पार्षदों का एक साल पूरा, वार्ड के विकास का वादा अधूरा
वार्ड के विकास एवं वार्डवासियों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का सपना दिखाकर शहर के 49 वार्डो से चुनकर आएं पार्षदों का साल पूरा हो गया। लेकिन, एक साल में वे जनता से किए गए वादों में से एक भी पूरा नहीं कर पाए।
मुजफ्फरपुर । वार्ड के विकास एवं वार्डवासियों को बुनियादी सुविधाएं उपलब्ध कराने का सपना दिखाकर शहर के 49 वार्डो से चुनकर आएं पार्षदों का साल पूरा हो गया। लेकिन, एक साल में वे जनता से किए गए वादों में से एक भी पूरा नहीं कर पाए। निगम में उनकी अहमियत इसी बात से लगाई जा सकती है कि वे निगम कार्यालय में अपने बैठने के लिए एक कक्ष तक नहीं बनवा सकें। सड़क एवं नाला निर्माण और जलापूर्ति सुविधाएं बहाल कराने की बात तो कोसों दूर है।
शहरवासियों ने 382 उम्मीदवारों में से चुना था 49 पार्षद
स्मार्ट सिटी का दर्जा प्राप्त कर चुके 3.54 लाख की आबादी वाले शहर के 2.52 लाख मतदाताओं ने एक साल पूर्व आज ही के दिन 382 उम्मीदवारों के बीच से 49 लोगों को चुनकर पार्षद की कुर्सी सौंपी थी। 49 वार्डो में 27 पर महिलाओं की जीत हुई थी। कोई पहली बार चुना गया था तो कोई चौथी बार। कोई महापौर बना तो कोई उपमहापौर। कई सशक्त स्थाई समिति के सदस्य भी बने, लेकिन उनके एक साल के कार्यकाल की बात करें तो सभी जनता के विश्वास पर खरे नहीं उतरे।
कुर्सी मिलते ही भूल गए वादा
चुनाव प्रचार के दौरान चुने गए पार्षदों ने वार्ड के विकास का एक से बढ़कर एक वादा किया था। जलजमाव से मुक्ति दिलाने को नालियों को जाल बिछाएंगे। कच्ची गलियों का पक्कीकरण किया जाएगा। वार्ड के लोगों की प्यास बुझाने को घर-घर पानी पहुंचाएंगे। मच्छरों के दंश से मुक्ति दिलाई जाएगी। वार्ड को स्वच्छ, स्वस्थ एवं सुंदर बनाएंगे। जरूरतमंदों को सरकारी योजनाओं का लाभ दिलाएंगे। सफाई व्यवस्था को बेहतर बनाएंगे। वार्ड की सूरत बदल देंगे। वार्ड की हर गली को रोशन कर देंगे। जनता ने उनपर विश्वास किया और चुनकर पार्षद की कुर्सी सौंप दी। लेकिन, कुर्सी मिलते ही वे अपना वादा भूल गए। एक साल में एक वादा भी पूरा नहीं कर पाए।
झेलनी पड़ी वार्ड के जनता की नाराजगी
ऐसा नहीं कि पार्षद वार्ड का विकास नहीं चाहते और उन्होंने प्रयास नहीं किया। उन्होंने योजनाएं भी बनाई। वार्ड की समस्याओं को भी उठाया। लेकिन, निगम के अधिकारियों व कर्मचारियों ने पार्षदों को कभी अहमियत नहीं दी। अधिकारियों ने पार्षदों के विकास प्रस्तावों की अनदेखी की और कर्मचारियों ने उनके द्वारा उठाई गईं समस्याओं को नजर अंदाज किया। पार्षदों को छोटी-छोटी समस्याओं के हल के लिए भी आम जनता की तरह निगम अधिकारियों व कर्मचारियों के समक्ष याचना करनी पड़ी।
एक साल पार्षदों का बुरा हाल
- वार्ड के एक भी लाभुक को नहीं दिला सके आवास योजना का लाभ
- लोगों की प्यास बुझाने को लोगों के घरों तक नहीं पहुंचा पाए पानी
- आधा दर्जन वार्डों को छोड़ दें तो किसी भी वार्ड में नहीं हुआ एक भी सड़क व नालियों का निर्माण
- नई वेपर लगाना तो दूर, खराब वेपरों की भी नहीं हो सकी मरम्मत
- वार्ड के गली-मोहल्लों को जलजमाव से नहीं दिला पाए मुक्ति
- मच्छरों के दंश एवं आवारा पशुओं की मार से नहीं दिला सके मुक्ति
- सफाई की व्यवस्था में नहीं ला पाए सुधार
- निगम कार्यालय में नहीं बनवा पाए पार्षद कक्ष
वार्ड की जनता को नहीं दिला पाए सरकारी योजनाओं का लाभ