जुर्माने का खौफ, सड़कों पर ऑटो की संख्या में 60 फीसद की कमी Muzaffarpur News
5000 ऑटो चलते थे शहर में अब 1200 से 1500 तक सिमटा। चौक-चौराहों पर कम ही नजर आती खड़ी जाम की समस्या में भी कमी।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। नए एमवी एक्ट के अप्रत्याशित जुर्माने ने चौक-चौराहों पर बेतरतीब तरीके से खड़ी रहने वाली ऑटो की संख्या कम कर दी है। 60 फीसद ऑटो सड़कों से गायब हो चुके हैं। नतीजा शहर के लिए नासूर बनी जाम की समस्या में भी इन दिनों काफी कमी आई है। खासकर अघोरिया बाजार, कच्ची-पक्की, रामदयालु, मिठनपुरा, पानी टंकी, पक्की सराय जेल चौक, स्टेशन रोड, जीरो माइल, बैरिया व भगवानपुर चौक पर कम ऑटो खड़ी रहने से जाम में काफी हद तक कमी आई है। ग्रामीण क्षेत्र के ऑटो भी शहर में आने से कतराने लगे हैं। इसका कारण अधिकतर ऑटो चालकों के पास यातायात से संबंधित कागजात नहीं होना बताया गया है। जांच अभियान में कई ऑटो चालकों पर मोटी रकम जुर्माने के बाद ऑटो चालकों में खौफ हैं। मुजफ्फरपुर रिक्शा कर्मचारी संघ के अध्यक्ष एआर अन्नू ने कहा कि शहर के विभिन्न मार्गों पर करीब 5000 ऑटो का परिचालन हो रहा था। नया एमवी एक्ट लागू होने से इसकी तादाद 1200-1500 तक रह गई है। इसका खामियाजा यात्रियों को भी भुगतना पड़ रहा है। उन्हें दोगुना किराया देना पड़ रहा है।
जिले में 35000 ऑटो निबंधित
जिले में करीब 35000 ऑटो निबंधित है। इसमें करीब 5000 का शहर की सड़कों व शेष का परिचालन ग्रामीण इलाकों में परिचालन हो रहा था। जुर्माने के डर से ग्रामीण इलाके के ऑटो शहर में प्रवेश से कतरा रहे हैं। इसका असर हजारों ऑटो चालकों के परिवार पर पड़ रहा है। कई परिवार तंगी की स्थिति में पहुंच चुके हैं। कर्ज लेकर किसी तरह उनके घर का चूल्हा जल रहा है।
संघ का आरोप, चार महीने का शुल्क लेकर दो माह का परमिट
ऑटो संघ ने क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार पर मनमानी का आरोप लगाया है। मुजफ्फरपुर ऑटो रिक्शा कर्मचारी संघ के महासचिव मो. इलियास इलू ने कहा कि चार माह का शुल्क लेकर दो माह का परमिट दिया जा रहा। इतना ही नहीं डेढ़ महीने गुजरने के परमिट मिलता है। यानी चार माह के शुल्क में 15 दिन ही परमिट वैध रह पाता है।
कोई नहीं मिल रहा खरीददार
नये एमवी एक्ट में जुर्माने की राशि ने कई चालकों को ऑटो बेचने पर मजबूर कर दिया है। मगर विडंबना है कि कोई लेने को तैयार नहीं। विशुनपुर गिद्धा के मो. कमरुल ने कहा कि चालीस हजार में ऑटो लेकर तीस हजार खर्च किया। इससे परिवार का भरण-पोषण हो रहा था। अब इसे तीस हजार में बेचना चाह रहा फिर भी कोई लेने को तैयार नहीं। वो कहते हैं कि परिवहन व क्षेत्रीय परिवहन प्राधिकार में कागजात के लिए जाने पर कई गुना ज्यादा रुपये मांगा जाता है। ऐसे में गरीब चालक कहां से रुपये देंगे। सरकार को पहले यहां का सिस्टम को सुधारना चाहिए।