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BRA Bihar University: इतिहास में निरंतर बदलाव की वजह से इसकी प्रासंगिकता कायम Muzaffarpur News

बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में बिहार इतिहास परिषद के तत्वावधान में दो दिवसीय अधिवेशन का आगाज। नगर विकास मंत्री ने वर्तमान परिदृश्य पर इतिहास लेखन का दिया सुझाव।

By Murari KumarEdited By: Published: Sun, 09 Feb 2020 09:13 AM (IST)Updated: Sun, 09 Feb 2020 09:13 AM (IST)
BRA Bihar University: इतिहास में निरंतर बदलाव की वजह से इसकी प्रासंगिकता कायम Muzaffarpur News
BRA Bihar University: इतिहास में निरंतर बदलाव की वजह से इसकी प्रासंगिकता कायम Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। इतिहास अतीत से जुड़ी विभिन्न घटनाओं, महत्वपूर्ण आंदोलनों, महान विभूतियों के व्यक्तित्व, कृतित्व  का अध्ययन है। भारतीय इतिहासकारों की इतिहास लेखन शैली में क्रमवार विकास हुआ। इतिहास की सबसे बड़ी खासियत है कि इसमें निरंतर बदलाव हो रहा है। इसके कारण इसकी प्रासंगिकता भी कायम है। ये बातें शनिवार को बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में बिहार इतिहास परिषद की ओर से आयोजित दो दिवसीय अधिवेशन में विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डॉ.निहार नंदन सिंह ने बतौर मुख्य अतिथि कहीं। उन्होंने कहा कि बिहार में इतिहास के क्षेत्र में विभिन्न बिंदुओं पर शोध की जरूरत है। मसलन, जमींदारी प्रथा का वर्तमान परिदृश्य पर क्या प्रभाव है यह भी शोध का विषय हो सकता है। बिहार में वर्तमान में भी जिस तरह से जातीयता का समीकरण हावी है उसके कारणों, प्रभाव आदि को भी इतिहास में शोध के माध्यम से हम नई पीढ़ी को अवगत करा सकते हैं। 

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 नियमावली का अध्ययन जरूरी

वर्तमान में इतिहास के शोधार्थियों के लिए जरूरी है कि वे शोध की नियमावली पर खुद को फोकस रखें। बिखरे हुए स्रोतों को समेट कर भी इतिहास लिखा जा सकता है। इससे पूर्व कार्यक्रम का उद्घाटन दीप प्रज्वलित कर किया गया। नगर विकास एवं आवास मंत्री सुरेश कुमार शर्मा ने कहा कि वर्तमान में इतिहास लेखन नीचे की ओर जा रहा है। जबकि इसका अतीत स्वर्णिम है। युवा शोधार्थियों को इसपर ध्यान देना चाहिए ताकि आने वाली पीढ़ी इस समय को याद रखे। उन्होंने वर्तमान परिदृश्य पर कारगर इतिहास लेखन की सलाह दी। डॉ.रत्नेश्वर मिश्र कहा कि बिहार में इतिहास को जीवंत रखने में इतिहास परिषद का योगदान महत्वपूर्ण है। 

कार्यक्रम के दौरान बिहार इतिहास परिषद की कार्य विवरणिका का भी विमोचन किया गया। कार्यक्रम को कुलपति डॉ.आरके मंडल समेत अन्य अतिथियों ने भी संबोधित किया।

बीआरएबीयू के पूर्व विभागाध्यक्ष इतिहास विभाग अपर्णा कुमारी ने बताया कि 'नए इतिहास के संदर्भ में बहुत सारे गुमनाम क्रांतिवीरों पर शोध की जरूरत है। इतिहास लेखन में मूल स्रोतों पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। लौकिक साहित्य, ग्रामीण दंतकथाओं से हम इतिहास को खोज सकते हैं।Ó

बीआरएबीयू के हरिश्चंद्र सत्यार्थी ने कहा कि  'इतिहास का निरपेक्ष रूप से अध्ययन होना चाहिए, ताकि घटनाओं और उसके कारणों पर मूल शोध हो सके।Ó 

भारतीय इतिहास शोध परिषद नई दिल्ली के पूर्व सदस्य प्रभात कुमार शुक्ला ने बताया कि 'तथ्यों पर आधारित इतिहास की ओर ध्यान आकृष्ट कराने की जरूरत है। क्षेत्रवाद व जातिवाद को ऐतिहासिक संदर्भ में देखने की जरूरत है।Ó 

नई दिल्ली जवाहरलाल नेहरू यूनिवर्सिटी की चेयरपर्सन डॉ. लता सिंह ने बताया कि 1920 और वर्तमान परिदृश्य में आजादी के मायने बदल गए हैं। सामान्य लोगों और वंचितों के सवालों को उठाने की जरूरत है। सोर्स को देखकर समझकर वस्तुनिष्ठ तरीके से पुनर्निर्माण करना पड़ेगा। दलितों और महिलाओं की आवाज कहां है, उनकी क्या स्थिति है, इसपर गहन शोध करने की जरूरत है। पूर्वाग्रह से ग्रसित होकर सही इतिहास नहीं लिखा जा सकता।Ó

दिल्ली विश्वविद्यालय  के डॉ. जेएन सिन्हा बताया कि 'गैर राजनीतिक इतिहास पर भी शोध की जरूरत है। पर्यावरण के विषयों पर भी अच्छे शोध किए जा सकते हैं।Ó

एलएस कॉलेज पूर्व विभागाध्यक्ष डॉ.भोजनंदन प्रसाद सिंह ने बताया कि 'नए इतिहासकारों को देखना चाहिए कि शिक्षा का क्षरण किस प्रकार हो रहा है। शिक्षा शुरू से इतिहास में शोध का विषय रहा है।Ó

पूर्व अध्यक्ष डॉ.सीपीएन सिन्हा ने कहा कि 'इस तरह के आयोजन से क्षेत्रीय शोधकर्ताओं में उत्साह आता है। यह आयोजन प्रतिवर्ष होना चाहिए ताकि इतिहास के शोधार्थियों को एक दिशा मिल सके।Ó

बीआरएबीयू  के कुलपति आरके मंडल ने कहा 'इतिहास का संबंध समाज और सामाजिक सरोकारों से रहा है। इस तरह के आयोजन अन्य विभागों में भी करने की जरूरत है, ताकि नए शोधार्थियों को एक दिशा मिल सके।

दरभंगा ललित नारायण मिथिला विवि रत्नेश्वर मिश्र ने कहा कि विभिन्न विषयों पर सम्यक शोध की जरूरत है। शोधार्थियों को इस ओर ध्यान देना चाहिए। इतिहास लेखन हर हाल में निरपेक्षतापूर्वक होना चाहिए।Ó 


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