परदेस के बेहतर खाना से अच्छा है घर का नमक- रोटी
मुजफ्फरपुर अधिक पैसा कमाने की चाहत में हम परदेश गए। लेकिन आज कहीं के नही रहे।
मुजफ्फरपुर : अधिक पैसा कमाने की चाहत में हम परदेश गए। लेकिन आज कहीं के नही रहे। घर पर रहकर जो कमाते थे वह भी अब नहीं रहा। जो व्यक्ति यहा से बुलाकर ले गया था संकट के समय उसने भी साथ छोड़ दिया। अब कभी परदेश जाने की सोचेंगे भी नहीं। अब समझ में आ गया है कि परदेस के बेहतर खाना से अच्छा है घर का नमक-रोटी। यह कहना है मुशहरी प्रखंड के नरौलीडीह के दिलीप कुमार का जो गाजियाबाद में मधुमक्खी पालन करता था। अब उसने अपने घर पर ही फिर से मधुमक्खी पालन शरू किया है। गांव के ही शंभू महतो कहते है, वह जितना परिश्रम वहा करता था, उससे कम मेहनत भी घर पर रहकर करता तो वहा से अधिक पैसा कमाता। जिसका वह काम करता था, उसने भी साथ छोड़ दिया सड़क पर भटकने के लिए। इस कोरोना बीमारी ने दिखा दिया कि नाते रिश्तेदार भी सहारा नहीं बने। संकट की घड़ी में सबने मुंह मोड़ लिया। शंभू ने गांव में ही जमीन ठेका पर लेकर फूल की खेती शुरू की है। नरौली सेन का ब्रजेश चौधरी दिल्ली के होटल में काम करता था। उसने बताया कि अब जिंदगी में दिल्ली काम करने नहीं जाएंगे। घर पर नमक-रोटी खा लेंगे लेकिन बाहर नहीं जाएंगे। जिन लोगों ने होटल मालिक को सेठ बना दिया, आज जब समय आया तो बाहर कर दिया। गांव के ही राजीव पासवान ने बताया कि वह पंजाब में सड़क निर्माण का काम करता था। जो ठीकेदार ले गया था, उसने कुछ दिन रखा और बाद में उसने भी हाथ खड़ा कर दिया कि तुम अपनी व्यवस्था अब खुद देखो। उसके बाद तो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा। जो कमाया सो बैठ कर खाए और अंत में सामान बेच कर आए। सबने कहा कि अब कभी परदेस नहीं जाएंगे, यहीं काम करेंगे। परदेस का एक हजार रुपये अपने गाव के 200 रुपये के बराबर है। यहीं रहकर अपने सूबे की अर्थ व्यवस्था को बढ़ाने में सहयोग करेंगे। - लॉकडाउन में हुई परेशानी को याद कर रोंगटे खड़े हो जाते हैं। काम छूट गया तो खाना पर आफत आ गई। अब कभी परदेस नहीं जाऊंगा। यहीं रहकर मधुमक्खी पालन करुंगा।
दिलीप कुमार - परदेस में रहकर काम करने से अच्छा अपने गांव में ही रहना है। मुसीबत में सबने साथ छोड़ दिया। अब कभी परदेस नहीं जाऊंगा। अपने गांव में ही रहकर अधिक श्रम कर पैसे कमाऊंगा।
शंभू महतो