मुजफ्फरपुर के मास्टरजी जो आनलाइन पढ़ाने में फिसड्डी, इंटरनेट मीडिया पोस्ट करने में अव्वल
BRABU Muzaffarpur गुरुजी कहते हैं कि तीन वर्षों से यही माहौल बना हुआ है। वे पुराने जमाने वाले पैटर्न के विशेषज्ञ हैं ऐसे में उन्हें नया पैटर्न नहीं भा रहा है। दूसरी ओर गुरुजी की हर पल की तस्वीरें इंटरनेट मीडिया पर शेयर होती रहती हैं।
मुजफ्फरपुर, [अंकित कुमार]। BRABU, Muzaffarpur: तीन वर्षों से गुरुजी चांदी काट रहे हैं। मुख्यालय के सबसे बड़े ज्ञानकेंद्र के विज्ञान विभाग में नियुक्त गुरुजी खुद को तकनीकी रूप से कमजोर बता कोरोना काल में वादियों की सैर के लिए निकल गए हैं। हाकिम का निर्देश भी इनपर लागू नहीं होता क्योंकि ये अपने को हाकिम से कम नहीं मानते। जब उनके चेलों ने फोन पर उनसे आनलाइन मार्गदर्शन मांगना शुरू किया तो वे बिफर गए। गुरुजी कहते हैं कि तीन वर्षों से यहीं माहौल बना हुआ है। वे पुराने जमाने वाले पैटर्न के विशेषज्ञ हैं ऐसे में उन्हें नया पैटर्न नहीं भा रहा है। दूसरी ओर गुरुजी की हर पल की तस्वीरें इंटरनेट मीडिया पर शेयर होती रहती हैं। ऐसे में वे अपना प्रमोशन तो कर रहे पर शिक्षार्थियों के कल्याण के समय अपने आप को पुराने जमाने का बता रहे हैं। गुरुजी के दोहरे आचरण को देखते हुए शिक्षार्थियों ने यह कहना शुरू कर दिया है कि कोरोना तो बहाना है...।
आखिरकार मिल ही गई कुर्सी
मुख्यालय के सबसे बड़े ज्ञानकेंद्र के अहम विभाग की खाली कुर्सी सबसे अहम दावेदार को मिल ही गई। अबतक नाम की घोषणा तो नहीं हुई है पर पर्दे के पीछे से बताया जा रहा है कि एक बार पूर्व उन्हें अधीनस्थ विभाग में मुखिया की कुर्सी मिल गई थी। अब इसी को आधार बना उनके सहकर्मी इनके दावा को कमजोर करने में जुटे थे। जब कई दावेदारी एक साथ आई तो सबने प्रधान पर ही कुर्सी के लिए सबसे योग्य मुखिया के चयन का जिम्मा छोड़ा। प्रधान भी सबकी दावेदारी देख पेशोपेश में थे। उन्होंने एक कमेटी बनाई और कहा कि सबसे योग्य मुखिया की पहचान करें। तमाम नियम-परिनियम, पूर्व के निर्णयों को खंगालने के बाद यह तय किया गया कि सबसे योग्य मुखिया ये ही हैं। अब बस पत्र जारी होने की देर है। इसके बाद अन्य दावेदारों में मायूसी छाना तय है।
अपने मुंह मियां मिट्ठू
जब अपनी बड़ाई स्वयं करनी पड़ जाए और यह कहना पड़े कि हमसे कर्तव्यनिष्ठ कोई नहीं तो वर्तमान समय में संदेह और बढ़ जाता है। ज्ञानकेंद्र की एक बड़ी कुर्सी पर बैठे साहब अपने मुंह मियां मि_ु बने हुए हैं। उनपर जब ताबड़तोड़ कटाक्ष हुए तो उनसे नहीं रहा गया। उन्होंने कटाक्ष करने वाले को निजी तौर पर कहा कि क्या साहब मेरे पर आरोप लगा रहे। मुझ जैसा तो टार्च जलाकर भी खोजने पर नहीं मिलेगा। वे भले अपनी बड़ाई कर अपने दामन को स्वच्छ बता रहे हों, लेकिन उनके बारे में गलियारे में चर्चा कुछ और ही है। वे हरियाली लें या नहीं, ऊपरी दबाव में आकर निजी हित वाले फाइलों को ही आगे सरकाते हैं। प्रधान के करीबी रहे साहब की बीच में अनबन भी हुई, लेकिन फिर से वे किसी तरह करीब आ गए।
जितनी होती रफ्फू, उतनी दरकती चादर
शिक्षार्थियों के भविष्य के लिए जितनी भी योजना बन रही। सही रणनीति के अभाव में उससे और नुकसान ही हो रहा या कहें तो चादर की जितनी रफ्फू करने की कोशिश की जा रही वह और दरकती जा रही। स्थिति यह हो गई है कि इससे बाद वाले ज्ञानकेंद्र भी यहां के शिक्षार्थियों को अपनी चमक-दमक से प्रभावित कर ले रहे। अपनी चमक फीकी पड़ती देख कुछ समझदार गुरुजी को हाकिम बनाया गया पर स्थिति अबतक नियंत्रण में नहीं दिख रही। यहां कई विभागों में वर्षों से मठाधीश बने बैठक सेवादार उन्हें मूल बात समझने ही नहीं दे रहे। सही जानकारी के अभाव और ऊपरी दबाव के कारण ये मनमाफिक कार्य ही नहीं कर पा रहे हैं। उनका कहना है कि आगे के दिनों में स्थिति नियंत्रित हो जाएगी। देखना है कि वे अपनी मंशा में कामयाब होते हैं या मठाधीशों के चंगुल में फंसकर कुर्सी गंवाते हैं।