दीपावली करीब आते ही बढ़ी दीपों की मांग, जोर-शोर से काम में जुटे कुम्हार
हर शुभ काम में अनिवार्य होता मिट्टी के दीपों का इस्तेमाल। आज तरह-तरह के दीये आ गए हों, मगर मिट्टी के दीपों का महत्व कम नहीं हुआ है।
मुजफ्फरपुर (जेएनएन)। आज दुनिया की चकाचौंध में चाक की रफ्तार भले ही धीमी हो गई हो, मगर जब दीपोत्सव की बात हो तो मिट्टी के दीपों का अलग ही महत्व है। दीवाली में चंद दिन शेष रह गए हैं। 7 नवंबर को दीवाली है। मांग को देखते हुए कुम्हार जोर-शोर से दीप बनाने में जुटे हैं। कहते हैं कि आज भले ही बाजार में तरह-तरह के दीये आ गए हों, मगर मिट्टी के दीपों का महत्व कम नहीं हुआ है। हर शुभ काम में इनका प्रयोग अनिवार्य रूप से किया जाता है।
पीढ़ी-दर-पीढ़ी से कर रहे व्यवसाय
मिट्टी के दीप सहित तरह-तरह के बर्तन बनाने के पुश्तैनी व्यवसाय से जुड़े कुम्हारों का कहना है कि वे पिछले कई सालों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी मिट्टी के बर्तन बनाने की कला से जुड़े हैं। आधुनिकता व चाइनीज लाइटों ने दीपों की मांग कम की है, लेकिन इसका धार्मिक महत्व आज भी कम नहीं हुआ है। मुशहरी के शंकर पंडित, विजय पंडित आदि बताते हैं कि दीपक बनाना केवल एक व्यवसाय ही नहीं है, बल्कि यह रगों में बसता है। चाक की रफ्तार पर तैयार होने वाले इन दीपों को बनाने में कड़ी मेहनत लगती है। वैसे तो दीपावली के लिए कई महीने पूर्व से ही लोग दीप बनाने में लग जाते हैं। मगर, दशहरा के बाद इसमें तेजी आ जाती है। अभी छोटा दीप 50 से 60 रुपये प्रति सैकड़ा और बड़ा दीप डेढ़ से दो सौ रुपये प्रति सैकड़ा मिल रहा है। चौमुखी दीप चार से पांच रुपये पीस है।
मिट्टी के दीये सबसे शुभ
जानकार बताते हैं कि शास्त्रों में मिट्टी के दीये को सबसे शुभ बताया गया है। आनंद और समृद्धि के लिए लोग गाय के घी के दीपक, बुरे प्रभावों और अशुभ घटनाओं को टालने के लिए तिल के तेल के दीये और वायुमंडल को पवित्र करने के लिए सरसों के तेल के दीपक जलाते हैं। वास्तव में दीये जलाने के कारण वायुमंडल में व्याप्त कई कीटाणुओं व रोगाणुओं का भी नाश होता है।
आधुनिक दीयों की जबर्दस्त डिमांड
आधुनिकता के इस युग में बाजार में आधुनिक दीये और मोमबत्तियों की भी खूब डिमांड है। तरह-तरह के दीपक, झालर व रंगबिरंगी डिजाइनों की मोमबत्तियां बाजार में बिक रही हैं।