AES का कहर : छोड़ रहे गांव...ताकि जिंदा रहें नौनिहाल Muzaffarpur News
वैशाली के भगवानपुर-हरिवंशपुर गांव में पसरा सन्नाटा अधिकतर लोगों ने छोड़ा गांव। एक के बाद एक कर 10 से अधिक बच्चों की मौत के बाद पसरा मातम।
मुजफ्फरपुर, [अजय पांडेय]। सन्नाटा, वीरानी और खामोश चहारदीवारी। हर राह पर मौत की पहरेदारी। न कोलाहल, न ही किलकारी। आंखों में गम, खौफ और 'पानीÓ। कभी नौनिहालों से गुलजार थीं गलियां, अब शेष हैं उनकी निशानी। वैशाली के भगवानपुर-हरिवंशपुर का यह मंजर, गांव की पीड़ा बयां करता है। एईएस ने इस कदर कहर बरपाया कि लोग घर-बार तक छोडऩे को विवश हो गए। इस मौसम में एक के बाद एक कर 10 से अधिक बच्चों की मौत से गांव के लोग सदमे में हैं। कमोबेश इतना ही बीमार। जिनका मेडिकल और केजरीवाल अस्पताल में इलाज चल रहा। कब क्या हो जाए, क्या पता...। हर किसी के चेहरे पर बीते कल का दर्द, आज का खौफ और आनेवाले कल की चिंता। क्योंकि, बीमारी गांव की दहलीज पर कुंडली मारे बैठी है।
दस जून को सात साल की बेटी रूपा कुमारी को खो चुके राजेश सहनी कहते हैं कि गांव के लोग डरे-सहमे हैं। जिनके बच्चे बीमारी से उबर गए या पहले से ठीक हैं, वे गांव छोड़कर रिश्तेदारों के यहां जा रहे। यहां रहकर मौत का इंतजार नहीं कर सकते।
सभी घर फूस और एस्बेस्टस के
विजय सहनी बताते हैं कि गांव में 50 से अधिक परिवार हैं। यहां के लोग बांस का काम और मजदूरी कर जैसे-तैसे घर चलाते हैं। सभी के घर खपड़ैल और फूस के हैं। कुछ लोगों ने एस्बेस्टस भी डाला है। प्रचंड गर्मी में घर भ_ी बने हैं। पानी की घोर किल्लत है। ऐसे में बीमारी का प्रकोप। अब गांव छोड़ें नहीं तो क्या करें? अरविंद सहनी, देवानंद सहनी, परमानंद सहनी जैसे कई के घरों में सन्नाटा है। ये लोग घर छोड़कर बाहर चले गए हैं। उन्हीं घरों में लोग नजर आते हैं, जिनके यहां बच्चे नहीं।
मौत की कहानी हर ओर
सात साल का बेटा खोने का गम चतुरी सहनी को कचोट रहा। कहते हैं प्रिंस हर रोज की तरह खेल कर आया था, अचानक चमकी हुई और तबीयत बिगड़ गई। सूई-दवा भी काम न आई, आठ जून को देखते-देखते उसने दम तोड़ दिया। चतुरी की पीड़ा हमें झकझोर ही रही थी। वहीं बैठे विजय सहनी कहते हैं, गांव में कहीं भी चले जाएं, बच्चों की मौत की कहानी हर ओर है। बाद में पता चला कि दो रोज पहले ही उनकी बेटी की बीमारी से मौत हो चुकी है। रामदेव सहनी कहते हैं कि सर, गिनती भूल जाएंगे, इतने बच्चों की मौत हुई है यहां। उनकी भी एक बेटी की हाल में मौत हुई है। नंदू सहनी बताते हैं कि उनके तीन बच्चे बीमार हैं, महावीर सहनी के भी दो बच्चों का इलाज चल रहा।
नहीं चला जागरूकता अभियान
विजय सहनी बताते हैं कि हर साल बीमारी का प्रकोप होता है, लेकिन इसे रोकने का उपाय नहीं होता। पानी के लिए हम कहां-कहां जा रहे। कोई उपाय नहीं हो रहा। बीमारी के बारे में बताने वाला कोई नहीं आता। राशन की भी दिक्कत है। सभी की आर्थिक स्थिति एक सी। कोई कैसे जिए।
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप