ऑनलाइन एजेंसी के भागने से हुई पीजी नामांकन में गड़बड़ी Muzaffarpur News
ऑनलाइन एजेंसी ने बीच में खींच लिया हाथ जैसे-तैसे पूरा हुआ काम। फुलप्रुफ नहीं था ऑनलाइन सिस्टम छात्रों को भ्ुागतना पड़ रहा खामियाजा।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। पोस्ट ग्रेजुएट (पीजी) सत्र 2018-19 में नामांकन के लिए ऑनलाइन सिस्टम लागू होने और जल्दबाजी के चक्कर में सब गुड़ गोबर हो गया। पहला यह कि कई विद्यार्थियों का चालान तो कट गया लेकिन, टेक्निकल प्रॉब्लम से फॉर्म सबमिट नहीं हो पाया। दूसरा अच्छे माक्र्स होने के बावजूद मेरिट लिस्ट से नाम छंट गया। फॉर्म फिलअप करने में बेस्ट च्वाइस सब्जेक्ट का ऑप्शन नहीं मिल सका। ऐसी गड़बड़ी को लेकर मची हायतौबा के बीच पड़ताल में एक दूसरी बात सामने आई है। पता चला है कि विश्वविद्यालय से मिथिला की उस एक एजेंसी के बीच तय डील पर बात नहीं बनने से सारी गड़बड़ी हुई है। और, इसका खामियाजा छात्र-छात्राओं को भुगतना पड़ रहा है।
मेरिट लिस्ट में गड़बडिय़ों की भरमार
दरअसल, उस एजेंसी को ही पीजी में एडमिशन के लिए ऑनलाइन प्रॉसेस पूरा करने का टेंडर मिला हुआ था। उसने विद्यार्थियों से अप्लाई फॉर्म सबमिट करवाने तक का काम तो पूरा किया, मगर मेरिट लिस्ट बनाकर जारी करने की बात जब आई, तो उसने एक शत्र्त रख दी। और, उस शर्त के पूरा नहीं होने पर उसने आगे के प्रॉसेस से अपना हाथ खींच लिया। ऐन वक्त पर विश्वविद्यालय मझधार में घिर गया। अब उसके सामने करो या मरो की नौबत आई तो एजेंसी का काम उसने अपने एक शिक्षक डॉ. सीकेपी शाही को सौंप दिया। फिर क्या था मेरिट लिस्ट में गड़बडिय़ों की भरमार हो गई। छात्रों से लेकर अधिकारी तक सब परेशान होकर रह गए हैं।
मेधावी छात्रों को गहरा धक्का
इन गड़बडिय़ों से मेधावी छात्रों को गहरा धक्का लगा है। विश्वविद्यालय यह बात भी कबूल करता है कि जिनका फॉर्म रिजेक्ट हुआ है उनमें से काफी सारे प्रतिभाशाली छात्र भी थे। एक तर्क उसका यह भी कि किसी ने ऑप्शन में ऑनर्स दे दिया पासकोर्स के बदले तो किसी का अप्लाई फॉर्म इनकंप्लीट था। नामांकन की तारीख खत्म करने में भी जल्दबाजी हुई। पहले 7 जुलाई तक थी जिसको घटाकर 2 जुलाई कर दिया गया। कॉलेजों से लेकर विश्वविद्यालय तक में गिनती के नामांकन नहीं हो पाए हैं। विश्वविद्यालय के विभागों में इकोनॉमिक्स में 13, इतिहास में 11, जूलॉजी में 5 नामांकन ही अब तक हो पाए हैं।
इस बारे में बीआरएबीयू प्रोवीसी डॉ. आरके मंडल ने कहा कि यह सही है कि मिथिला की उस एजेंसी ने अपना काम पूरा नहीं किया। बीच में ही काम छोड़कर चली गई। वह एजेंसी ग्रेजुएशन में ऑनलाइन प्रॉसेस काम भी चाह रही थी। ऐसा नहीं हो पाया। मेरिट लिस्ट डॉ. सीकेपी शाही से तैयार करानी पड़ी।