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ज्ञान की रोशनी से गरीबी के अंधेरे को भगाने की कोशिश में जुटीं साइकिल गर्ल ज्योति

दुनियाभर में ‘साइकिल गर्ल’ के नाम से मशहूर दरभंगा की ज्योति को शिक्षा के क्षेत्र में आगे जाने की चाह कोरोना संक्रमण के बीच घर में ही किताबों को बनाया साथी।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 12:25 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 06:37 AM (IST)
ज्ञान की रोशनी से गरीबी के अंधेरे को भगाने की कोशिश में जुटीं साइकिल गर्ल ज्योति
ज्ञान की रोशनी से गरीबी के अंधेरे को भगाने की कोशिश में जुटीं साइकिल गर्ल ज्योति

दरभंगा, [संजय कुमार उपाध्याय] । दरभंगा-सीतामढ़ी मार्ग (एसएच-75) के एक किनारे पर बसा सिरहुल्ली गांव पिछले कुछ माह से चर्चा में है। दरअसल यह ग्रामीण मोहन पासवान की बेटी ‘ज्योति’ को लेकर चर्चा में है। वहीं ज्योति जो साइकिल गर्ल के नाम से मशहूर हो गई हैं। उन्होंने 14 साल की उम्र में पितृभक्ति की ऐसी मिसाल पेश की है कि दुनिया उनकी मुरीद है। ज्योति के घर - आंगन में अब सबकुछ सामान्य हो गया है। हल्की बारिश में होने से भी कीचड़ हो जाता है। एक कमरे में पांच भाई बहन और माता-पिता। कोरोना संक्रमण के बीच शारीरिक दूरी के नारों का शोर यहां अपनी प्रासंगिकता खोता महसूस होता है।

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सफल नागरिक बनाने की कोशिश 

मोहन पासवान ने अपनी बेटी ज्योति के लिए उसी एक कमरे में पढ़ाई-लिखाई का इंतजाम कर रखा है। एक वक्त जब ज्योति छठी कक्षा में थी तो उसे मजबूरन स्कूल छोड़ना पड़ा था। बताते हैं- ‘तब गरीबी थी। बेटी गांव के स्कूल में पढ़ती थी। स्कूल छूटा जरूर। लेकिन, दृढ़ निश्चय ने उसे इस मुकाम पर पहुंचाया। आगे मैं स्वयं काम करूंगा। अपनी बिटिया रानी को पढ़ा-लिखाकर सफल नागरिक बनाने की कोशिश करूंगा।’

फिर मिला स्कूल तो खुशी का नहीं रहा ठिकाना

चौदह साल की ज्योति को कॅरियर की बातें समझ में आ गईं हैं। कहती हैं- मैंने वहीं किया जो मेरा फर्ज था। लॉकडाउन में मैं अपने पिता को लेकर हरियाणा के गुरुग्राम से साइकिल से गांव आई। इसके बाद मेरे परिवार को कई लोगों ने मदद दी। फिर से मेरा नामांकन प्लस टू उच्च विद्यालय पिंडारूच में नवीं कक्षा में हो गया। फिलहाल स्कूल बंद है। लेकिन, मैं घर पर पढ़ती हूं। मेरा मन तो देवी सरस्वती की पूजा में लगता है। वैसे मेरी कहानी पर फिल्म बनाने की बात हो रही है। कोई साइकिल रेस में शामिल कराने की बात कह रहा। लेकिन, ये सारी बातें अलग। शिक्षा अलग। पहले शिक्षित होना चाहती हूं। शिक्षित होकर आगे बढ़ना है। पिता का सम्मान दुनिया में बढ़ाना है।

