नई शिक्षा नीति से 15 वर्षों में सभी संस्थान बनेंगे आत्मनिर्भर
नई शिक्षा नीति-2020 राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं को प्रमुखता से आगे बढ़ाने की योजना तैयार की गई है।
मुजफ्फरपुर। नई शिक्षा नीति-2020 राष्ट्रीय शिक्षा नीति है। इसमें क्षेत्रीय भाषाओं को प्रमुखता से आगे बढ़ाने की योजना तैयार की गई है। नई शिक्षा नीति से 15 वर्षों में सभी संस्थान आत्मनिर्भर बनेंगे। इससे एक साथ प्राथमिक और उच्च शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक बदलाव देखने को मिलेगा। कृषि, पशुपालन समेत किसी भी अनौपचारिक क्षेत्र में यदि कोई शोध हो रहा हो तो इसके लिए शिक्षा विभाग पहल करेगा और संबंधित व्यक्ति को फंड दिया जाएगा। ये बातें शनिवार को बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के ऑडिटोरियम में इंडियन इकॉनोमिक एसोसिएशन और इकॉनोमिक एसोसिएशन ऑफ बिहार के संयुक्त तत्वावधान में आयोजित तीन दिवसीय राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन सत्र में अटल वाजपेयी विश्वविद्यालय विलासपुर के कुलपति प्रो. अरुण दिवाकर वाजपेयी ने कही।
नई शिक्षा नीति-2020 : हाइलाइट्स चैलेंजेज एंड इनोवेशन विषय पर आयोजित इस राष्ट्रीय कॉन्फ्रेंस में प्रो. वाजपेयी ने कहा कि इस शिक्षा नीति में सबसे खास बात है कि अब उच्च शिक्षा के दौरान यदि कोई बीच में पढ़ाई छोड़ता है तो उसके लिए भी डिप्लोमा और डिग्री का प्रावधान होगा। गुणवत्तापरक शिक्षा के लिए अब संस्थानों को ऑटोनोमी देना जरूरी हो गया है। इससे आत्मनिर्भरता आएगी। इस नीति के आने के बाद पहली बार जीडीपी का छह फीसद शिक्षा पर खर्च किया गया है।
उन्होंने कहा कि इस नीति के प्रभावी रूप से लागू होने के बाद 15 वर्षों के भीतर संस्थानों को स्वायत्त बनाया जाएगा और एफीलिएशन सिस्टम पूरी तरह समाप्त हो जाएगा। इसके लिए राष्ट्रीय शिक्षा आयोग का गठन किया जा रहा है। इस नीति के सामने चुनौतियां यह हैं कि वर्तमान शिक्षण व्यवस्था में देशभर में 70 लाख शिक्षकों की जरूरत है लेकिन, सिर्फ 12 लाख शिक्षक ही विश्वविद्यालयों में कार्यरत हैं। इसे पूरा करने के साथ ही देशज ज्ञान के साथ तकनीक को जोड़ना होगा। समाज की कुरीतियों को शिक्षा की चिकित्सा के माध्यम से दूर किया जाएगा यही इस नीति की सफलता होगी।
मुख्य अतिथि सूबे के ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री जयंत राज ने कहा कि बिहार में शीघ्र ही नई शिक्षा नीति लागू की जाएगी। इस नीति का उद्देश्य है कि छात्रों को पढ़ाई के साथ ही उन्हें स्कील्ड बनाया जाएगा। मैट्रिक के पूर्व ही छात्रों को सिलेबस में ही व्यवसाय और उद्योग की शिक्षा पाठ्यक्रम में ही दी जाएगी। 2040 तक भारत शिक्षा के क्षेत्र में काफी आगे बढ़ जाएगा। वहीं एमएलसी प्रो.संजय सिंह ने नई शिक्षा नीति को गरीब विरोधी बताया। उन्होंने कहा कि वर्तमान में 74 फीसद बच्चे गरीब परिवार से हैं। ऑटोनोमी मिलने के बाद संस्थानों में इनकी पढ़ाई मुश्किल हो जाएगी। उन्होंने विश्वविद्यालयों में कुलपति समेत वरीय अधिकारियों की नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठाए।
इससे पूर्व दीप प्रज्जवलित कर कार्यक्रम की विधिवत शुरुआत ग्रामीण कार्य विभाग के मंत्री जयंत राज, सांसद सह एमएचआरडी की सदस्य डॉ.शशिकला पुष्पा रामास्वामी, अटल बिहारी वाजपेयी विश्वविद्यालय विलासपुर के कुलपति एडीएन वाजपेयी, ओपीजेएस यूनिवर्सिटी चुरू राजस्थान के कुलपति डॉ.पी रामास्वामी, इंडियन इकॉनोमिक एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. तपन कुमार शांडिल्य, विधान पार्षद प्रो.संजय कुमार सिंह, अर्थशास्त्र विभागाध्यक्ष डॉ.सुनील कुमार और डॉ. कुमारी मनीषा ने किया। लोकल आर्गेनाइजिग सेक्रेटरी प्रो.संजय कुमार ने अतिथियों का स्वागत किया। कार्यक्रम को ओपीजेएस विवि चुरू राजस्थान के डॉ.बी रामास्वामी, सांसद डॉ.शशिकला पुष्पा रामास्वामी, डॉ.तपन कुमार शांडिल्य आदि ने भी संबोधित किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ.अनिल कुमार ठाकुर ने किया। कार्यक्रम में डॉ. रवि, डॉ.अनिल समेत अन्य की सक्रिय भूमिका रही।
बिना अध्ययन ही लागू कर दी गई थी पूर्व की नीति, यही बेरोजगारी का कारण : दिल्ली विश्वविद्यालय के प्राध्यापक डॉ.अपूर्वा ने दूसरे सत्र में पैनल डिस्कशन के दौरान कहा कि पूर्व की शिक्षा नीति को बिना अध्ययन के ही लागू कर दिया गया था। कॉलेज छात्रों को सिर्फ शिक्षित कर रहे थे और इंडस्ट्री के क्षेत्र में जाने के बाद उन्हें पूरा प्रशिक्षण लेना होता था, लेकिन नई शिक्षा नीति छात्रों को पूर्व से ही इंडस्ट्री की डिमांड के अनुरूप तैयार करेगा। विवि का काम है कि वह छात्रों के भीतर स्वतंत्र होकर सोचने और उसकी व्याख्या करने की क्षमता को बढ़ाने में छात्र की मदद करे। सामान्य कोर्स और रोजगार के बीच तारतम्य हो। इस सत्र को दिल्ली समेत देश के विभिन्न शहरों से आए शिक्षाविदों ने संबोधित किया।