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साल दर साल विश्वविद्यालय बेहाल, पठन-पाठन सब चौपट

10 लाख छात्र-छात्राओं वाले विश्वविद्यालय में शैक्षणिक अराजकता चुनावी मुद्दा क्यों नहीं। शिक्षकों की कमी के कारण सही शिक्षा नहीं मिल पा रही। शिक्षकों को सही और समय पर वेतन के लाले।

By Ajit KumarEdited By: Published: Tue, 16 Apr 2019 06:20 PM (IST)Updated: Tue, 16 Apr 2019 06:20 PM (IST)
साल दर साल विश्वविद्यालय बेहाल, पठन-पाठन सब चौपट
साल दर साल विश्वविद्यालय बेहाल, पठन-पाठन सब चौपट

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में बदहाल व्यवस्था व अराजकता से छात्र-छात्राएं ही नहीं, शिक्षक-कर्मचारी भी आजिज हैं। छात्रों की नाराजगी शैक्षणिक व्यवस्था को लेकर है तो शिक्षक-कर्मचारियों की अलग परेशानी है। ओहदेदार पदाधिकारी उनकी समस्याओं से बेपरवाह हैं।

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 मिथिला स्टूडेंट्स यूनियन के विश्वविद्यालय अध्यक्ष दाउद इब्राहिम ने कहा कि न जनप्रतिनिधियों का ध्यान इस ओर गया और न ही किसी राजनीतिक दल ने अपने एजेंडे में शामिल किया। विधायक और सांसद सरकार पर दबाव बनाते तो शायद सूरत व सीरत में बदलाव नजर आता। शिक्षकों की नियुक्तियां होतीं तो पढ़ाई भी ठीक ढंग से हो पाती। अब छात्र-छात्राएं चुनावी मुद्दा में नेताओं से सवाल करेंगे। 

क्लास में जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो कैसे पढ़ेंगे छात्र

छात्र नेता गोल्डेन सिंह कहते हैं कि आप सोचिए किस सपने के साथ 1899 में लंगट सिंह कॉलेज बना होगा और अब उसकी क्या हालत हो गई है। क्लास में जब शिक्षक ही नहीं होंगे तो वहां के छात्रों के साथ क्या होता होगा। विश्वविद्यालय छात्रसंघ के अध्यक्ष बसंत कुमार सिद्धू का कहना है कि सालों से हो रही अनदेखी ने कॉलेज व विश्वविद्यालय का बेड़ा गर्क कर दिया है।

 इस विश्वविद्यालय के अंतर्गत कम से कम 10 लाख छात्र आते हैं। इसलिए हम छात्र नेता वोट मांगने वाले उम्मीदवारों से चाहते हैं कि इस चुनाव वे कॉलेज का जायजा लें, इस मसले पर मिल बैठकर बात करें और समस्या के समाधान पर माकूल जवाब दें।

गणित के प्रोफेसर बन गए कंट्रोलर

विश्वविद्यालय के स्नातकोत्तर विभागों में 230 शिक्षक होने चाहिए मगर 101 ही पढ़ा रहे हैं। लंगट सिंह कॉलेज में गणित के कभी 11 प्रोफेसर हुआ करते थे, लेकिन इस वक्त दो ही प्रोफेसर रह गए हैं। इसमें से भी एक परीक्षा नियंत्रक बनकर चले गए हैं। यानी कॉलेज के गणित विभाग में एक ही प्रोफेसर हैं। इन खाली पदों में कोई अस्थायी तौर पर भी नहीं पढ़ाता।

वोकेशनल कोर्स का भी बंटाधार

2002 से इस कॉलेज में कई वोकेशनल कोर्स शुरू किए गए। जैसे बीबीए, बीसीए, बैचलर इन जर्नलिज्म आदि। इनमें से किसी भी कोर्स में परमानेंट फैकल्टी के लिए मंजूरी नहीं मिली है। 17-17 साल से यहां शिक्षक अस्थायी तौर पर पढ़ा रहे हैं। इस उम्मीद में कि किसी दिन परमानेंट हो जाएंगे। आप कल्पना नहीं कर सकते कि वे प्रोफेसर अपना घर चलाने के लिए कॉलेज के बाद क्या-क्या जतन करते होंगे।

 वोकेशनल कोर्स के टीचर को एक क्लास के लिए 400 रुपये मिलते हैं। महीने में 20 क्लास से ज्यादा नहीं पढ़ा सकते। कई शिक्षकों ने बताया कि महीने में अधिकतर 12-15 क्लास ही हो पाती है। कॉलेज में पढ़ाकर वे महीने में 10,000 से ज्यादा नहीं कमा पाते। ये तो शिक्षकों की बात हुई छात्रों के साथ कितना खिलवाड़ हो रहा होगा।

 इस संबंध में बीआरएबीयू कुलपति डॉ. अमरेंद्र नारायण यादव ने कहा कि नए सत्र से सबकुछ पटरी पर दिखाई देने लगेगा। परीक्षा व एकेडमिक कैलेंडर लागू हो चुका है। ऑनलाइन व्यवस्था भी बहाल है। शिक्षकों की भर्ती भी तेजी से हो रही है। नए सत्र से कक्षाएं सुचारू रूप से संचालित होंगी।


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