'जग रचना सब झूठ है जान लेहो रे मीत, कहे नानक ... '
नौवें गुरु तेग बहादुर जी के शहीदी पर्व को लेकर गुरुद्वारा में अखंड पाठ शुरू, निकलेगा नगर कीर्तन जुलूस, शहादत की रहेगी झांकी!
मुजफ्फरपुर, जेएनएन। सिखों के नौवें गुरु तेग बहादुर जी की 343वें शहीदी पर्व को लेकर रमना स्थित गुरुद्वारा के श्री गुरु सिंह सभा में अखंड पाठ शुरू हुआ। इसका समापन 12 दिसंबर को होगा। इस अवसर पर काफी संख्या मेें सिख श्रद्धालु शामिल हुए। मंगलवार को नगर कीर्तन जुलूस निकलेगा। इसमें गुरु तेग बहादुर जी एवं उनके शिष्यों की शहादत की झांकी होगी।
भजन-कीर्तन करते सिख श्रद्धालु शहर के विभिन्न मार्गों से होकर गुजरेंगे। हाथों में तलवार लिए पंच प्यारे होंगे। वहीं गतका पार्टी द्वारा तलवारबाजी एवं अन्य करतब दिखाए जाएंगे। मौके पर गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष सरदार अवतार सिंह, सचिव गुरजीत सिंह साई जी, कोषाध्यक्ष सरदार पंजाब सिंह, सतेंद्र पाल सिंह, डॉ. गुरजीत सिंह, मंजीत कौर गांधी, सतेंद्र पाल कौर मिंटी सोहल, जसवीर कौर, गोविंद कौर, नीना सोहल, शैली, जसनाम कौर, कवलजीत कौर समेत काफी संख्या में श्रद्धालु मौजूद थे।
इन मार्गों से गुजरेगा जुलूस
नगर कीर्तन जुलूस दोपहर एक बजे रमना स्थित गुरुद्वारा श्री गुरु सिंह सभा से निकलेगा। यह हरिसभा चौक, कल्याणी, मोतीझील, कंपनीबाग, सूतापट्टी, सरैयागंज टावर, गोला रोड, पुरानी बाजार, दीपक सिनेमा रोड, छोटी कल्याणी चौक, हरिसभा चौक होते हुए पुन : गुरुद्वारा वापस आएगा।
इस्लाम कबूल नहीं करने पर औरंगजेब ने किया शहीद
धर्म, मानवीय मूल्यों, आदर्शों एवं सिद्धांतों की रक्षा के लिए प्राणों की आहुति देने वालों में गुरु तेग बहादुर साहब का स्थान अद्वितीय है। इस्लाम धर्म कबूल नहीं करने पर मुगल बादशाह औरंगजेब ने उन्हें शहीद कर दिया था। चार महीने वे सरहिंद की जेल में रहे। पहले भाई मतिदास को आरे से चिड़वाया, उसके बाद दयालदास को खौलते पानी में डाला गया। इसके बाद भी गुरु तेग बहादुर जी औरंगजेब के सामने नहीं झुके। फिर भाई सतीदास के बदन पर रूई लपेट कर आग लगा दी गई। शिष्यों के बलिदान के बाद गुरु तेग बहादुरजी ने अपना शीश बलिदान कर दिया। मगर अत्याचार के सामने सिर नहीं झुकाया।
सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से जीता दुश्मनों का भी दिल
नौवें धर्म गुरु सतगुरु तेग बहादुरजी का जन्म अमृतसर में हुआ। पिता का नाम गुरु हरगोबिंद साहिब था। उनके द्वारा रचित बाणी के 15 रागों में 116 शबद श्री गुरुग्रंथ साहिब में संकलित हैं। उन्होंने धर्म की रक्षा और धार्मिक स्वतंत्रता के लिए अपना सर्वस्व न्यौछावर कर दिया। बाल्यावस्था से ही वे संत स्वरूप, गहन विचारवान, उदार चित्त, बहादुर व निर्भीक स्वभाव के थे। किसी ने उनका अहित करने की कोशिश भी की तो उन्होंने अपनी सहनशीलता, मधुरता, सौम्यता से उसे उसका दिल जीत लिया। उनके जीवन का प्रथम दर्शन यही था कि धर्म का मार्ग सत्य और विजय का मार्ग है। शांति, क्षमा, सहनशीलता के गुणों वाले गुरु तेग बहादुर जी ने लोगों को प्रेम, एकता व भाईचारे का संदेश दिया।