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बिहार की राजनीति में ट्विस्ट, नाव में 'छेद', बीच मंझधार में डूबने का खतरा

Bihar Politics वर्तमान में पड़ोसी राज्य में अपना पांव पसारने की कोशिश कर रहे नेताजी के अपने दल के विधायक ने विरोध की आवाज उठा दी है। इसके बाद यह चर्चा आम है कि कहीं नाव में ही छेद न हो जाए। ऐसा होगा तो बहुत ही बुरा होगा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Mon, 24 Jan 2022 09:22 AM (IST)Updated: Mon, 24 Jan 2022 09:22 AM (IST)
बिहार की राजनीति में ट्विस्ट, नाव में 'छेद', बीच मंझधार में डूबने का खतरा
Bihar Politics: नेताजी की पार्टी के एक छात्र नेता ने तो उनपर भ्रष्टाचार का आरोप लगा दिया है। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [प्रेम शंकर मिश्रा]। कहते हैं राजनीति में कुछ भी परमानेंट नहीं होता। इसमें कब कहां पलटी मार जाए कोई नहीं जानता। कई वर्ष के संघर्ष के बाद नेताजी ने पार्टी बनाई। जिस समाज की लड़ाई लडऩे की बात कही उसी के अनुसार चुनाव चिह्न नाव मिल गया। साथ ही राज्य में सत्ता का सुख भी, मगर कुछ दिनों से सबकुछ गड़बड़ होने लगा है। पहले दूसरे दल के स्वजातीय नेता ने उन्हें निशाने पर लिया। दोनों के बीच खूब वाकयुद्ध हुए। इतना तो ठीक था, मगर अब अपने ही खिलाफ में उतर गए। वे अपने नेता की विचारधारा पर सवाल उठा रहे। ऐसा इसलिए भी दोनों की विचारधारा पहले से अलग रही है। अब राजनीतिक पंडित मान रहे कि नाव में छेद हो गया है। जल्द ही इसे ठीक नहीं किया गया तो नाव मंझधार में डूब सकती है। 

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'जनता की 47' तक पहुंचा संघर्ष

चुनाव कोई भी हो चर्चा जरूर होती। इसमें संघर्ष हो तो देश-प्रदेश की नजर भी रहती। जिले में एक पद के लिए होने वाले चुनाव का भी यही हाल है। अभी इसकी तिथि की घोषणा नहीं हुई है, मगर उम्मीदवारी और दावेदारी तय हो गई है। इंटरनेट मीडिया पर भी इसकी खूब चर्चा हो रही है। पहले धन बल की चर्चा करने वाले अब कह रहे कि कांटा से कांटा निकालने की तैयारी हो रही है। पहली बार संघर्ष की बात भी की जा रही है। एक पूर्व माननीय को हराने की वर्षों से मंशा पाले बढ़-चढ़कर अपनी बात रख रहे हैं। उन्हें लग रहा यह बेहतर मौका है। वीडियो भी वायरल कर रहे किÓजनता की 47Ó से बड़ा कुछ नहीं। इसबार इससे ही निर्णय होगा। दूसरा खेमा चुप्पी साधे हुआ है। यह भी रणनीति का हिस्सा माना जा रहा, ताकि समर्थकों का विरोधी अंदाजा न लगा सकें।

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नाम बड़े और दर्शन छोटे

शहर को स्मार्ट बनाने की तैयारी चल रही है। पिछले पांच साल से चल रही तैयारी के बाद भी गाड़ी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। इसमें बड़ी एजेंसियों को लगाया गया है। काम तो शुरू हुआ, मगर शहर स्मार्ट की जगह नरक बन गया है। कई सड़कों को खोदकर छोड़ दिया गया है। नाला आधा-अधूरा पड़ा है। इससे जहां-तहां पानी बह रहा है। धूल उडऩे से बिन मांगे बीमारी की सौगात मिल रही है। कब कहां कौन गिर जाए यह पता नहीं। जाम की समस्या से पहले से जूझ रहे शहरवासी के लिए यह अलग परेशानी हो गई है, मगर जिम्मेदारों ने आंख बंद कर ली हैं। ऐसे भी जिम्मेदारों की आंखें लोगों की समस्या को लेकर कम ही खुलती हैं। काम कब का कम खत्म होना था, मगर मनमर्जी तो एजेंसी की ही चल रही। अब शहरवासी बड़ी एजेंसियों को लेकर यही कह रहे, नाम बड़े और दर्शन छोटे।

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बड़े से अधिक छोटे साहब की गाड़ी पर खर्च

कहने को तो बिहार गरीब राज्य है, मगर यह जनता तक ही सीमित है। सरकारी खर्च में कोई पीछे नहीं। जिले का उदाहरण तो अलग ही है। यहां बड़े साहब से अधिक खर्च छोटे साहबों पर है। बड़े साहब की गाड़ी हजार-12 सौ किमी चलती है तो छोटे की ढाई हजार के आसपास। कई बड़े साहब की गाड़ी को तो इनके वाहन मुंह चिढ़ाते हैं। दरअसल एक-दो बड़े साहब की गाड़ी सरकारी है। वह पुराने माडल की है। छोटे साहब को नए माडल की गाड़ी आउटसोर्सिंग से मिल रही है। अब छोटे साहब की गाड़ी के ढाई-ढाई हजार किमी चलने से सरकारी खजाने पर हर माह अतिरिक्त दबाव बढ़ रहा। ऊपर से पेट्रोल और डीजल की बढ़ी कीमत। अंदरखाने की सूचना के अनुसार सरकारी कार्य के अतिरिक्त भी वाहनों का इस्तेमाल कर रहे। इससे खर्च बढ़ गया है। अब गरीब राज्य के होने की बात इन्हें कौन समझाए।  


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