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Bihar Chunav 2020: सिकटा में भाजपा के बागी जदयू मंत्री की राह में रोड़ा

Bihar Elelction 2020पश्चिम चंपारण जिले के नौव विधानसभा क्षेत्रों में से छह पर आगामी कल यानी सात नवंबर को मतदान होना है। -विकास के मुद्दे पर भारी पड़ रही जातीय गोलबंदी। वोटों के बिखराव के कारण त्रिकोणीय संघर्ष के आसार

By Murari KumarEdited By: Published: Fri, 06 Nov 2020 10:13 PM (IST)Updated: Fri, 06 Nov 2020 10:13 PM (IST)
Bihar Chunav 2020: सिकटा में भाजपा के बागी जदयू मंत्री की राह में रोड़ा
सिकटा में भाजपा के बागी जदयू मंत्री की राह में रोड़ा

पश्चिम चंपारण, जेएनएन। जिले के नौव विधानसभा क्षेत्रों में से छह पर आगामी सात नवंबर को मतदान होना है। सिकटा विधानसभा क्षेत्र पर इसबार लड़ाई रोचक है। पूरे प्रदेश की नजर सिकटा विधानसभा क्षेत्र पर है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के चहेते सूबे के निवर्तमान अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री खुर्शीद फिरोज अहमद यहां से एनडीए के उम्मीदवार हैं। वे पिछले पांच वर्षों के कार्यों एवं सरकार की उपलब्धि के आधार पर वोट की उम्मीद लगाए हैं तो भाजपा के बागी पूर्व विधायक दिलीप वर्मा निर्दलीय चुनाव मैदान में हैं। मंत्री की कार्यशैली से नाराज कार्यकर्ताओं का गुट पूरी तरह से भाजपा के बागी दिलीप वर्मा के साथ है।

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 वहीं महागठबंधन की ओर से भाकपा (माले) के कद्दावर नेता वीरेंद्र प्रसाद गुप्ता एम-वाई(यादव- मुस्लिम) समीकरण के साथ माले के आधार वोट को गोलबंद करने जोर लगाए हैं। इस तरह यहां त्रिकोणीय संघर्ष है। हालांकि मैदान में कुल 16 उम्मीदवार हैं। सभी जातीय आधार पर मतदाताओं को अपने - अपने पक्ष में गोलबंद करने का दावा करने कर रहे हैं। अगर जातीय वोट की गणित को भी देखें तो भी यहां मंत्री के स्वजातीय वोटों का बिखराव दिख रहा है। कुल सात अल्पसंख्यक उम्मीदवार मैदान में हैं, जो मुस्लिम वोट को तितर- वितर कर रहे हैं।   

सिकटा विधानसभा क्षेत्र का इतिहास

दो प्रखंड सिकटा और मैनाटांड़ को मिलाकर सिकटा विधानसभा क्षेत्र बना है। देश की आजादी के बाद से जिले के अधिकांश विधानसभा क्षेत्रों पर लंबे समय तक कांग्रेस का साम्राज्य रहा। उस दौर में भी यहां 1962 में स्वतंत्र पार्टी के रैफुल आजम चुनाव जीत गए थे। वहीं 1967 में भाकपा माले के यूएस शुक्ला विधायक बने थे। दस वर्षों तक जनता पार्टी के धर्मेश प्रसाद वर्मा भी यहां के विधायक रहे। वर्ष 1991 के उपचुनाव में निर्दलीय विधायक दिलीप वर्मा बने थे। तब से इस क्षेत्र का उन्होंने प्रतिनिधित्व किया। नवंबर 2005 में कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़े खुर्शीद फिरोज अहमद ने उन्हें पराजित कर दिया। फिर 2010 में निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में दिलीप वर्मा चुनाव जीत गए थे।  पिछले चुनाव में भाजपा के टिकट से श्री वर्मा चुनाव लड़े थे। दोनों में कांटे की टक्कर हुई थी। 2,835 मतों से जदयू के खुर्शीद फिरोज अहमद चुनाव जीत गए थे और प्रदेश में जिले के एकमात्र मंत्री के रूप में शपथ भी लिया था।

जनप्रतिनिधियों को उम्मीदों पर तौलती है जनता 

सिकटा विधानसभा क्षेत्र में जनप्रतिनिधियों को यहां की जनता अपनी उम्मीदों पर खूब तौलती है। काम करने का अवसर भी देती है। हरबार विधायक बदलने की आदत यहां के लोगों में नहीं है। 1951 से लेकर 2015 तक 64 वर्ष में मात्र नौव लोगों को जनता ने विधायक बनने का अवसर दिय। काम के आधार पर मतदान की परंपरा रही है। तभी तो 1972 से 1980 तक इस क्षेत्र के विधायक रहे फैयाजुल आजम को दस वर्ष के बाद एकबार फिर जनता ने कसौटी पर कसा और 1990 में निर्दलीय विधायक के रूप में चुनाव जीत गए। ये यहां की जनता का विकास के आधार पर मतदान करने का परंपरा हीं है। 1991 में उप चुनाव में दिलीप वर्मा विधायक बने थे। नवंबर 2005 तक जनता ने उन्हें काम करने का अवसर दिया। इस दौरान वे कई पार्टी बदले निर्दलीय भी लड़े। लेकिन जनता ने भरोसा किया। नवबंर 2005 में जनता का भरोसा डिगा और कांग्रेस के  खुर्शीद फिरोज अहमद विधायक बने। लेकिन इनके पांच वर्ष के कार्यकाल का तुलना करने के बाद एकबार फिर लोगों ने 2010 में निर्दलीय दिलीप वर्मा को बागडोर सौंप दिया था। 

तीन वर्ष से नहर में पानी की प्रतीक्षा 

यद्यपि बाढ़ एवं कटाव की समस्या विकराल है। फिर भी हाल के दिनों में सड़कों की हालत अच्छी हो गई है। गांवों का एक- दूसरे से संपर्क भी हो गया है। लेकिन अभी भी दर्जन भर से अधिक ऐसे गांव हैं , जहां बरसात के दिनों में आवागमन की सुविधा नहीं रहती। लोग बरसात में बाढ़ एवं कटाव की पीड़ा झेलते हैं। नेपाल से निकली पहाड़ी नदियां तबाही मचाती है। एक वर्ष में बनी हुई सड़कें भी बाढ़ की वजह से धाराशाई हो जातीं। सिंचाई की समस्या भी गंभीर है। 2017 में आई प्रलंयकारी बाढ़ ने नहर को तहस - नहस कर दिया। तब से यहां के किसान सिंचाई के लिए खेतों तक पानी पहुंचाने की मांग कर रहे हैं। 


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