गुम हो रही सिलवट बनाने की खटखट, हुनरमंद कारीगरों की कम हो गई संख्या
बेतिया चेक पोस्ट पर पुश्तैनी काम में लगे हुए है लोग, मिक्सी के दौर में घरों से यह गुम हो गई सिलवट, एक समय ऐसा था जब हर घर में सिलवट होती थी।
बेतिया, [संदेश तिवारी]। एक दौर था जब घर-घर में सिलवट होती थी। महिलाएं इस पर मसाला, चटनी और अन्य खाद्य पदार्थ पीसती थीं। मिक्सी के दौर में घरों से यह गुम तो हो ही गई, इसे बनाने वाले हुनरमंद भी दुश्वारी झेल रहे। इसके बाद भी बेतिया शहर के चेक पोस्ट पर इस पुश्तैनी काम में लगे कारीगर तन्मयता से बनाते हैं। पत्थर पर छेनी-हथौड़ी चलती है तो मनमोहक ध्वनि निकलती है। सिलवट, लोढ़ा बनाने के कार्य में लगे महेश और योगेंद्र ने बताया कि एक दिन में वे महज एक से दो सेट ही बना पाते हैं।
बारीकी से पत्थर को तोड़ा जाता है। दिनभर छेनी और हथौड़ी चलाकर महज 50 से 100 रुपये कमाई हो पाती है। शिल्प से जुड़े होने के बावजूद कोई सहायता नहीं मिल पाई है। बहुत से लोग धीरे-धीरे पुश्तैनी कार्य से किनारा कर चुके हैं। शहर में तो बिक्री नहीं होती, लेकिन ग्रामीण क्षेत्रों में कुछ मांग है। इसी के भरोसे काम चल रहा। सिलवट, लोढ़ा बनाने वाले अन्य कारीगरों ने बताया कि मांग कम हो रही। सही दाम नहीं मिलने से मुनाफा नहीं के बराबर होता है। सिर्फ मजदूरी ही मिल जाए, यही बहुत है।
बीमारी से ग्रसित हो रहे लोग
पहले लोग मसाला घरों में पीसकर खाते थे। अब रेडीमेड उपयोग करते हैं। इसमें मिलावट के कारण कई बीमारियां होने की आशंका रहती है। चिकित्सक डॉ. कमरुजमा का कहना है कि हर मामले में परंपरागत चीजों का त्याग हितकर नहीं। सिलवट पर मसाला पीसना एक तरह से व्यायाम था। अधिकांशत: सुबह-शाम में ही इसका इस्तेमाल होता था, इसलिए यह और सही था। इससे रीढ़ संबंधी परेशानी कम होती थी।