कचरे से घटी गंडक की गहराई, बढ़ रही पानी की लड़ाई
मानव जीवन के लिए जल की परम आवश्यकता के कारण ही शहरों का विकास नदियों के किनारे हुआ। लेकिन आज उन्हीं शहरों में रहने वाले लोग नदी के अस्तित्व के लिए ही चुनौती बन गए हैं।
मुजफ्फरपुर । मानव जीवन के लिए जल की परम आवश्यकता के कारण ही शहरों का विकास नदियों के किनारे हुआ। लेकिन आज उन्हीं शहरों में रहने वाले लोग नदी के अस्तित्व के लिए ही चुनौती बन गए हैं। नदियों में कचरे फेंके जा रहे हैं। गंदा पानी प्रवाहित किया जा रहा है। शहर की उत्तरी सीमा से होकर बहने वाली बूढ़ी गंडक नदी का भी यही हाल है। कचरे के कारण नदी की गहराई कम होती जा रही है। नदी में नाला का मुंह खोल इसे दूषित किया जा रहा है। नदी की गहराई घटने के साथ लोगों में पानी की जरूरतों को लेकर लड़ाई हो रही है। नदी की गहराई घटने से उसके तटीय इलाकों में भू-गर्भ जल का स्तर तेजी से घट रहा है। इसके कारण लोगों के घरों में लगे मोटर पंप एवं चापाकल जवाब दे जाते हैं और लोगों को पेयजल संकट का सामना करना पड़ता है। नदी का पानी प्रदूषित होने के कारण उसका उपयोग भी अब शहरवासी नहीं कर पा रहे हैं। प्रदूषण की मार से कराह रही बूढ़ी गंडक
बूढ़ी गंडक नदी प्रदूषण की मार से कराह रही है। प्रतिवर्ष 7.5 प्रतिशत की दर से वह प्रदूषित हो रही है। जिओलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की 2010 की रिपोर्ट में इसके प्रदूषण का स्तर 67 फीसद बताया गया था। यहां तक कि इसे उत्तर बिहार की सबसे अधिक प्रदूषित नदी बताया गया। इस प्रकार प्रदूषित हो रही नदी
- शहर से निकलने वाला गंदा पानी बगैर ट्रीटमेंट सीधे नदी में प्रवाहित किया जा रहा है।
- छोटी-बड़ी फैक्ट्रियों से निकलने वाला विषैला पदार्थ नदीं में प्रवाहित किया जा रहा है।
- मूर्ति विसर्जन के कारण नदी के पानी में पारा, लेड, सोडियम नाइट्रेट, प्लेटिनम, क्रोमियम आदि का सम्मिश्रण उसे प्रदूषित कर रहा है।
- नदी की पेटी में जमा हो रहा घातक पॉलीथिन, लकड़ी, पुआल एवं अन्य सामान से घट रही नदी की गहराई
- मृत पशुओं को रात के अंधेरे में सीधे नदीं में फेक दिया जाता है।
- नदी किनारे मल-मूत्र त्यागने, वह शहर का कचरा नदी में फेकने
- प्रशासन की अनदेखी, निगम की लापरवाही प्रदूषण के कारण पड़ने वाला प्रभाव
- अखाड़ाघाट, सिकंदरपुर तथा चंदवारा मोहल्लों के ग्राउंड वाटर में बढ़ी आर्सेनिक की मात्रा
- नदियों के किनारे बसे स्लम एरिया के लोग जलजनित रोगों का हो रहे शिकार
- रासायनिक कचरा पटने से जलीय जीवों का हो रहा नाश
- पानी में बढ़ रहे कारसियोजेनिक एवं टॉक्सिन की मात्रा। इसका सेवन करने वाले कैंसर जैसे घातक रोगों के शिकार हो सकते हैं।
कचरा जमा होने से अस्तित्व खो रही नदी चिकित्सक, डा ़ फिरोजुद्दीन ने कहा कि निगम प्रशासन को शहर का गंदा पानी नदी में प्रवाहित करने से पहले इसका ट्रीटमेंट करना चाहिए। वहीं आम लोगों को इसके लिए जागरूक करना होगा।
सामाजिक कार्यकर्ता,रंजन कुमार ने कहा कि पर्यावरण संरक्षण से जुड़े संस्थाओं को संयुक्त अभियान चलाकर बूढ़ी गंडक के प्रदूषण के कारणों को दूर करना होगा। जल संरक्षण के लिए यह जरूरी है।
संयोजक अंगना, दिव्या ने कहा कि
नदी की गहराई घट रही है। जिससे नदी नाला बनती जा रही है। अगर यही हाल रहा तो नदी सूखी नजर आएगी और इसका खामियाजा हमें भुगतना पड़ेगा।
व्यवसायी आशीष चौधरी ने कहा कि यदि नदी को नहीं बचाया गया तो शहरवासियों को पेयजल संकट का सामना करना होगा। नदी का पानी घटने के कारण आसपास भू-गर्भ जल का स्तर गिर रहा है।