दरभंगा: 23 वर्षों से नहीं निकला इस चीनी मिल से धुआं, होती रही राजनीति
मुख्यमंत्री समेत तमाम दलों ने की दरभंगा की रैयाम चीनी मिल की दशा बदलने की बात नहीं कर पाए काम। हजारों टन चीनी का उत्पादन करनेवाली यह मिल आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है ।
दरभंगा, [विजय कुमार राय]। सूबे की बनती बिगड़ती राजनीति में हमेशा उद्योग-धंधों पर बात हुई। बंद पड़ी चीनी मिलों को नया जीवन देने की बात हुई। लेकिन, बिहार के दरभंगा जिले की रैयाम चीनी मिल से पिछले 23 साल में धुआं नहीं निकला। लोग इंतजार करते रहे और वर्ष 2020 में भी रैयाम चीनी मिल की चिमनी से धुंआ नहीं निकला । कभी यह क्षेत्र की फिजाओं में मिठास भरने में सक्षम थी। किसानों में उल्लास भर रही थी। लेकिन अब तो पूरे 23 वर्ष हो गये इसकी चिमनी से घुंआ निकले । ऐसे में क्या मिठास और क्या उल्लास ।
दरभंगा और मधुबनी में किसानों ने बंद की गन्ने की खेती
हजारों टन चीनी का उत्पादन करनेवाली यह मिल आज अपनी दुर्दशा पर आंसू बहाने को मजबूर है। मिल के सहारे अपनी दशा सुघारने वाले किसान मायूस है। इस मिल से न केवल दरभंगा बल्कि मघुबनी जिले के भी हजारों किसान जुड़े थे। बड़े पैमाने पर गन्ने की खेती होती थी, लेकिन जब से मिल बंद हुई गन्ने की खेती भी घीरे-घीरे कम होने लगी। नीतीश सरकार ने बंद चीनी मिल को चालू करने की बात कही थी, जिससे इलाके के लोगों तथा किसानों में एक बार फिर आश जगी। लेकिन, उस घोषणा की हवा निकल गई ।
1914 में हुई थी स्थापना, कई बार नेतृत्व बदला
अपनी गुणवत्ता के लिए प्रसिद्ध मेसर्स वेश सदर लैंड ने रैयाम चीनी मिल की स्थापना 1914 में की थी। आजादी के बाद इसका संचालन रैयाम सुगर कारपोरेशन द्वारा किया गया। लेकिन 4 जून 1977 से मिल का प्रबंधन क्रमशः तिरहुत कापरेटिव सुगर फैक्ट्री लिमिटेड तथा बिहार राज्य सुगर कार्पोरेशन द्वारा किया गया ।
एक लाख हेक्टेयर से ज्यादा थी गन्ने की खेती
इस मिल का क्रय केंद्र ( राटन ) रेल लाइन व सड़क मार्ग बनायें गयें थे। सड़क मार्ग में बसबरिया , औसी जीरो- माईल , ननौरा, मुहम्मदपुर आदि जबकि रेलमार्ग में मुक्कदमपुर लोआम व मुरिया था। इस क्षेत्र में तब 1 लाख हेक्टेयर से अधिक भूखंड में होती थी ईख की खेती। मिल में अघिकतम गन्ना पेराई सलाना 12 लाख क्विंटल तक होती थी जिससे 1. 25 लाख बोरि चीनी तैयार होती थीमिल में 135 स्थायी व मौसमी 554 तथा आकस्मिक व दैनिक भोगी 125 कर्मचारी कार्यरत थे।मिल में पेराई सत्र 1992 - 93 तक चला । 1994 से मिल बंद हो गया । मिल पर गन्ना लाने के लिए करीब 10 किमी ट्राली लाइन रैयाम से मुक्कदमपुर व करीब 12 किमी रैयाम से मुरिया तकनीकी बिछाया गया । ट्राली से मुक्कदमपुर व मुरिया गन्ना केंद्र से गन्ना लादकर मिल पहुंचाया जाता था । मिल की चीनी अपनी गुणवत्ता के लिए काफी प्रसिद्ध थी और वह विदेशों में भेजी जाती थी।
बदला नेतृत्व फिर भी उम्मीदों पर फिरा पानी
2010 के 16 अप्रैल को सूबे के तत्कालीन ईख आयुक्त सह बिहार स्टेट सुगर कारपोरेशन लिमिटेड के प्रबंध निदेशक ने मिल का हस्तांतरण तिरहुत इंडस्ट्रीज को करते हुए उसी वर्ष 19 अप्रैल को बजाप्ता समारोह आयोजित कर मिल की चाबी इंडस्ट्रीज के प्रबंध निदेशक प्रदीप चौधरी को सौंप दी। उस समय सप्ताह भर में मिल का पुर्ननिर्माण शुरू करने व दिसम्बर 2011 से उत्पादन शुरू करने की बात कही गई थी, लेकिन यह बात जमीन पर नहीं उतरी ।
छिन गया अर्थ व्यवस्था का आधार
कर्जापट्टी के किसान इन्द्रकुमार चौधरी ने बताया कि मिल के जमाने में किसानों की मुख्य फसल गन्ना थी ।उससे उन्हें एकमुश्त नकदी की आमदनी होती थी , जो उनकी अर्थ व्यवस्था का आघार था । किसान घर बनाने से लेकर शादी - विवाह तक इस आमदनी से करते थे।मिल बंद होने के बाद अब किसानों के पास पारंपरिक खेती के अलावा कोई विकल्प नहीं है। अब तो अघिकांश किसानों ने इनकी खेती करना ही छोड़ दिया है। बग्घा के किसान कृष्ण कुमार यादव का कहना है कि मिल बंद होने से किसानों का नकदी फसल का जरिया समाप्त हो गया है।एक बार गन्ना लगाने से दो वर्ष तक उससे उपज मिलती थी, जिससे किसानों को समय एवं साघन बचत होती थीऔर अच्छी नकद आमदनी हो जाती थी। किसानों के आमदनी का बड़ा श्रोत अब समाप्त हो गया है। बरही के किसान रामपुकार यादव ने बताया कि तिरहुत इंडस्ट्रीज को हस्तांतरण होने के बाद कुछ आस जगी थी कि अब हमलोगों की नकदी फसल का उचित दाम मिलेगा । लेकिन नौ वर्ष बीतने के बाद भी मिल चालू नहीं हुआ, जिससे किसानों के मंसूबे पर पानी फेर दिया ।
बोले विधायक, विधानसभा में उठाएंगे मुद्दा
2020 के विधानसभा चुनाव में पहली बार निर्वाचित केवटी के विधायक डाॅ. मुरारी मोहन झा कहते हैं मिल चालू हो इसके लिए सरकार के स्तर पर पहल कराने की कोशिश की जाएगी । साथ ही इस मुद्दे को विधानसभा में भी उठाया जाएगा।