कमला नदी में छपरार घाट पर नहीं बना पुल, हजारों की आबादी चचरी के भरोसे
पुल निर्माण की मांग करते युवा हो गए वृद्ध। नहीं हुआ निर्माण। आवागमन की असुविधा से रिश्तेदारी नहीं करना चाहते बाहरी लोग। शहर के महज छह किलोमीटर की दूरी पर है छपरार घाट।
दरभंगा, [कुमार रोशन]। कमला नदी पर छपरार घाट मठ के निकट पुल निर्माण नहीं होने से कई गांवों का विकास अवरुद्ध है। नदी के दूसरी ओर रहने वाले ग्रामीणों को शहर जाने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। स्थिति इतनी विकट है कि ग्रामीण किसी तरह अपना जीवनयापन कर रहे हैं। लगभग 30 वर्ष से स्थानीय लोग पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं। निर्माण की मांग करते करते युवा तो बुजुर्ग हो गए लेकिन पुल का निर्माण नहीं हो सका। हालांकि विगत 8 मार्च को स्थानीय विधायक भोला यादव ने पुल का शिलान्यास किया। बात वहीं तक है। हजारों की आबादी बांस की चचरी के भरोसे हे।
दोगुनी दूरी तय कर शहर पहुंचते हैं ग्रामीण
शहर से छपरार कचहरी टोल की दूरी महज 6 किलोमीटर है। लेकिन, यह फासला महज दूरी मापने के लिए है। हकीकत यह है कि शहर आने के लिए ग्रामीणों को 15 से 16 किलोमीटर की दूरी तय करनी पड़ती है। नदी के दूसरी ओर यह गांव है। इस वजह से ग्रामीणों को टिनही पुल धोई घाट होते हुए शहर जाना पड़ता है। इस मार्ग से शहर की दूरी लगभग 15 से 16 किमी है। पुल बन जाने से कचहरी टोल के ग्रामीण महज 6 किमी की दूरी तय कर शहर पहुंच जाएंगे।
यह स्थिति सिर्फ छपरार कचहरी टोल की नहीं है बल्कि फतेहपुर, ङ्क्षपगी, गोडिय़ा, ब्रह्ममतरा, कमलपुर, घोरघट्टा आदि गांव की भी यही हालत है। उल्लेखनीय है कि किसी भी क्षेत्र के विकास में सड़क व पुल-पुलिया का विशेष महत्व होता है। इसके बिना लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करना लगभग असंभव है। ग्रामीणों का कहना है कि बिना पुल बने गांव का विकास नहीं हो सकता है। नदी में पानी रहने पर चचरी एवं जलस्तर बढऩे पर नाव है सहारा वर्तमान में छपरार कचहरी टोल, फतेहपुर, ङ्क्षपगी, गोडिय़ा, ब्रह्ममतरा, कमलपुर, घोरघट्टा आदि गांव के लोग चचरी पुल के सहारे आवागमन करते हैं।
कमला नदी में पानी कम रहने पर गांव के लोग आवागमन के लिए चचरी का पुल बना लेते हैं। इसी पुल को पार कर पैदल या साइकिल सवार शहर आते-जाते हैं। नदी का जलस्तर बनने पर यह व्यवस्था ठप हो जाती है। बांस की चचरी डूब जाती है या पानी के तेज बहाव में टूट जाता है। इसके बाद आवागमन के लिए नाव ही एकमात्र सहारा बचता है। नाव से नदी पार कर लोग शहर आते हैं।
बारिश होने पर सभी रास्ते हो जाते हैं बंद
बारिश के दिनों में स्थिति भयावह हो जाती है। छपरार कचहरी टोल से टिनही पुल तक भी कच्चा मार्ग है। जैसी ही बारिश होती है यह मार्ग भी अवरुद्ध हो जाता है। पैदल तो लोग बांस की चचरी के सहारे शहर पहुंच जाते हैं। बाइक या चारपहिया वाहन का रास्ता पूरी तरह बंद हो जाता है। ऐसी स्थिति में ग्रामीणों की स्थिति ऐसी हो जाती है मानो एक टापू पर उनकी ङ्क्षजदगी सिमट गई हो। स्वास्थ्य बिगडऩे पर भी मरीज को इलाज के लिए शहर लाना असंभव हो जाता है।
शिलान्यास हुआ, नहीं शुरू हुआ कार्य
8 मार्च 2019 को पुल का शिलान्यास किया गया है। स्थानीय विधायक भोला यादव ने पुल का शिलान्यास किया है। हालांकि ग्रामीणों का कहना है कि पुल निर्माण का कार्य शुरू नहीं हुआ है। पहुंच पथ का कार्य शुरू हुआ है।
पुल निर्माण की मांग करते युवा हुए बुजुर्ग
आवागमन को व्यवस्थित करने के लिए दशकों से ग्रामीण पुल निर्माण की मांग कर रहे हैं। कचहरी टोल के बुर्जुगों का कहना है कि लगभग 30 वर्ष से पुल निर्माण की मांग की जा रही है। मांग करते करते वह लोग युवा से वृद्ध हो गए लेकिन पुल नहीं बन सका। कई नेता आए और गए लेकिन पुल का निर्माण नहीं हो सका। चुनाव के समय कई नेता तो वादा करते हैं लेकिन धरातल पर कार्य नहीं हुआ। यहां तक की देखने भी नहीं आते हैं।
बाहर के लोग यहां नहीं करना चाहते हैं रिश्तेदारी
ग्रामीण नसीब लाल दास ने कहा कि रास्ता का हाल आप लोग देख ही रहे हैं। इस वजह से बाहर के लोग गांव में रिश्तेदारी भी नहीं करना चाहते हैं। रिश्ता तय करने आने वाले लोग कहते है आने जाने का मार्ग ही नहीं है तो गांव में रिश्तेदारी क्या करे। पुल बन जाने के बाद शहर से आवागमन सहज हो जाएगा। ग्रामीण सटहु दास ने कहा कि बारिश के दिनों में तो बाइक से भी जाना मुश्किल हो जाता है। चारपहिया वाहन की बात तो कीजिए ही नहीं।
पुल नहीं बनने से काफी परेशानी है। गांव में कोई अगर बीमार पर जाए तो शहर ले जाना काफी मुश्किल है। कम दूरी रहने के बाद भी शहर जाने के लिए सोचना पड़ता है। ग्रामीण रामप्रसाद पासवान ने कहा कि सबसे विकट स्थिति तो शादी विवाह में हो जाती है। समारोह के दौरान अगर बारिश हो गई तो जो वाहन जहां है वही फंस जाता है। कई बार मांग करने के बाद भी पुल नहीं बन सका। कुछ दिन पूर्व शिलान्यास तो हुआ है।
देखते है कब तक बनता है। ग्रामीण रामभरोस पासवान ने कहा कि गांव के लोग ही चचरी पुल बनाकर किसी तरह आते जाते हैं। बारिश के दिनों में काफी खतरा रहता है। नाव के सहारे नदी पार कर शहर जाना पड़ता है। नदी का जलस्तर बढऩे पर नाव से जाने में खतरा बना रहता है। पुल बन जाने से काफी राहत मिलेगी।