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निर्जला एकादशी पर मिट्टी के घड़े व हाथ के पंखे का किया दान, महालक्ष्मी व श्रीहरि विष्णु का किया पूजन

Nirjala Ekadashi2020 निर्जला एकादशी के अवसर पर मंगलवार काे मुजफ्फरपुर में महालक्ष्मी व श्रीहरि विष्णु का पूजन कर लोगों ने किए दान-पुण्य। सनातन संस्कृति का निर्वहन।

By Murari KumarEdited By: Published: Tue, 02 Jun 2020 07:50 PM (IST)Updated: Tue, 02 Jun 2020 07:50 PM (IST)
निर्जला एकादशी पर मिट्टी के घड़े व हाथ के पंखे का किया दान, महालक्ष्मी व श्रीहरि विष्णु का किया पूजन
निर्जला एकादशी पर मिट्टी के घड़े व हाथ के पंखे का किया दान, महालक्ष्मी व श्रीहरि विष्णु का किया पूजन

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। निर्जला एकादशी के अवसर पर मंगलवार को श्रद्धालुओं ने सनातन संस्कृति का निर्वहन करते हुए व्रत रखा और दान-पुण्य किए। कोरोना महामारी के बीच इस बार लोगों ने एक नई पहल करते हुए जरूरतमंदों को मिट्टी के घड़े व हाथ के पंखे के साथ कई तरह के मौसमी फल, अंग वस्त्र आदि दिए। मीठा शरबत भी पिलाया। सुबह स्नानादि के बाद मां महालक्ष्मी व भगवान विष्णु के पूजन के बाद श्रद्धालुओं ने दान किया। घरों में सुबह से ही पूजन और दान का सिलिसला शुरू हो गया। 

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वार्ड पार्षद गायत्री चौधरी ने भी किए व्रत और दान

राहुल नगर, ब्रह्मपुरा स्थित वार्ड पार्षद गायत्री चौधरी व कथावाचक मनीष माधव जी महाराज के आवास पर 25 से अधिक जरूरतमंदों को दान दिए गए। पहले उन्हें मीठा शरबत पिलाया गया। फिर अंग वस्त्र ओढ़ाने के बाद मिट्टी के घड़ा, पंखा, कई तरह के मौसमी फल आदि दिए गए। हनुमान चालीसा की पुस्तक भी दी गई। मौके पर चाणक्य विद्यापति सोसायटी के संरक्षक पंडित शंभूनाथ चौबे, समाजसेवी हरिमोहन चौधरी, मदन प्रसाद सिंह, भवेश भारद्वाज, पंडित हरिशंकर पाठक, अमरेंद्र पांडेय, अमित तिवारी, टुल्लू तिवारी, रामबालक भारती, पवन तिवारी आदि भी थे।

जल संरक्षण का मिलता संदेश

वार्ड पार्षद ने बताया कि सनातन धर्म में एकादशी व्रत श्रीहरि को सर्वाधिक प्रिय माना गया है। वैसे तो हर साल 24 एकादशियां होती हैं, लेकिन इस साल अधिकमास होने के कारण इनकी संख्या 26 हो गई हैं। इनमें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की निर्जला एकादशी का व्रत सबसे कठिन और सबसे फलदायक माना गया है। जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है कि इस व्रत में पानी नहीं पीया जाता। केवल आचमन करने के लिए ही मुख में जल डाल सकते हैं। सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक जल का त्याग करना होता है। यह एकादशी यह भी बताती है कि जल का संरक्षण आवश्यक है। इस दिन जल का दान सबसे शुभ माना गया है। 

अनंत पुण्य की होती प्राप्ति

कथावाचक मनीष माधव जी महाराज ने बताया कि इस एकादशी व्रत की मुख्य विशेषता यह है कि इसमें निर्जल-निराहार उपवास किया जाता है। शीतल जल और चीनी से भरे घड़े, वस्त्र, हाथ के पंखे और छतरी का दान करना शुभ माना जाता है। दान में दी जाने वाली ये वस्तुएं गर्मी के मौसम के लिए उपयोगी होती हैं। भीषण गर्मी में खुद भूखे-प्यासे रहकर दूसरों का ख्याल रखना और निर्जल व्रत के साथ भगवान का ध्यान करते हुए उनका पूजन करना होता है। ऐसा करने से अनंत पुण्य की प्राप्ति होती है। 

मास्क और सैनेटाइजर का भी किया गया दान

उधर, सदातपुर में समाजसेवी शंभूनाथ चौबे ने इस कोरोना काल में लोगों को मीठा ठंड शर्बत पिलाने के साथ मास्क और सेनेटाइजर का भी दान किया। लोगों को महामारी से बचाव को लेकर जागरूक किया। बताया कि सनातन धर्म में दान की परंपरा रही है। यह महज संयोग ही है मंगलवार के दिन निर्जला एकादशी के साथ मां गायत्री का अवतरण दिवस भी है।

मां पार्वती ने भी रखा था व्रत

इधर, जगदंबा नगर, बैरिया के आचार्य अभिनय पाठक ने बताया कि निर्जला एकादशी का यह व्रत माता पार्वती ने भी रखा था। शास्त्रों में यह भी उल्लेख मिलता है कि दौपदी सहित सभी पांडव एकादशी का व्रत रखते थे। लेकिन भीम सबसे ज्यादा भोजनप्रिय थे, इसलिए एकादशी में उपवास का नियम उनके लिए कठिन था। इससे व्यथित होकर उन्होंने महर्षि वेदव्यास से समाधान पूछा। व्यासजी ने उन्हें ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी के दिन निर्जल-निराहार रहकर व्रत करने को कहा। इस व्रत के प्रभाव से अन्य एकादशियों में भूलवश खाए गए अन्न का दोष तो दूर होता ही है और साथ ही वर्ष भर की सभी एकादशी का पुण्य फल भी प्राप्त हो जाता है।


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