लॉकडाउन में उन पांच सौ रुपयों की कीमत नहीं

ज्योति उस दिन को याद कर रो पड़ती हैं। कहती हैं मेरे पिता बीमार थे। गुरुग्राम में कोई सहारा नहीं था। मेरे खाते में सरकारी मदद आई। एक हजार की। मैंने पिता से कहा- पांच सौ की एक साइकिल लीजिए। हम गांव चलते हैं। पिता को हरियाणा के गुड़गांव से गांव की दूरी (1200 किमी) का अंदाजा था। सो, वे इन्कार कर गए। मैंने मनाया। वो राजी हुए। साइकिल की तलाश की तो पता चला कि एक हजार में मिलेगी। फिर जैसे-तैसे पांच सौ रुपये में खरीद गांव पहुंचे। यहां आए तो लोगों ने हमारा स्वागत किया। मदद दी। लेकिन, सरकारी सहयोग के रूप में मिले उन पांच सौ रुपयों की कीमत अनमोल है, जिसके दम पर हम घर आ गए। सरकार ने वाकई कोरोना काल में लोगों को मदद दी। इसमें पीएम नरेंद्र मोदी और बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की जन के लिए चिंता अहम रही।

मायानगरी में बन सकती है पहचान

दरभंगा के सिरहुल्ली गांव की हवा में मोहन पासवान की बिटिया ज्योति के दर्द और हौसले दोनों की कहानी है। इस कहानी में गुरबत और आंख से नहीं निकलनेवाले आंसू हैं। हौसले के बूते दर्द को मात दे जानेवाली बाप-बेटी की इसी प्रेम कहानी पर अब फिल्म बनने जा रही है। उत्तर प्रदेश के नोएडा की भागीरथी फिल्मस प्राइवेट लिमिटेड ने मोहन के साथ करार किया है। इस तरह से आंसुओं की कीमत पर ज्योति मायानगरी की दहलीज पर पहुंची है। तमन्ना बस इतनी है कि मायानगरी के तिलिस्म से आगे निकलकर यहां भी अपनी अमिट पहचान कायम करे।

गुरुग्राम से साइकिल चलाकर आई दरभंगा तो हुई र्चचित

दरभंगा के सिरहुल्ली गांव निवासी मोहन पासवान के पांच बच्चों में ज्योति दूसरे स्थान पर है। 26 जनवरी 2020 को मोहन हरियाणा के गुरुग्राम में ई-रिक्शा चलाते हुए एक हादसे का शिकार हो गए थे। उनका परिवार जैसे-तैसे 1 फरवरी को गुरुग्राम पहुंचा। सभी लोग 11 फरवरी को वापस आ गए पर ज्योति पिता के पास रह गई। इस बीच कोरोना का संक्रमण पूरी दुनिया में फैला। देश में 25 मार्च को हुए लॉकडाउन के कारण बाप-बेटी के सामने भूख से मरने की स्थिति हो गई। फिर सरकार से मिली एक हजार रुपये की मदद में से बेटी के कहने पर मोहन ने 500 की साइकिल खरीदी। उसी साइकिल से ज्योति अपने पिता को लेकर आठ दिनों में 1200 किलोमीटर का सफर तय कर गांव आई। यहां आने के बाद समाज ने सराहा। फिर देश ही नहीं पूरी दुनिया में ज्योति के हौसले की पूजा हुई। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की बेटी इवांका ट्रंप ने भी ज्योति की सराहना की।

एक कमरे में रहने की मजबूरी

कई लोगों की मदद के बाद भी ज्योति फिलहाल अपने पूरे परिवार के साथ एक कमरे में रहने को मजबूर है। देश और दुनिया से मिले प्यार ने चौदह साल की ज्योति को उम्मीद दी है कि आगे भी रहमत की बारिश होगी। एक दिन वह साइकिल रेस में चैंपियन बनेगी। ज्योति बताती हैं- ‘अभी पढ़ाई करनी है और आगे बढ़ना है। साइकिलिंग की दुनिया में आगे बढ़ने के लिए दरभंगा के एसएसपी बाबू राम ने एक ट्रेनर दिया है। उनके साथ अभी ट्रेनिंग शुरू नहीं हुई है। फिल्म बननी है। कैसे बननी है और कब बननी है। इसकी जानकारी नहीं है।

दरभंगा के जिलाधिकारी डॉ. त्यागराजन एसएम ने कहा कि छठी कक्षा के बाद ज्योति की पढ़ाई बीच में बाधित हुई थी। इस बात की जानकारी मिलने के बाद उनका नामांकन नवीं कक्षा में करा दिया गया है। आगे शिक्षा के क्षेत्र में बच्ची बेहतर करे। इस दिशा में काम किया जा रहा है। 


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