वेतन-पेंशन पर खर्च होता बीआरए बिहार विश्वविद्यालय के बजट का 70 प्रतिशत, एकेडमिक पर पूरा होता कोरम
तीन वित्तीय वर्षों में पीजी विभागों के लिए आकस्मिक मद का बजट बढ़ा तीन गुना विभागों को फूटी कौड़ी तक नहीं मिली। विवि और कालेजों में विद्यार्थियों के नामांकन की राशि भी विवि ले लेती विभागों में फंड के अभाव में नहीं होतीं प्रायोगिक कक्षाएं।
मुजफ्फरपुर, जासं। बीआरए बिहार विश्वविद्यालय में तीन वित्तीय वर्षों में पीजी विभागों में आकस्मिक योजना के तहत दी जाने वाली राशि का बजट बढ़कर तीन गुना हो गया, लेकिन इनको एक फूटी कौड़ी भी नहीं मिली। हाल यह है कि प्रायोगिक कक्षाओं के संचालन के नाम पर कोरम पूरा हो रहा है। कुछ विभाग इसका संचालन कर रहे तो यहां के अध्यक्ष अपने वेतन से प्रयोगशाला के उपकरण व रख-रखाव का खर्च वहन कर रहे हैैं। हर वर्ष पीजी में पांच से छह हजार विद्यार्थी यहां से पास हो रहे, लेकिन उनकी न तो प्रायोगिक कक्षाएं होती हैं और न ही परीक्षाओं में मानक का ख्याल रखा जाता है।
वित्तीय वर्ष 2020-21 में पीजी विभागों का बजट 53.75 लाख था। व्यवस्था सु²ढ़ करने के नाम पर 2021-22 में इसका बजट बढ़ाकर 1.69 करोड़ किया गया। वहीं 2022-23 के लिए जो बजट प्रस्तावित किया गया है उसमें राशि का प्रस्ताव बढ़ाकर 1.73 करोड़ कर दिया गया है। आकस्मिक योजना की राशि तब भी नहीं मिलती थी और अब भी नहीं मिल रही। ऐसे में बजट का तीन गुना होना व्यवस्था पर सवाल खड़ा कर रहा है। पिछले वर्ष 1070 करोड़ का बजट प्रस्तावित हुआ था। इस वर्ष का बजट 1057 करोड़ का है। इसमें से 770 करोड़ रुपये शिक्षक व कर्मचारियों के वेतन और पेंशन मद में खर्च होता है।
उपकरणों की होती खरीदारी पर रखरखाव नहीं
विश्वविद्यालय की ओर से विभिन्न विभागों में समय-समय पर उपकरणों की खरीदारी तो होती है, लेकिन उनकी देखरेख करने वाला भी कोई नहीं है। पीजी बाटनी विभाग में दो वर्ष पूर्व सैप प्रोजेक्ट के तहत खरीदे गए करोड़ों रुपये के उपकरण विभाग के कमरे में बंद हैं। इसमें पीसीआर मशीन जो लाखों में खरीदी गई वह अब तक डिब्बे से बाहर तक नहीं निकाली गई।
राशि का होता दुरुपयोग, खपा दिया जाता फंड
यूजीसी, रूसा समेत सरकार के कई योजनाओं से उपकरणों की खरीदारी के लिए फंड मिलता है। राशि का योजनाबद्ध तरीके से उपयोग नहीं होता। राशि लौटाने का जब समय आता है तो उसे जैसे-तैसे खपा दिया जाता है। प्रायोगिक की पढ़ाई के लिए कीमती पुस्तकें खरीदी जाती हैं, लेकिन उन्हें पढ़ाने वाला कोई नहीं है। लैब में ये पुस्तकें सड़ रही हैं।
पीजी जूलाजी विभाग की छात्रा रश्मि रूपम ने कहा कि सत्र 2018-20 के चारों सेमेस्टर बीत गए। इस अवधि में एक-दो दिन प्रयोगशाला चली। न तकनीशियन हैं और न कोई देखरेख करने वाला। प्रायोगिक कक्षाओं के नहीं होने से विषय वस्तु की बारीकियों को नहीं जान सकीं।पीजी रसायनशास्त्र विभाग के सौरभ कुमार कहते हैं कि सत्र 2020-22 में तीन महीने से कक्षाओं में शामिल हो रहे हैैं। अबतक प्रायोगिक कक्षाएं नहीं कराई गईं। सिर्फ थ्योरी कक्षाएं हो रहीं, जबकि प्रायोगिक ज्ञान होना जरूरी है। पीजी इलेक्ट्रानिक्स विभाग के विकास कुमार का मानना है कि इलेक्ट्रानिक्स में आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस और रोबोटिक्स का सिलेबस तो है, लेकिन लैब नहीं। अन्य कुछ कीमती उपकरण हैं भी तो वे धूल फांक रहे हैं। विवि को इससे कोई मतलब नहीं है।
संकायाध्यक्ष बोले, फंड के अभाव में नहीं चलती प्रयोगशाला
साइंस संकायाध्यक्ष डा.मनेंद्र कुमार का कहना है किबिना प्रायोगिक ज्ञान के साइंस की पढ़ाई अधूरी है। पीजी विभागों को पिछले आठ वर्षों से आकस्मिक योजना की राशि नहीं मिल रही। इसी राशि से लैब का रख-रखाव व केमिकल व उपकरणों की खरीदारी होती है। विभागों में लैब इंस्ट्रक्टर व तकनीशियन भी नहीं हैं। ऐसे में प्रायोगिक कक्षाओं का संचालन करना मुश्किल है। जूलाजी में कक्षाएं संचालित करा रहें तो उसका खर्च वेतन से देना पड़ रहा।
एक नजर में विवि का बजट
पेंशन मद में - 450.75 करोड़
वेतन मद में - 320.93 करोड़
नए कोर्स के लिए - 26 करोड़
अतिथि शिक्षकों के लिए- 24 करोड़
जीणोद्धार मद में - 21.55 करोड़
यूएमआइएस पर - 15.30 करोड़
नैक के लिए- 11.22 करोड़
कामन सर्विस मद में- 8.46 करोड़
कंप्यूटर व लैब के लिए- 5 करोड़
कालेजों के लिए आकस्मिक योजना- 1.17 करोड़
पीजी विभागों के लिए आकस्मिक योजना- 1.73 करोड़