अंतरराष्ट्रीय महत्व के शहर में नहीं है एएलएस एंबुलेंस, अस्पताल के बेड पर ही जिंदगी-मौत की जंग हार जाते मरीज
पूर्वी चंपारण के रक्सौल में आइसीयू में इलारत मरीजों को ले जाने के लिए एएलएस (एडवांस लाइफ सपोर्ट) एंबुलेंस की सुविधा यहां नहींं है। इस कारण अधिकांश वैसे मरीज जिनके उपचार की सुविधा यहां नहीं है वे आइसीयू में ही दम तोड़ देते हैं।
पूर्वी चंपारण, [लक्ष्मीकांत त्रिपाठी]। भारत-नेपाल का सीमावर्ती शहर है रक्सौल । इसे अंतरराष्ट्रीय महत्व का दर्जा प्राप्त है। देश का दूसरा सबसे बड़ा इंटिग्रेटेड चेक पोस्ट, दक्षिण एशिया का पहला क्रॉस बॉर्डर पाइप लाइन, सशस्त्र सीमा बल मुख्यालय, ए ग्रेड दर्जा प्राप्त रेलवे स्टेशन यहां हैं। लेकिन शहर से दूर बेहतर इलाज के लिए आइसीयू में इलारत मरीज को ले जाने के लिए एएलएस (एडवांस लाइफ सपोर्ट) एंबुलेंस की सुविधा यहां नहींं है। इस कारण अधिकांश वैसे मरीज जिनके उपचार की सुविधा रक्सौल में नहीं है वे आइसीयू में ही दम तोड़ देते हैं।
मोतिहारी से निजी एंबुलेंस मंगाना पड़ता :
रक्सौल एवं नरकटिया विधानसभा क्षेत्र के दर्जनों गांव है के मरीज इलाज के दौरान आइसीयू में चले जाते हैं तब स्वजनों की बेचैनी बढ़ जाती है। खासकर कोविड-19 महामारी के इस दौर में ऐसे मरीजों की संख्या बढ़ी है। फिर भी सरकार द्वारा ऐसे मरीजों को बाहर ले जाने के लिए एएलएस एंबुलेंस की व्यवस्था नहीं है। इसके लिए स्वजनों को शहर से दूर पटना आदि ले जाने के लिए मोतिहारी से निजी एंबुलेंस अपने खर्च पर मंगानी पड़ती है, जो काफी खर्चीला साबित होता है।
कब पड़ती है एएलएस एंबुलेंस की जरूरत :
जब मरीज का अपना तंत्र काम करना बंद करने लगता है वैसी स्थिति में उसे बचाने के लिए आइसीयू में ले जाना पड़ता है। ऐसी परिस्थिति तब आती है जब व्यक्ति को सांस लेने में परेशानी, हार्ट या किडऩी आदि काम नहीं करता है। ऐसी स्थिति सेंटोशिनिया यानी ब्लड इंफेक्शन फेफड़े मे खराबी, निमोनिया आदि होने पर शरीर में रक्त के संचालन एवं सांस लेने परेशानी होने लगती है। तब लोग मरीज को अस्पताल पहुंचाते है। जिन्हेंं आइसीयू में रख चिकित्सक इलाज करना शुरू कर देते है। लेकिन कभी-कभी ऐसा होता है कि आइसीयू में भर्ती मरीज को उससे अधिक केयर की जरूरत होती है। जिसे बेहतर उपचार के लिए शहर से बाहर पटना, दिल्ली आदि महानगरीय अस्पताल ले जाने की बात चिकित्सक बताते है। जिन्हेंं बाहर ले जाने के लिए एडवांस लाइफ सपोॄटग एंबुलेंस की जरूरत पड़ती है। जिसके नहीं होने से रक्सौल के अस्पताल में इलाजरत मरीज जिंदगी-मौत की जंग हार जाते है। इस शहर को अनुमंडल का दर्जा मिले करीब तीस वर्ष हो चुका है। लेकिन, जिंदगी की जंग जीतने के लिए शहर में एएलएस एंबुलेंस की सुविधा नहीं है।
एएलएस एंबुलेंस में होती हैं ये सुविधाएं :
एडवांस लाइफ सपोॄटग एंबुलेंस के सहारे जीवन और मौत से जंग लड़ रहे मरीजों को बेहतर उपचार के लिए एक शहर से दूसरे शहर पहुंचाया जा सकता है। इसमें वेंटिलेटर, काॢडयक सपोर्ट के लिए डीसी शॉक मशीन होती है। ईसीजी मॉनीटर होता है, जो हृदयगति को बताता है। जिसके आधार पर मरीज को विशेषज्ञ ईएमटी दवा और ऑक्सीजन के आधार पर अस्पताल तक पहुंचाते है। जहां उनका बेहतर उपचार किया जा सकता है।
कितनी आबादी प्रभापित :
रक्सौल अनुमंडल में दो विधानसभा का क्षेत्र आते है। दोनों विधानसभा क्षेत्रों के वोटरों की संख्या करीब छह लाख तथा आबादी करीब आठ से दस लाख तक है। इसके साथ ही सीमावर्ती नेपाल के विभिन्न गांवों के लोग बेहतर उपचार के लिए रक्सौल पहुंचते हंै। ऐसी परिस्थितियों में रक्सौल में एएलएस एंबुलेंस की नितांत आवश्यकता है।