एईएस अब इंसेफलोपैथी के नाम से जाना जाएगा, एडवाइजरी जारी Muzaffarpur News
इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने कहा बीमारी की जड़ गर्मी एवं कुपोषण। अगले साल भी जारी रहेगा शोध। कुपोषण को लेकर सालों भर चलेगा जागरूकता अभियान।
मुजफ्फरपुर, जेएनएन ! मुजफ्फरपुर व आसपास के जिलों में बच्चों के लिए कहर बनी एईएस का अब 'इंसेफलोपैथी' नाम से जाना जाएगा। दिल्ली से आई केंद्रीय मंत्रालय की टीम ने माना कि बच्चों को बीमारी गर्मी में हो रही है। ज्यादा कुपोषित बच्चे इसकी चपेट में आ रहे हैं। इसपर अगले साल भी शोध जारी रहेगा। शोध का प्रथम आधार होगा गर्मी व कुपोषण। इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च ने इंसेफलोपैथी को लेकर नए साल के लिए गाइड लाइन जारी कर दिया है।
इस बारे में एसकेएमसीएच के शिशु रोग विभागाध्यक्ष डॉ.गोपाल शंकर साहनी ने कहा कि दिल्ली कार्यशाला में शामिल सभी विशेषज्ञ चिकित्सकों ने माना कि यह बीमारी संक्रमण वाली नहीं है। इसलिए यह एईएस नहीं कहलाएगा। बल्कि इंसेफलोपैथी के नाम से जाना जाएगा। इसके बाद इंडियन कांउसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च की ओर से नई एडवाइजरी जारी हुई है। इससे अगले साल बच्चों को बीमारी से बचाव में बहुत सहयोग मिलेगा।
अगले साल के लिए एडवाइजरी
- बिहार सरकार एसकेएमसीएच के शिशु विभाग के सारे चिकित्सक को आइसीयू का विशेष प्रशिक्षण दिलाएगी। प्रशिक्षणएम्स पटना व दिल्ली और सीएमसी यानी क्रिश्चयन मेडिकल कॉलेज भेलौर की टीम देगी।
- एसकेएमसीएच में पीआइसीयू की क्षमता तथा विशेष जांच की व्यवस्था हो ताकि मरीजों की पैथोलॉजिकल जांच के लिए बाहर नहीं जाना पड़े।
- ट्रीटमेंट प्रोटोकॉल में भी जरूरी बदलाव किया जाए।
- जागरूकता अभियान में स्वास्थ्य विभाग के साथ यूनिसेफ जैसे संस्थाओं से समन्वय बने।
- इलाज व जागरूकता के लिए स्वास्थ्य विभाग अन्य सहयोगी एजेंसी से समन्वय बनाकर रखें।
कार्यशाला में शोधपत्र की प्रस्तुति
बीमारी को लेकर 19 जुलाई 2019 को दिल्ली आइसीएमआर मुख्यालय में रिसर्च एवं आगामी लाइन ऑफ एक्शन पर कार्यशाला हुई। जिसमें आइसीएमआर के निदेशक डॉ.एमवी मुरेकर, नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ मेंटल हेल्थ एंड न्यूरोलॉजी यानी निमहांस के डॉ. वी रवि, सेंट्रल टीम लीडर एम्स दिल्ली के डॉ.अरुण कुमार सिंह, सीएमसी वेलौर के डॉ. टी जैकब जॉन, एनसीडीसी दिल्ली के डॉ.आकाश श्रीवास्तव, एसकेएमसीएच के शिशु विभागाध्यक्ष डॉ.गोपाल शंकर साहनी, एम्स पटना के डॉ.लोकेश कुमार तिवारी शामिल हुए। सभी ने इस बीमारी पर अपने शोध पत्र को प्रस्तुत किया। कार्यशाला में शामिल देश के करीब 60 चिकित्सकों ने अपनी राय दी।