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Nitish Kumar की तेजस्वी से नजदीकी ने जदयू नेताओं की बढ़ाई टेंशन...बिहार के इस जिले में सबकुछ उलट-पलट हो गया

Bihar Politics Latest News मंगलवार को सीएम नीतीश कुमार ने भाजपा से रिश्ता तोड़ा और राजद से गठबंधन करते हुए बुधवार को फिर से सीएम बन गए। कार्यकर्ताओं व स्थानीय नेताओं के लिए यह शायद इतना सहज नहीं होगा। कम से कम मुजफ्फरपुर में तो ऐसा ही नजर आ रहा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Thu, 11 Aug 2022 11:46 AM (IST)Updated: Thu, 11 Aug 2022 11:46 AM (IST)
Nitish Kumar की तेजस्वी से नजदीकी ने जदयू नेताओं की बढ़ाई टेंशन...बिहार के इस जिले में सबकुछ उलट-पलट हो गया
चुनाव तो अभी दूर है, लेकिन टिकट की चिंता सताने लगी है। फाइल फोटो

मुजफ्फरपुर, [ अमरेन्द्र तिवारी]। बिहार में विगत दो दिनों के अंदर सियासी समीकरण में तेजी से बदलाव देखने को मिला। कुछ लोग इसे इतिहास दोहराना कह रहे तो कुछ सीएम नीतीश कुमार द्वारा इतिहास रचना कह रहे। नीतीश कुमार की पार्टी जदयू और तेजस्वी यादव की पार्टी राजद के एक साथ आ जाने से भले बहुत से राजनीतिक समीकरण सही हो गए हों, लेकिन बहुत कुछ उपलट-पलट भी हो गया है। खासकर स्थानीय स्तर की राजनीति। मुजफ्फरपुर में विशेष रूप से। बिहार की राजनीति के इन दो दिग्गजों के साथ आने के बाद यहां के जदयू नेताओं का तनाव बढ़ गया है। वे अब समझ नहीं पा रहे कि आगे क्या होगा?

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राजद विधायक मजबूत स्थिति में

दरअसल बिहार विधानसभा चुनाव 2020 के दौरान एनडीए में रहते हुए जदयू ने जिन सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे थे वहां से राजद की जीत हुई। आगामी विधानसभा चुनाव में स्वाभाविक रूप से उन सीटों पर राजद की दावेदारी होगी। वैसे भी गठबंधन में सीटिंग कैंडिडेट को टिकट देने की परंपरा रही है। इस तरह से देखा जाए तो मुजफ्फरपुर की बोचहां, मीनापुर, गायघाट, कांटी और कुढ़नी सीट पर मजबूत स्थिति में होने के बावजूद वहां से जदयू नेता को शायद ही मौका मिल पाए। वर्तमान में यहां से राजद के विधायक हैं। उनकी दावेदारी मजबूत है। ऐसे में स्थानीय जदयू नेताओं का टेंशन में आना स्वाभाविक है।

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अच्छी स्थिति के बावजूद दावेदारी नहीं

मुजफ्फरपुर में विधानसभा की 11 सीटें हैं। यदि हम बिहार विधानसभा चुनाव 2020 की बात करें तो एनडीए की ओर से सात व चार का फार्मूला अपनाया गया था। चार सीट पर जदयू ने अपने प्रत्याशी उतारे थे जबकि सात में से पांच पर भाजपा खुद मैदान में उतरी थी और दो सीट वीआइपी को दी गई थी। चुनाव में मीनापुर, कांटी, गायघाट व सकरा सीट पर जदयू के प्रत्याशी मैदान में उतरे थे, लेकिन सफलता केवल सकरा में मिली। जहां वे हारे वहां से राजद को जीत मिली थी। कुढ़नी में जदयू अच्छी स्थिति में होने के बाद भी वहां से भाजपा ने अपना प्रत्याशी दिया था। हालांकि वहां जीत राजद के प्रत्याशी को मिली। इस तरह से मीनापुर, कांटी, गायघाट व कुढ़नी के स्थानीय नेता खुद को असुरक्षित महसूस कर रहे। मुजफ्फरपुर शहर से कांग्रेस व बोचहां से राजद के विधायक हैं। इसलिए यहां पर भी दावेदारी कमजोर ही मानी जाएगी।

नेताओं को एडजस्ट करने की चुनौती

राजनीतिक गलियारे में चर्चा हो रही है कि पिछली बार गायघाट से जदयू के टिकट पर चुनाव लडने वाले पूर्व विधायक महेश्वर यादव, कांटी से चुनाव लडे़ जदयू के मुख्य प्रवक्ता मो. जमाल, मीनापुर से चुनाव लड़ने वाले जदयू के जिलाध्यक्ष मनोज किसान, कुढ़नी से अपनी दावेदारी रखने वाले पूर्व मंत्री मनोज कुशवाहा का क्या होगा? विधानसभा चुनाव के समय तक गठबंधन में अगर फेरबदल नहीं हुआ तो इनको पार्टी किस तरह एडजस्ट करेगी। भाजपा व लोजपा के साथ आने की बात भी होने लगी है। कहा जा रहा है कि यहां माहौल गठबंधन के अनुकूल है।  

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