लक्ष्य के मुकाबले पश्चिम चंपारण के बगहा में महज 40 फीसद हो सकी खरीद, किसान परेशान
West Champaran बगहा दो प्रखंड को 92 हजार क्विंटल धान खरीदने का मिला है लक्ष्य प्रखंड के सभी 25 पैक्सों को 8.70 लाख रुपये का मिला है कैश क्रेडिट समय से तौल नहीं हो पाने के कारण किसानों ने औने-पौने मूल्य पर की बिक्री।
पश्चिम चंपारण (बगहा), जासं। गाय बैल संगी साथी पर कभी पड़े है अकाल, मैं हूं धरती का लाल, पर बुरा है मेरा हाल...। ये पंक्तियां किसानों पर आज की व्यवस्था में बिल्कुल सटीक बैठती हैं। दरअसल, धरती का सीना चीर कर कड़ी मेहनत के बाद अनाज उगाने वाले किसानों की फसल को न तो बाजार मिल पा रहा ना ही खरीदार। यह दीगर बात है कि सरकार के द्वारा घोषणाएं की जाती, लेकिन धरातल पर घोषणाओं का बुरा हश्र होता। वजह सिस्टम की मनमानी और अधिकारियों की उदासीनता।
बानगी के तौर पर धान खरीद को लिया जा सकता है। सरकार ने नवंबर में धान खरीद की घोषणा की। कहा कि 15 फरवरी तक खरीद होगी। किसान अपने निकटवर्ती पैक्स या व्यापार मंडल को अपनी फसल बेच सकेंगे। सामान्य प्रभेद का मूल्य 1940 रुपये व विशेष किस्म की धान की कीमत 1960 रुपये प्रति क्विंटल निर्धारित की गई। घोषणा के बाद तैयारी शुरू हुई। करीब एक महीने तक कागजी प्रक्रिया चलती रही। दिसंबर में औपचारिक रूप से बगहा अनुमंडल में खरीद कुछ पैक्सों के माध्यम से शुरू हुई। इस बीच कैश क्रेडिट के लिए कई पैक्स अध्यक्ष जिला मुख्यालय का चक्कर काटते रहे।
जनवरी में खरीद ने जोर पकड़ा। लेकिन, तबतक देश का पेट भरने वाले किसानों का घर अनाज से खाली हो चुका था। वजह रबी फसलों की खेती के लिए रुपये की जरूतर आन पड़ी, सरकार खरीद में पीछे रही तो बिचौलियों ने इसका फायदा उठाया और सरकारी दर से 600 से 700 रुपये प्रति क्विंटल कम कीमत पर अधिकांश किसानों ने अपना अनाज बेच दिया। अब जबकि 15 फरवरी को खरीद समाप्त हो जाएगी, लक्ष्य के मुकाबले महज करीब 40 फीसद ही खरीद की जा सकी है। बानगी के तौर पर बगहा दो का आकड़ा देखिए। सरकार ने 92 हजार क्विंटल धान खरीद का लक्ष्य दिया था। 29 जनवरी तक 38 हजार क्विंटल की खरीद हो सकी है।
पैक्सों को सरकार देती 8.70 लाख रुपये का क्रेडिट
धान की बिक्री में किसानों को असुविधा न हो, इसके लिए सरकार ने पंचायत स्तर पर पैक्सों को जवाबदेही सौंपी। सरकार हर साल खरीद के लिए पैक्सों को कैश क्रेडिट भी देती। प्रत्येक पैक्स को 8.70 लाख रुपये का क्रेडिट इस साल मिला। लेकिन, समस्या देरी व भंडारण को लेकर उत्पन्न हुई। अनुमंडल के 101 पैक्सों में 30 से अधिक पैक्सों का अपना गोदाम नहीं है। ऐसे में रुपये के मुकाबले खरीद करने वाले पैक्सों को भंडारण की ङ्क्षचता सताने लगी। जनवरी में पैक्सों को मिलरों से टैग किया गया। तब जाकर अनाज की आपूर्ति मिल तक शुरू हुई। लेकिन, तबतक काफी देर हो चुकी थी। जिन किसानों ने धान की बिक्री की उन्हें बोरियों की व्यवस्था करनी पड़ी। ढुलाई व बोरियों के एवज में भी 100 रुपये प्रति क्विंटल खर्च हो गए।
कहते किसान :-
यदि सरकार समय से अनाज के खरीद की व्यवस्था करती तो किसानों को आम व्यापारियों को अपना अनाज नहीं बेचना पड़ता। लेकिन, सिस्टम जबतक पटरी पर आता है, किसान रबी फसलों की बोवाई के लिए धान बेच चुके होते हैं। - शंभू चौधरी, किसान
सरकार को ढुलाई से लेकर बोरियों तक की व्यवस्था करनी चाहिए। पैक्स अध्यक्ष की मिन्नत करने के बाद भी मेरा नंबर नहीं आ सका। विवश होकर मैंने अपना अनाज स्थानीय व्यापारी के हाथों पांच सौ रुपये प्रति ङ्क्षक्वटल कम कीमत पर बेच दिया। -बिहारी यादव, किसान
नगर परिषद क्षेत्र में व्यापार मंडल के माध्यम से खरीद की घोषणा की गई। लेकिन, जब मैं बातचीत करने गया तो पता चला कि अभी जगह नहीं है, बाद में पता कर लीजिएगा। रबी फसलों की बोवाई का समय निकल रहा था, सो इंतजार करना मुनासिब नहीं समझा। -राजू यादव, किसान
सरकार की ढुलमुल नीति का खामियाजा किसानों को भुगतना पड़ता है। पहले किसान पंजीयन कराना पड़ा। फिर जब तौल की बारी आई तो पता चला कि कैश नहीं है। अब अपनी बारी का इंतजार कर रहा हूं। -रामजी पडि़त, किसान
- 450 किसानों से करीब 38 हजार क्विंटल धान की खरीद की जा चुकी है। सभी पैक्सों को कैश क्रेडिट प्राप्त हो चुका है। किसानों के खाते में सीधे भुगतान भेजा जा रहा है। - क्षितीन्द्र कुमार, बीसीओ, बगहा दो।