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.. और नदी में कट रही है इनकी ¨जदगी

पश्चिमी चंपारण जिले के नरकटियागंज प्रखंड की हरदीटेढ़ा पंचायत का नोनियाटोला गांव हूं। यह गांव आज भी विकास से कोसों दूर है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 16 Jul 2018 04:45 PM (IST)Updated: Mon, 16 Jul 2018 04:45 PM (IST)
.. और नदी में कट रही  है इनकी ¨जदगी
.. और नदी में कट रही है इनकी ¨जदगी

मुजफ्फरपुर। पश्चिमी चंपारण जिले के नरकटियागंज प्रखंड की हरदीटेढ़ा पंचायत का नोनियाटोला गांव हूं। यह गांव आज भी विकास से कोसों दूर है। गांव लोग बाढ़ से हर साल तबाह होते हैं। आज भी घरों से निकलने वाले बच्चे कीचड़ सने पांव आने व जाने को विवश हैं। हल्की बारिश में भी यहां जलजमाव की विकट स्थिति से दो चार होना पड़ता है। विवशता यह कि आज भी करीब 80 प्रतिशत लोगों को शौच के लिए सरेह व सड़क किनारे का सहारा लेना पड़ता है। गांव में अब तक एक भी पक्की सड़क नहीं है। मानों अब कीचड़ की इसकी पहचान बन गई हो। पानी निकासी के लिए न तो समुचित नाली है और न ही इलाज के लिए एक भी उपस्वास्थ्य केंद्र है। ग्रामीणों ने सुनाई व्यथा

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नोनियाटोला गांव के विजय कुमार तिवारी, विरेंद्र कुमार वर्मा, नंदलाल साह, रविशंकर मिश्र, कमल प्रसाद सोनी, जटाशंकर ठाकुर, धनंजय कुमार तिवारी, अभय कुमार यादव, बोर्डर पासवान, भुआई मस्तान, जीउत पासवान, आकाश कुमार, शंभु साह, राकेश चौरसिया, हजारी मिश्र, खुशी पासवान, जमुना सोनी, रविशंकर मिश्र, साहेब साह, रामबाबु सोनी, नंदलाल साह, मुस्तुफा खान, लक्ष्मण साह गोड, मिटू साह आदि कई ग्रामीणों ने कहा कि गांव में पिछले तीस वर्षो से विकास रूका हुआ है। सरकार हर गांव में पक्की सड़क दे रही है, लेकिन यहां आज तक पक्की सड़क का निर्माण नहीं हो सका। हल्की बारिश में भी लोगों को कीचड़ सने पांव गुजरना पड़ता है। यहां तक कि आबादी का 80 प्रतिशत हिस्सा शौच के लिए सरेह व सड़क किनारे बैठता है। गांव में जरूरतमंदों को राशन नहीं और भूमिहीनों को आवास का लाभ नहीं। और तो और पंडई नदी से बाढ़ का खतरा हर साल पूरे बरसात ग्रामीणों को भय में गुजारना पड़ता है। गांव की पहचान जलजमाव और कीचड़ ही बन चुकी है। पंडई नदी का अप्रोच ध्वस्त है। ऐसे में पानी का दबाव गांव की ओर मार रहा है। यदि अप्रोच टूटा तो पूरे गांव का अस्तित्व ही समाप्त हो जाएगा। शिक्षा के लिए गांव में प्राथमिक विद्यालय तो है, लेकिन उच्च शिक्षा के लिए गांव से बाहर जाने की मजबूरी होती है। सरकारी उदासीनता यह कि नदी किनारे बसे होने के बाद भी पिछले साल की भयावह बाढ़ से पीड़ित आज भी सहायता से वंचित हैं। पीड़ितों को न तो सरकारी राशन नसीब हुआ और न ही सहायता राशि का लाभ ही मिल सका। यहां तक की सात निश्चय के कार्यों को भी शत प्रतिशत धरातल पर नहीं उतारा जाता। गांव एक नजर में

नोनियाटोला गांव कुल दो वार्डों में बंटा है। इसकी कुल आबादी करीब ढ़ाई हजार है। गांव में दलित वर्ग 40 प्रतिशत और युवा वर्ग 37 प्रतिशत है। गांव की शिक्षा दर करीब 32 प्रतिशत है। यहां सरकारी नौकरी में कुल आबादी का करीब दो प्रतिशत हिस्सा ही शामिल है। गांव में एक प्राथमिक विद्यालय भी है। कहते हैं गांव के लोग

युवक अतुल मिश्र कहते हैं कि हर लोगों का सपना है कि उसका गांव विकसित हो। लेकिन इस गांव में विकास अभी धरातल से काफी दूर है। यहां सबसे अधिक समस्या पानी निकासी के लिए है। गांव में एक भी नाली नहीं है। एक मुख्य नाला तो है, लेकिन उसका भी निकासी अधूरा है। यदि नाला का निकासी नदी तक पहुंच जाए तो काफी हद तक समस्या का समाधान हो सकेगा। युवक भूषण कुमार वर्मा बताते हैं कि गांव में शिक्षित बेरोजगारों की कमी नहीं है। हर वर्ग का युवा किसी न किसी विवशता में बेरोजगार बैठा है। इसकी सबसे अधिक जिम्मेवार सरकार है। सरकार की ओर से गांव के विकास में कई योजनाएं संचालित हैं। लेकिन ये योजनाएं गांव तक पहुंचती ही कहां हैं। अगर पहुंच भी जाए तो अधिकारी और जनप्रतिनिधि की मिलीभगत से योजना मद की राशि का बंदरबांट कर लिया जाता है। गांव के 62 वर्षीय वृद्ध शिवशंकर तिवारी कहते हैं कि गांव पर हर वर्ष बाढ़ का खतरा मंडराता है। पंडई नदी के प्रकोप से क्षेत्र के हर एक लोग वाकिफ हैं। ऐसे में पुल के अप्रोच का ध्वस्त होना गांव के विनाश की ओर इशारा कर रहा है। समय रहते यदि निर्माण नहीं हुआ तो वह दिन दूर नहीं जब पंडई नदी का पानी पूरे गांव को बर्बाद न कर दे। इस दिशा में प्रशासनिक अधिकारियों का ध्यान प्रमुखता से आकर्षित होना चाहिए।

वृद्ध 60 वर्षीय हिरामन पासवान का कहना है कि गांव में जरूरतमंद ही सरकारी लाभ से वंचित हैं। कोई राशन व केरासिन तेल के लाभ से तो कई पेंशन के लाभ से और तो और कई ऐसे भी हैं जो आवास योजना के लाभ से भी वंचित हैं। ऐसे जरूरतमंदों को ही हर बार अपने हक से वंचित रहना पड़ता है। पिछले साल के दर्जनाधिक ऐसे बाढ़ पीड़ित हैं, जो सरकारी सहायता और राशि के लाभ से वंचित हैं। लेकिन इनका सुनने वाला भी कोई नहीं है।


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