जलकुंभी से तैयार होगा वर्मी कंपोस्ट, केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय पूसा में चल रहा शोध
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय में दो माह से चल रहा शोध। जलकुंभी में पोटाश व नाइट्रोजन की भरपूर मात्रा फसलों के लिए फायदेमंद।
समस्तीपुर (पूसा) [पूर्णेंदु कुमार]। जलकुंभी से वर्मी कंपोस्ट बनाया जाएगा। डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय, पूसा में इस पर शोध हो रहा है। उत्पादन शुरू करने के लिए विश्वविद्यालय स्तर पर मंजूरी मिल गई है। पेटेंट करवाने के बाद इसे बाजार में भेजा जाएगा।
तालाब एवं नदियों में जलकुंभी बड़ी समस्या है। इसके सार्थक उपयोग को लेकर दो महीने पहले कृषि विश्वविद्यालय में शोध शुरू हुआ। मृदा विज्ञानी डॉ. शंकर झा के नेतृत्व में चल रहे शोध में जलकुंभी में पाए जाने वाले तत्वों को जांचा गया। पता चला कि जलकुंभी के पत्ते में पोटाश 4.5 फीसद, नाइट्रोजन दो फीसद, फॉस्फोरस 1.5 फीसद और कैल्शियम की मात्रा तीन फीसद है। यह फसलों के लिए काफी फायदेमंद होगी।
कंपोस्ट तैयार करने के लिए पहले जलकुंभी को नदी एवं तालाबों से निकालकर सुखाया गया। फिर इसकी ग्राइंडिंग की गई। इसके बाद इसमें गोबर मिलाया गया, फिर इसमें केंचुआ डाला गया। पूरे मिश्रण में जलकुंभी का उपयोग महज छह फीसद किया गया। डॉ. शंकर झा के अनुसार केंचुआ डालने से पूर्व उस स्थल का तापमान 35 से 40 डिग्री के बीच होना चाहिए। एक टन मिश्रण में दो से ढाई किलो केंचुआ छोड़ा गया है। केंचुआ छोडऩे के 25 दिन बाद खाद तैयार हो जाती है। जबकि, पूरी प्रक्रिया में 80 से 90 लगते हैं।
कुलपति डॉ. आरसी श्रीवास्तव का कहना है कि तैयार कंपोस्ट के परीक्षण के बाद इसकी गुणवत्ता को मापा जाएगा। फिर पेटेंट करवाकर बाजार में भेजा जाएगा। वह बताते हैं कि इसके पूर्व विश्वविद्यालय ने कचरे से वर्मी कंपोस्ट बनाने का काम किया था, जो खेतों के लिए वरदान साबित हो रहा है।