पश्चिम चंपारण में विशेषज्ञोंं की देखरेख में हो रही जलवायु अनुकूल खेती, जानिए कैसे
पश्चिम चंपारण की नौतन प्रखंड की पांच पंचायतों कीं 450 एकड़ भूमि में 550 किसानों ने विशेषज्ञोंं की देखरेख में जलवायु अनुकूल खेती की है। कृषि विज्ञान केंद्र माधोपुर और नरकटियागंज की संयुक्त पहल पर इसे अंजाम दिया गया है। इसके बेहतर परिणाम आ रहे।
पश्चिम चंपारण, जागरण संवाददाता। कृषि विज्ञान केंद्र्र माधोपुर व नरकटियागंज की संयुक्त पहल पर इन दिनों जिले में जलवायु अनुकूल खेती पर काम किया जा रहा है। इसके तहत नौतन प्रखंड की पंचायतों को क्लस्टर के रूप में चयनित कर जीरो टिलेज पद्धति को अपनाया गया है। इसमें जीरो टीलेज विधि से गेहूं की खेती करने के साथ-साथ मक्का एवं आलू की अंतरवर्ती खेती की गई है। इसके अलावा मसूर एवं रेज्ड बेड मक्के की फसल भी लगाई गई है।
क्लस्टर के रूप में चयनित पंचायतों में की गई खेती का सबसे अहम पक्ष यह है कि इस खेती की एक-एक प्रक्रिया कृषि विशेषज्ञोंं की देखरेख से गुजर रही है। नौतन प्रख्ंड के पांच पंचायतों में पकडिय़ा, बैकुंठा, झखरा, गहिरी व तेल्हुआ में 450 एकड़ में विभिन्न फसल लगाई गई हैं, जिसमें 550 किसानों की सहभागिता है। कृशि विज्ञान केंद्र के वैज्ञानिक डॉ. धीरू तिवारी के अनुसार खेती के प्रारंभिक दौर में बेहतर परिणाम सामने आ रहे हैंं।
प्राकृतिक संसाधनों को बेहतर तरीके से किया जा रहा इस्तेमाल :
इस परियोजना में की जाने वाली खेती में प्राकृतिक संसाधनों को बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया जा रहा है। यानी खेती के दौरान इसके विभिन्न इनपुट के जरिये दिए जाने वाली खाद, बीज व कीटनाशी दवाओं का प्रयोग बेहतर ढंग से होता है। इस पद्धति में सबसे ज्यादा बल जीरो टीलेज पद्धति पर दिया जा रहा है। इसमें किसानों के द्वारा जीरो टीलेज विधि से 300 एकड़ में गेहूं की खेती की गई है। वहीं मक्का व आलू की अंतरवर्ती खेती के लिए 30 एकड़ भूमि ली गई है। 70 एकड़ जमीन पर रेज्ड मक्का की खेती की गई है और 50 एकड़ में मसूर की खेती के लिए जीरो टीलेज पद्धति व्यवहार में लिया गया है। वहीं फसलों में दी जाने वाली सिंचाई पर भी ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है, ताकि किसानों को कम सिंचाई देने पर ज्यादा उत्पादन हो सके।
जलवायु परिवर्तन के प्रतिकूल प्रभाव से बचने को अपनाई जा रही यह पद्धति :
जलवायु में हो रहे बदलाव एवं इसके चलते खेती पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव से बचने के लिए यह पद्धति अपनाई गई है। इस विधि को सफल पाए जाने के बाद इसे अन्य किसानों के लिए अनुशंसित कर दिया जाएगा। इधर कृशि विज्ञान केंद्र के समन्वयक व वरीय वैज्ञानिक डॉ. एसके गंगवार के अनुसार फिलहाल इस पद्धति के बेहतर परिणाम आ रहे हैंं। अंतिम रूप से परिणाम आने के बाद अन्य किसानों को भी इसे अपनाने को प्रेरित किया जाएगा।