रखरखाव व संरक्षण के अभाव में सूख रहे तालाब, पहचान बचाने की दरकार Muzaffarpur News
150 सरकारी और निजी तालाब-पोखर हैं प्रखंड क्षेत्र में। गंदगी और जलकुंभी से पटे अधिकतर तालाब। कुछ पर कर लिया गया अतिक्रमण। उड़ाही न कराए जाने से गंदगी का साम्राज्य है।
मुजफ्फरपुर, [धीरेंद्र कुमार शर्मा]। कभी पीने के पानी का मुख्य स्रोत रहे तालाब रखरखाव और संरक्षण के अभाव में अपनी पहचान खोते जा रहे हैं। उड़ाही न कराए जाने और जल संरक्षण के उपाय नहीं होने से इनमें गंदगी और जलकुंभी का साम्राज्य है। वहीं निजी स्वार्थ के चलते कुछ तालाबों पर अतिक्रमण कर लिया गया। पहले लोग तालाब के पानी से खाना बनाते थे।
कालांतर में इनका उपयोग स्नान करने, मवेशियों को नहलाने, सिंचाई करने व अन्य कार्यों में किया जाता रहा है। कभी तालाब व पोखर का निर्माण पुण्य कार्य से जुड़ा था। लोग यश व कीत्र्ति के रूप में इस कार्य को प्राथमिकता देते थे। आज के दौर में यह अवधारणा मिटती जा रही है। इससे जलसंकट गहराता जा रहा है। विरासत के रूप मे मिले तालाब-पोखर की सुरक्षा के प्रति लोग भी गंभीर नही हैं।
अतिक्रमण कर बना लीं झोपडिय़ां
कटरा प्रखंड के अंतर्गत करीब 150 तालाब और पोखर हैं। इनमें कुछ निजी तो अधिकतर सरकारी हैं। ये अपने अस्तित्व को बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। यजुआर मध्य में नौ पोखर हैं, जो सरकारी बताए जाते हैं। वहीं तीन पोखर निजी हैं। इनमे पांच पोखरों का पानी सूख चुका है। वहीं जो बचे हैं उनमें गंदगी और जलकुंभी का साम्राज्य है। पोखर के आस-पास अतिक्रमण का सिलसिला वर्षों से जारी है। इसी तरह यजुआर पश्चिम मे पांच पोखर हैं जो बदहाली का शिकार हैं।
यजुआर पूर्वी में तो एक पोखर को भरकर आवास बना लिया गया है। तेहवारा पंचायत में सात सरकारी तालाब हैं। इनमें अधिकतर में पानी तो है, लेकिन एक तिहाई हिस्से पर अतिक्रमण है। इसके अलाबा पांच पोखर निजी हैं, जिनकी हाल में ही उड़ाही की गई है। सबसे खराब स्थिति प्रखंड मुख्यालय स्थित कटरा में अवस्थित पोखरों की है। यहां तीन सरकारी पोखर हैं। इनमे दिघिया पोखर अतिप्राचीन और विशालकाय रहा है। वर्तमान में इसके अवशेष मात्र रह गए हैं। यह पोखर कभी 80 एकड़ में फैला था।
आस-पास भूमि की सिंचाई इसी पर आधारित थी। यह मत्स्य पालन का बड़ा स्रोत माना जाता था। अब यह सिमट चुका है। अधिकतर भाग में पिछड़े, अति पिछड़ों ने कब्जा कर झोपडियां बनाकर मवेशी का घर बना लिया है। यही नहीं एक मोहल्ला ही बस गया है और इसका नामाकरण अंबेदकर नगर किया गया है। इन्हें क्षेत्रीय राजनीतिक संरक्षण भी प्राप्त है। यहीं पर पंचायत सरकार भवन और एक मध्य विद्यालय की स्थापना हो चुकी है। सोनपुर स्थित घोड़चरी व जनकलली पोखर चर्चित थे। अब दबंगो और भूस्वामियों के कब्जे में हैं। ये मवेशियों के चारागाह बन गए हैं।
सरकारी स्तर पर उड़ाही में परेशानी
प्रखंड के अधिकतर तालाब व पोखरों का हाल एक जैसा ही है। यजुआर के मुखिया सुमननाथ ठाकुर ने बताया कि सधुआही पोखर के जीर्णोद्धार के लिए निजी खर्च से उड़ाही कराई, लेकिन मनरेगा मे राशि फंस गई। इसलिए आगे का काम रुक गया। तेहवारा के धीरेंद्र सिंह ने बताया कि सरकारी स्तर पर पोखरों की उड़ाही में परेशानी होती है।
दिघिया पोखर का बड़ा हिस्सा कुछ भूस्वामियों के कब्जे में है। इस पर खेती की जा रही है। इन पोखरों को जीवित रखने के लिए कभी सामूहिक प्रयास नहीं किया गया। इस बावत अंचलाधिकारी ललित कुमार झा ने कहा कि सरकारी तालाबों का शीघ्र सर्वे कराकर इन्हें अतिक्रमणमुक्त कराया जाएगा। दिघिया पोखर मे बसे लोगों को कोई स्वामित्व का अधिकार नही है। सरकारी निर्देशों का पालन किया जाएगा।