रोजगार के अभाव में युवा हो रहे भटकाव के शिकार
- कृषि ही एकमात्र साधन करोड़ों रुपये खर्च करने पर भी नहीं मिली सिचाई की सुविधा संवाद
- कृषि ही एकमात्र साधन, करोड़ों रुपये खर्च करने पर भी नहीं मिली सिचाई की सुविधा संवाद सूत्र, धरहरा (मुंगेर) : नक्सली गतिविधियों व हिसक वारदातों के कारण हमेशा सुर्खियों में रहने वाला धरहरा प्रखंड में रोजगार के अभाव में युवा भटकाव का शिकार हो रहे हैं। कृषि कार्य छोड़ कर यहां रोजगार के कोई साधन नहीं है। रोजगार के लिए युवा या तो दूसरे प्रदेश की ओर पलायन कर जाते हैं या भटकाव का शिकार हो जाते हैं। वर्ष 2000 में नक्सलियों ने धरहरा में दस्तक दी। 02 जुलाई 2011 को धरहरा थाना क्षेत्र के बंगलवा पंचायत के आदिवासी बाहुल्य करेली गांव में नक्सलियों ने छह ग्रामीणों की हत्या कर दी। इस घटना के बाद पुलिस प्रशासन कुछ सजग हुई। नक्सलियों से आम जनता की सुरक्षा के करैली, सराधी, कुमारपुर में पुलिस पिकेट की स्थापना के साथ ही नक्सल प्रभावित महगामा पंचायत के लड़ैयाटाड़ में थाना की स्थापना की गई। सुरक्षा मुहैया कराए जाने और जिला और पुलिस प्रशासन की पहल के बाद यहां के युवाओं का नक्सली के प्रति मोहभंग हुआ है। लेकिन, रोजगार के संकट युवाओं के लिए सबसे बड़ी समस्या है। यहां कृषि कार्य छोड़ कर रोजगार का कोई और साधन नहीं है। मनरेगा भी युवाओं को रोजगार मुहैया कराने में विफल साबित हुआ।
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योजनाएं होती रही फ्लॉप :
बंगलवा कोल क्षेत्र में रोजगार उपलब्ध कराने के उद्देश्य से कालीन उद्योग की स्थापना की गई। लाखों रुपये की लगत भवन का निर्माण कराया गया। उद्योग चालू करने के नाम पर लाखों रुपये आवंटित किया गया। लेकिन, यह योजना टांय-टांय फिस्स साबित हुआ। वर्तमान में इस भवन का मरम्मत कर अस्पताल संचालित किया जा रहा है। धरहरा वन क्षेत्रों में स्लेट बनाने का उन्नत किस्म का पत्थर पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है। पूर्व में इस पत्थर से यहां स्लेट का निर्माण कराया जाता था। यहां से निर्मित स्लेट को रेल मार्ग से बिहार के साथ ही अन्य राज्यों को आपूर्ति की जाती थी। कालांतर में यह उद्योग भी पत्थर उत्खनन की अनुमति नहीं मिलने के कारण बंद हो गया। पत्थर उत्खनन पर रोक लगने से हजारों लोगों को रोजगार छिन गया।
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सिचाई योजना भी नहीं हुई सफल :
सतघरवा जलाशय परियोजना के पुनर्निर्माण में सात करोड़ रुपये खर्च करने के बावजूद निर्माण कार्य अधर में लटका हुआ है। ऐसे विभाग की नजरों में यह कार्य पूर्ण हो गया है। करोड़ों खर्च के बावजूद किसानों के खेतों में पानी नहीं पहुंच पाया है। ऐसे में किसान अब भी भगवान भरोसे खेती करने को विवश हैं।