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फिर एमएस कॉलेज के प्राचार्य होंगे डॉ. हरिनारायण ठाकुर Muzaffarpur News

हाईकोर्ट ने पूर्व वीसी का आदेश किया खारिज कहा-राजनीतिक पैरवी पर किसी का तबादला वैध नहीं। तत्कालीन कुलपति प्रो. अमरेंद्र नारायण यादव से शोकॉज भी मांगा।

By Ajit KumarEdited By: Published: Sat, 06 Jul 2019 09:31 PM (IST)Updated: Sat, 06 Jul 2019 09:31 PM (IST)
फिर एमएस कॉलेज के प्राचार्य होंगे डॉ. हरिनारायण ठाकुर Muzaffarpur News
फिर एमएस कॉलेज के प्राचार्य होंगे डॉ. हरिनारायण ठाकुर Muzaffarpur News

मुजफ्फरपुर, जेएनएन। एमजेके कॉलेज बेतिया के प्राचार्य डॉ. हरिनारायण ठाकुर फिर एमएस कॉलेज, मोतिहारी के प्राचार्य होंगे। पिछले साल मार्च में तबादले को उच्च न्यायालय में चुनौती देने के बाद उनके पक्ष में फैसला आया है। याचिका कर्ता के अधिवक्ता अभिनव श्रीवास्तव के हवाले से बताया गया है कि जस्टिस एके उपाध्याय की एकल पीठ ने तबादला आदेश को रद कर दिया है। हाइकोर्ट का यह फैसला 27 जून को आया है। 24 फरवरी, 2018 को डॉ. ठाकुर का तबादला हुआ था।

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 इसके विरुद्ध 6 मार्च को हाइकोर्ट की शरण में चले गए थे। हाइकोर्ट ने अपने फैसले में तबादले को नियम विरुद्ध करार दिया है। डॉ. ठाकुर ने इसे न्याय की जीत बताया है। डॉ. ठाकुर को हटाकर एलएनटी, मुजफ्फरपुर के प्राचार्य प्रो. ओमप्रकाश सिंह को वहां भेज दिया गया था। इसी बीच फिर एकबार प्रो. ओमप्रकाश का तबादला मोतिहारी से मुजफ्फरपुर आरडीएस कॉलेज किया गया और, एमएस कॉलेज में वहां के वरीय शिक्षक डॉ. प्रदीप कुमार को प्राचार्य नियुक्त कर दिया गया। 

स्टे लगने पर स्पष्ट ऑर्डर मांगे थे तत्कालीन कुलपति ने

याचिकाकर्ता का कहना था कि तत्कालीन केंद्रीय कृषि एवं कल्याण मंत्री राधामोहन सिंह के इशारे पर कुलपति ने नियम के विरुद्ध तबादला किया है। तत्कालीन केंद्रीय मंत्री के सचिव के पैड पर तबादले के लिए दबाव दिया गया था। हाइकोर्ट ने साक्ष्यों के आधार पर इसको सही पाकर कुलपति के तबादला आदेश को रद कर दिया है। हाइकोर्ट ने इस केस के सिलसिले में विभिन्न मुकदमों का हवाला भी दिया है और कहा है कि राजनीतिक पैरवी के आधार पर किसी का तबादला वैध नहीं है।

 इस मामले में तत्कालीन कुलपति प्रो. अमरेंद्र नारायण यादव से शोकॉज भी पूछा गया है। यह बात भी सामने आई कि तबादले के लिए ट्रांसफर-पोस्टिंग कमिटी से अनुशंसा भी नहीं ली गई थी। पिछले साल अप्रैल माह में हाइकोर्ट ने ट्रांसफर पर स्टे लगा दिया था। तत्कालीन कुलपति डॉ. यादव फिर भी नहीं माने और याचिकाकर्ता से इस सिलिसिले में न्यायालय के स्पष्ट ऑर्डर की मांग करने लगे।  


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