Cycle Girl Jyoti: अब नहीं गुमनाम, 'साइकिल गर्ल' ज्योति से चमक रहा सिरहुल्ली गांव
पिता को साइकिल पर बैठाकर 12 सौ किमी लाने वाली ज्योति कुछ ही दिनों में बन गई लखपति। प्रतिदिन उसके घर पहुंचती नेताओं और अन्य हस्तियों की गाडिय़ों की वजह से चर्चा में गांव।
दरभंगा [विभाष झा] । जिले के नक्शे पर कभी सिरहुल्ली गांव गुमनाम था। 'साइकिल गर्लÓ ज्योति की वजह से आज देश-दुनिया में इसकी चर्चा हो रही। बीमार पिता को साइकिल पर बैठाकर ज्योति ने 12 सौ किलोमीटर की दूरी तय की। उसके साहस को लोग सलाम कर रहे हैं। आज उसके पास कई नई साइकिलें हैं। वह लखपति बन चुकी है। इसका श्रेय ज्योति दैनिक जागरण को देती है।
वर्ष 2006 में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने लड़कियों के लिए मुख्यमंत्री साइकिल योजना की शुरुआत की थी। इसका उद्देश्य शैक्षणिक संस्थाओं में लैंगिक अंतर को कम करना था। लड़कियां घरों से निकलकर साइकिल चलाते स्कूल पहुंचने लगीं। इसी योजना के तहत ज्योति की बड़ी बहन को भी साइकिल मिली थी। ज्योति ने उसी से साइकिल चलाना सीखा था। उस वक्त वह साइकिल मनोरंजन के लिए चलाती थी। लॉकडाउन में इस योजना की उपयोगिता काम आ गई। जब घर आने के लिए साइकिल के सिवाय उसके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं था। आते समय रास्ते में दो दिन भूखे-प्यासे रहकर भी ज्योति ने हिम्मत नहीं हारी। उसने घर न पहुंच पाने की पिता कीटूटती आस को न केवल बचाया, बल्कि इस मुश्किल सफर में बाप-बेटी एक-दूसरे का सहारा भी बने।
फिल्मी कहानी से कम नहीं यह
फिल्मों में रातों-रात किस्मत बदलने की कहानी जरूर देखी होगी। ज्योति की कहानी भी इससे मिलती-जुलती है। गुरुग्राम से चलते वक्त ज्योति के पिता की जेब में मात्र पांच सौ रुपये बचे थे। खाने-पीने को कुछ नहीं था। लेकिन, आठ दिनों की कठिन तपस्या के बाद किस्मत ने ऐसी करवट ली कि आस-पड़ोस के लोग दंग हैं। लक्ष्मी की वर्षा हो रही। ज्योति आज लखपति बन गई है। उसे तकरीबन छह लाख रुपये मिल चुके हैं। इसके अतिरिक्त कई संस्थानों ने राशन, कपड़े, उसकी शादी और शिक्षा के साथ-साथ स्वास्थ्य का भी जिम्मा उठाया है। कई नई साइकिलें मिली हैं।
अब घर पहुंच रहीं योजनाएं
ज्योति के परिवार वालों को कुछ महीने पहले तक सरकारी योजना पाने के लिए पंचायत से लेकर प्रखंड और जिले तक के चक्कर काटने पड़ते थे। लेकिन, आज हालात अलग हैं। आज योजनाएं उसके घर पहुंच रही हैं। कल तक घर में शौचालय नहीं था। शौच के लिए रात का इंतजार करना पड़ता था। आज शौचालय घर के बाहर बनकर तैयार है। दरवाजा भी लग चुका है। मां फूलो देवी कहती हैं, सबकुछ बदल गया है। लॉकडाउन में सभी गांवों में दूसरे राज्यों से आने वालों के लिए दरवाजे बंद हैं, लेकिन ज्योति का हौसला देख ग्रामीणों ने दरवाजे खोल दिए थे।
दुनिया में बढ़ौलैअ मिथिला के सम्मान...
कमतौल क्षेत्र के पिंडारूच गांव की सविता झा ने ज्योति पर एक मैथिली गाना लिखा है। 'मिथिला के ई बेटी ज्योति छैन इनकर नाम, देश-विदेश में चर्चा, सब करैय आ गुनगान.. कैहन कठिन काज आहा कैलिये, गुरुग्राम से साइकिल चढि़ अयैलेय... दुनिया में बढ़ौलैअ मिथिला के सम्मानÓ...। आसपास के इलाकों में मैथिली भाषा के पारंपरिक गानों के लिए पहचानी जाने वाली सविता कहती हैं, हमें नाज है इस बेटी पर।