समस्तीपुर के गांवों में बांस की झोपड़ी में किसान करेंगे मशरूम की खेती, कम पूंजी में होगी अच्छी आमदनी
Cultivation of Mashroom in Bamboo Huts अब गांवों में किसान बांस की झोपीड़ी में मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बनेंगे। इसकी यूनिट लगाने में खर्च होगी 1.79 लाख रुपये। जिसमें राज्य सरकार 50 फीसदी राशि अनुदान देगी। इसमें पहले आओ पहले पाओ के आधार पर लाभुकों का चयन किया जाएगा।
समस्तीपुर, जेएनएन। अब गांवों में किसान बांस की झोपीड़ी में मशरूम की खेती कर आत्मनिर्भर बनेंगे। इससे किसान एक साल की खेती से करीब दो लाख रुपये से अधिक की कमाई कर सकेंगे। बांस की झोपड़ी में मशरूम की खेती करने के लिए 1500 वर्ग फीट में स्थापित होने वाली एक यूनिट पर एक लाख 79 हजार रुपये लागत आएगी। जिसमें राज्य सरकार 50 फीसदी राशि अनुदान देगी। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के तहत मशरूम की खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है। खास बात यह भी है कि मशरूम की पैकेजिंग व ब्रांडिंग भी की जाएगी। इसके अलावा हर मौसम में खेती के लिए किसान यूनिट बना सकते हैं।
मशरूम की खेती में इस्तेमाल होने वाला कंपोस्ट की इकाई भी लगा सकते हैं। मशरूम की खेती से जुड़कर कम जगह में अच्छी आमदनी शुरू हो जाएगी। इसका प्रयास उद्यान विभाग कर रहा है। विभाग के अनुसार जल्द ही आवेदन लेने की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। इसमें पहले आओ पहले पाओ के आधार पर लाभुकों का चयन किया जाएगा।
मशरूम की खेती के लिए कम लेगी पूंजी
मशरूम की खेती करने के लिए बांस की झोपड़ी की साइज 50 फीट लंबा, 30 फीट चौड़ा और 12 फीट ऊंचा रहना चाहिए। इसके आधार पर किसान 1500 वर्ग फीट में इसकी खेती कर सकेंगे। इसके लागत में एक लाख 79 हजार पांच रुपये खर्च होंगे। इस पर 89 हजार 750 रुपये अनुदान मिलेंगे। मशरूम खेती से जुड़े जानकार बताते हैं कि बोआई के 15 से 20 दिन बीज से पौधा निकल जाते है। इसके बाद देखभाल करनी होती है। जाड़े का मौसम मशरूम की खेती के लिए अनुकूल माना जाता है। इसमें 30 डिग्री तापमान की आवश्यकता होती है। जिला उद्यान पदाधिकारी अजय कुमार सिंह ने बताया कि मशरूम की खेती को सहारा दिया जा रहा है। योजना के अनुसार किसान झोपड़ी बनाकर कम जगह में मशरूम उत्पादन व कंपोस्ट का उत्पादन करके अच्छी कमाई कर सकते है।
बाजार में मिलती है अधिक कीमत
कृषि समन्वयक पंकज कुमार ने बताया कि मशरूम की अच्छी कीमत मिलती है। डिमांड खूब है, क्योंकि मशरूम को सेहत का खजाना बताया जाता है। इसमें पर्याप्त मात्रा में प्रोटीन, खनिज, लवण व अन्य पोषक तत्व हैं। वैसे तो यह हर मौसम में उपलब्ध रहता है किंतु जाड़े में इसका सेवन करने से रोग प्रतिरोधी क्षमता का विकास होता है। बच्चों में कुपोषण दूर का भी अच्छा माध्यम है। इसकी खेती झोपड़ी या बंद कमरे में आसानी से होती है। गर्मी के दिनों में इसकी खेती प्रभावित होती है।