योजनाओं के संचालन से अधिक से अधिक मजदूरों को काम मिल सकता है।

गुड़िया कुमारी, मुखिया

ग्राम पंचायत राज मुहब्बतपुर।


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