36 वर्षो से गोशाला चला रहे गोपाल, बेसहारा पशुओं को देते सहारा
गोशाला चलाने के साथ 51 गायों, बछड़ों और सांड़ की करते देखभाल, गोशाला में सुबह-शाम दूध लेने के लिए भीड़ उमड़ती है, करीब 350 लीटर दूध का उत्पादन होता है।
मोतिहारी, [संजय कुमार उपाध्याय]। बेसहारा पशुओं की सेवा के साथ श्वेतक्रांति की राह पर चल रहे छौड़ादानो प्रखंड के गोपाल। 36 साल से गोशाला चला रहे। इसमें आधा दर्जन को रोजगार दिया है। उन्होंने सड़क पर घूमने वाली 51 गायों, बछड़ों और सांड़ को अपनी गोशाला में जगह दी है।
उनका लक्ष्य गोशाला को सूबे में पहले स्थान पर लाना है। पूर्वी चंपारण के छौड़ादानो प्रखंड के गोपाल जी मिश्रा स्नातक के बाद 1983 में गोसेवा में लगे। मार्च 1988 में इनकी नियुक्ति कलेक्ट्रेट में लिपिक के पद पर हो गई।
इसके बाद भी उन्होंने गोसेवा की राह नहीं छोड़ी। सरकारी दायित्व और गोसेवा के बीच सामंजस्य बनाया। कुछ गायों से शुरू उनकी गोशाला में आज 182 गायें हैं। उनकी गोशाला में सुबह-शाम दूध लेने के लिए भीड़ उमड़ती है। करीब 350 लीटर दूध का उत्पादन होता है।
इससे गायों के लिए दाना, घास-भूसा और बिजली-पानी का इंतजाम होता है। यहां सात लोगों को रोजगार मिला है। इनको वेतन देने के बाद जो बचता है, उसका उपयोग गायों की क्षमता व संख्या बढ़ाने के लिए होता है।
माता-पिता से मिली सीख
गोपाल बताते हैं कि मां-पिता हमेशा गोसेवा की बात करते थे। इसलिए इसे अपने जीवन के महत्वपूर्ण दायित्वों में रखा। नौकरी हो गई तो गाय की सेवा के लिए सुबह साढ़े चार से नौ बजे और शाम छह से 12 बजे रात तक का समय निकाला। सभी चीजें व्यवस्थित तरीके से चल रही हैं। लक्ष्य है कि गोसेवा में बिहार में 'गोपाल गोशाला' का नाम हो। बेसहारा पशुओं को सहारा मिले।
इसके लिए वे एक साल से नगर परिषद के साथ मिलकर बेसहारा पशुओं के लिए अभियान भी चला रहे। मोतिहारी विधायक सह बिहार सरकार स्रह्य पर्यटन मंत्री प्रमोद कुमार ने कहा कि गोपाल गोशाला गोपालन के अतिरिक्त बेसहारा पशुओं के लिए अभियान चला रही है। इससे बेसहारा पशुओं को सहारा मिला है। साथ ही शहर की सड़कों पर पशुओं से मंडराने वाला खतरा भी समाप्त हो गया है। यह कार्य प्रशंसनीय है।