Positive India: हिंदुओं को तीर्थयात्रा तो मुसलमानों को कराते जियारत, जानिए दरभंगा के इस दंपती के बारे में
दरभंगा के दंपती छह वर्षों से इस काम में लगे अपने खर्च व अन्य के सहयोग से ले जाते लोगों को। इनमें अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर और बुजुर्ग होते हैं।
दरभंगा [विभाष झा]। ये मुस्लिमों को नवंबर में जियारत कराने तो दिसंबर में हिंदुओं को भेजते तीर्थयात्रा पर। इनमें अधिकतर आर्थिक रूप से कमजोर और बुजुर्ग होते हैं। यह सिलसिला करीब छह सालों से चल रहा। इस बार कोरोना के चलते अनिश्चतता के बादल छाए हुए हैं, लेकिन उम्मीद है कि नवंबर तक स्थिति सामान्य हो जाएगी। इस पुनीत काम को कर रहे वार्ड नंबर 21 की पार्षद मधुबाला सिन्हा और उनके पति नवीन सिन्हा। निश्चय ही यह वार्ड ङ्क्षहदू-मुस्लिम एकता की मिसाल पेश कर रहा है।
तीर्थयात्रा और जियारत करने वाले इच्छुक लोगों की पहले लिस्ट बनाई जाती है। फिर ट्रेन के टिकटों की बुकिंग जुलाई में ही करा दी जाती है। यात्रा पर जाते समय टोली में बुजुर्गों की देखभाल के लिए वार्ड के आधा दर्जन युवा भी रहते हैं। वे यात्रा के दौरान उन्हें ट्रेन में चढ़ाने-उतारने के अलावा भोजन व ठहरने की पूरी व्यवस्था संभालते हैं। टीम अपने साथ डस्टबिन और झाडू लेकर चलती है, ताकि कहीं गंदगी न फैले।
हर साल तकरीबन 400 लोग जानेवालों में शामिल होते हैं। हर व्यक्ति से केवल ट्रेन का किराया लिया जाता। 20-25 दिन की यात्रा के दौरान रहने, खाने-पीने और घुमाने का सारा खर्च दंपती अपने स्तर और लोगों की मदद से करते हैं। अब तक ये दंपती तकरीबन 2500 लोगों को ले जा चुके हैं। हर साल 70 से 80 हजार अपनी जेब से खर्च करते हैं। इसके अलावा सुलभ इंटरनेशनल के संस्थापक डॉ. ङ्क्षवदेश्वर पाठक, आइएएस महेंद्र कुमार, आइएएस डॉ. त्यागराजन एसएम, आइपीएस एमआर नायक सहित कई लोग योगदान देते हैं।
यहां-यहां ले गए
हिंदुओं को 12 ज्योतिर्लिंग के अलावा वैष्णो देवी, हरिद्वार, ऋषिकेश, बद्रीनाथ, कन्याकुमारी, मदुरई मीनाक्षी मंदिर, तिरुपति बालाजी मंदिर, जगन्नाथपुरी और अमृतसर सहित अन्य जगहों की यात्रा करवाई है। मुस्लिम समुदाय के लोगों को हाजी अली, हजरत निजामुद्दीन, अजमेर शरीफ, कलियर शरीफ रुड़की, देवा शरीफ बाराबंकी, अमरोहा, उन्नाव और अकबरपुर सहित अन्य स्थानों पर ले गए हैं।
बीते साल 102 लोगों की टीम जियारत करने गई थी। इसके बाद दिसंबर में 205 लोग तीर्थयात्रा पर गए थे। माया देवी कहती हैं कि सिर्फ टिकट का पैसा लगा। शांति देवी कहती हैं कि तीर्थयात्रा करने पर अपने को सौभाग्यशाली समझती हूं। मुंशी साह, काशी प्रसाद गुप्ता ने बताया कि ङ्क्षजदगी में पहली बार तीर्थयात्रा का मौका मिला।
मजदूरी करने वाले मोहम्मद नसीम, मोतीउर रहमान, मो. मकबूल, मो. कलीम का कहना है कि इनकी मदद से जियारत करने का मौका मिला। शाही मस्जिद के इमाम मौलाना नजीर अहमद उस्मानी जियारत दल के साथ देश के विभिन्न मजारों पर गए हैं। कहते हैं, यह काम सामाजिक एकता व सद्भाव का परिचायक है। नवीन सिन्हा ने बताया कि वर्ष 2014 में एक टीवी शो में देखा कि एक व्यक्ति प्रतिवर्ष करीब 50 लोगों को तीर्थाटन कराने ले जाता है। इसी से प्रेरणा मिली।