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प्रशासनिक उदासीनता के जाल में उलझा आथर घाट पुल का निर्माण, नहीं मिला जमीन का मुआवजा

17 किसानों ने निराश होकर निर्माण कार्य रोका। दो वर्ष विलंब से चल रहा कार्य। जून तक नहीं हुआ कार्य पूरा तो करना होगा अगले साल का इंतजार।

By Ajit KumarEdited By: Published: Wed, 10 Apr 2019 09:19 AM (IST)Updated: Wed, 10 Apr 2019 09:19 AM (IST)
प्रशासनिक उदासीनता के जाल में उलझा आथर घाट पुल का निर्माण, नहीं मिला जमीन का मुआवजा
प्रशासनिक उदासीनता के जाल में उलझा आथर घाट पुल का निर्माण, नहीं मिला जमीन का मुआवजा

मुजफ्फरपुर, [उमाशंकर]। हमारी प्रशासनिक व्यवस्था संवेदनशून्य है। बात एक आदमी के हित की हो या 15 लाख लोगों के, उनकी कार्यशैली में कोई बदलाव नहीं आता। जो कार्य आज से दो वर्ष पहले पूर्ण हो जाना चाहिए, अब तक अधूरा है। हम बात कर रहे आथर घाट पुल की। लंबे जनांदोलन के बाद बूढ़ी गंडक नदी पर पुल निर्माण की सरकार ने स्वीकृति दी थी। 22 नवंबर 2014 को काम आरंभ हुआ, लेकिन मामला मुआवजा के मुद्दे पर फंस गया।

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   केवल 17 किसानों को समय पर मुआवजा नहीं मिलने के कारण काम बंद है। यदि बारिश से पहले इसे पूरा नहीं किया गया तो फिर अगले साल तक इंतजार करना होगा। मामला बोचहां अंचल का है। यहां के लोगों ने एसडीओ पूर्वी से लेकर डीसीएलआर तक का दरवाजा खटखटाया, लेकिन संतोषजनक जवाब नहीं मिला है।

बरसात में टापू बन जाता गांव

बारिश के दिनों या बाढ़ के समय आथर गांव ही नहीं, आसपास के अन्य इलाके जिला मुख्यालय से पूरी तरह कट जाते हैं। यह टापू बन जाता है। उस समय शर्फुद्दीनपुर या बिंदा रूट भी सुरक्षित नहीं माना जाता। ऐसी स्थिति में केवल नाव ही सहारा रह जाता है। हालांकि इस मजबूरी का फायदा उठाने से नाविक भी नहीं चूकते। वे आर्थिक दोहन करते हैं। कई मामलों में तो पूरी मनमर्जी करते हैं।

पीपा पुल के सहारे आवागमन

वर्तमान में पीपा पुल के सहारे आवागमन हो रहा। इसके लिए भी अलग से खर्च देना पड़ता है। साइकिल के लिए पांच एवं मोटरसाइकिल के लिए 10 रुपये। चारपहिया के लिए अलग दर है। उसके बाद करीब डेढ़ किमी तक बालू में पैदल चलना पड़ता है। बारिश का दिन बहुत कष्टदायक होता है। विमलेश राय, राम पुकार सहनी, नवल महतो, पूर्व मुखिया योगेंद्र महतो और हैदर अली ने बताया कि किसी भी जनप्रतिनिधि ने इस पुल की ओर ध्यान नहीं दिया। प्रशासनिक अधिकारियों को तो इससे मतलब नहीं।

भूअर्जन में फंसा पेच

यदि प्रशासन ने उपेक्षा नहीं की होती तो यह पुल तय समय में बन गया होता। अब भूअर्जन में पेच फंसा है। बोचहां अंचल एवं डीसीएलआर कार्यालय के बीच कुछ कागजात के कारण मामला अधर में है। न सीओ का ध्यान इस ओर है और न डीसीएलआर पूर्वी का। चुनाव में स्थानीय लोगों के लिए यह बड़ा मुद्दा है।

मात्र एक स्लैब बनना शेष

इस पुल के निर्माण कार्य का शुभारंभ 22 नवंबर 2014 को तत्कालीन पथ निर्माण मंत्री ललन सिंह ने किया था। इस कार्य के पूर्ण होने की तिथि से दो वर्ष अधिक का समय गुजर गया, लेकिन काम अधूरा है। मुआवजा नहीं मिलने पर किसानों ने मात्र एक स्लैब के निर्माण कार्य पर रोक लगा दी है।

इन्हें अब तक नहीं मिला मुआवजा

जिन किसानों का मुआवजा नहीं मिला है उनमें बतहू सहनी, लोचन ठाकुर, सरयुग महतो, विजयी सहनी, बुद्धू सहनी, सौखी सहनी, शिव गोविंद ठाकुर, जलधर ठाकुर, जूलुम सिंह, रामलखन सिंह, देव लाखो कुंवर, रामाशीष सहनी, प्रभु सहनी और राम स्वरूप सहनी शामिल हैं। जनांदोलन के बाद मिली थी स्वीकृति पुल निर्माण के लिए तीन से चार बार आथर निवासी व समाजसेवी देवव्रत सहनी ने 10 दिनों से अधिक समय तक आमरण अनशन किया था।

   जब जल समाधि की घोषणा हुई तो तत्कालीन डीएम अनुपम कुमार एवं एसएसपी भारी पुलिस बल के साथ आथर घाट पहुंचे थे। यहां तक आने में डीएम को काफी कठिनाई का सामना करना पड़ा था। इसके बाद उन्हें लोगों के कष्ट का अनुभव हुआ। फिर पुल निर्माण का काम आरंभ हो सका था।

पांच लाख आबादी को फायदा

इस पुल के बन जाने से करीब पांच लाख से अधिक की आबादी को सीधा लाभ मिलेगा। बोचहां, गायघाट, औराई, कटरा, दरभंगा, मधुबनी से पटना जाने वाले यात्री आथर होकर द्वारिका नगर चौक से सिलौत होते हुए सीधे महुआ रोड पहुंच जाएंगे। उन्हें मुजफ्फरपुर शहर जाने की जरूरत नहीं होगी। इससे करीब 15 से 20 किमी दूरी कम हो जाएगी। इस मामले में बिहार राज्य पुल निर्माण निगम के कार्यपालक अभियंता गोपाल प्रसाद सिंह एवं सहायक अभियंता राजेंद्र सिंह ने बताया कि प्रयास जारी है। जल्द ही मामले को सुलझा कर निर्माण कार्य शुरू किया जाएगा।


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