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पश्चिम चंपारण में बांस से बनेगा कप-प्लेट व फर्नीचर, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर

Making of cup-plate by Bamboo in West Champaran बिहार औद्योगिक क्षेत्र परिसर में रामनगर के बिलासपुर गांव निवासी अमृतांशु राय ने यह कारोबार शुरू किया है। अब कप प्लेट से लेकर चारपाई व बिछावन तक बांस से निर्मित होगा। फैक्ट्री का उद्घाटन शनिवार को हुआ।

By Murari KumarEdited By: Published: Sun, 04 Apr 2021 04:46 PM (IST)Updated: Sun, 04 Apr 2021 04:46 PM (IST)
पश्चिम चंपारण में बांस से बनेगा कप-प्लेट व फर्नीचर, बढ़ेंगे रोजगार के अवसर
मशीन की मदद से बांस को आकार देते अमृतांशु

बगहा (पश्चिम चंपारण), जासं। अब कप प्लेट से लेकर चारपाई व बिछावन तक बांस से निर्मित होगा। यह ईको फ्रेंडली तो होगा ही, साथ ही इसकी कीमत भी काफी कम होगी। फैक्ट्री का उद्घाटन शनिवार को हुआ। बिहार औद्योगिक क्षेत्र परिसर में रामनगर के बिलासपुर गांव निवासी अमृतांशु राय ने यह कारोबार शुरू किया है। जिसमें फिलहाल फोल्डिंग सीढ़ी, बिल्डिंग के कार्य के लिए चाली, पौधा संरक्षण के लिए केब्रियन, गन्ना लादने के लिए सीढ़ी के साथ अन्य सामग्री के निर्माण का कार्य शुरू किया गया है। इसके अलावा प्लेट, कटोरी, कोस्टर का भी निर्माण इस योजना से बांस से शुरू किया जा रहा है। इसके लिए आधुनिक मशीनें मंगाई गईं हैं।

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 मशीनें मध्य प्रदेश से लाई गई हैं। जो बांस का साफ करने के साथ इसको विभिन्न रूपों में ढालने में भी मददगार हैं। अमृतांशु ने बताया कि इससे स्थानीय स्तर पर बांस की खरीद की जा रही है। साथ हीं इससे निर्मित सामग्री को दूसरे जिलों में बिक्री के लिए भेजा जाएगा। इससे लोगों के लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इस मौके पर पूर्व स्वास्थ्य मंत्री चंद्रमोहन राय, विधायक भागीरथी देवी, गन्ना काश्तकार संघ के नीरू राय, मधुकर राय, सुशील छापोलिया, चीनी मिल के फार्म महाप्रबंधक मनन सिंह, अभिषेक राय, सौरभ पांडेय, संदीप पटेल समेत अन्य मौजूद थे।

त्रिपुरा से लिया प्रशिक्षण, 20 लाख तक की लागत से कारोबार शुरू 

अमृतांशु राय ने इस कार्य के लिए त्रिपुरा में प्रशिक्षण लिया है। जिसके बाद स्थानीय स्तर पर कामगारों को प्रशिक्षित किया। यह अवधि 15 दिनों की थी। इसके लिए मध्य प्रदेश से यंत्रों की खरीद की। जिसमें करीब 20 लाख तक का खर्च आया। उन्होंने बताया कि इस कार्य से निश्चित ही क्षेत्र में नई क्रांति का आगाज होगा। जिससे स्थानीय स्तर पर होने वाले बांस को नया रूप मिलेगा। साथ हीं लोगों में इसके उत्पादन को लेकर जागरूकता आएगी।


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