नहाय खाय के साथ छठ पूजा शुरू, आज है खरना
जागरण संवाददाता, मुंगेर: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा नहाय खाय के साथ रविवार से शुरू हो
जागरण संवाददाता, मुंगेर: लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा नहाय खाय के साथ रविवार से शुरू हो गया। रविवार की सुबह श्रद्धालुओं ने गंगा घाट पर स्नान किया। इसके बाद कद्दू भात प्रसाद के रूप में ग्रहण किया। रविवार सुबह से ही गंगा स्नान के लिए व्रतियों का रैला शहर के विभिन्न घाटों पर उमड़ा पड़ा। ज्योतिषाचार्य अविनाश ने कहा कि सोमवार 12 नवंबर को खरना और मंगलवार 13 नवंबर की शाम को सूर्य भगवान को पहला सायंकालीन अर्घ्य और बुधवार यानी 14 नवंबर की सुबह प्रात: कालीन अर्घ्य दिया जाएगा।
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प्रकृति की पूजा है छठ
यह प्रकृति पूजा है। ब्रम्हांड के साक्षात देवता सूर्य की पूजा इसमें होती है। सूर्य से ही संसार में सृष्टि एवं सजीव को जीवन मिलता है। लोक आस्था का महापर्व छठ पूजा में प्रकृति द्वारा उत्पन्न पहली फसल के अनाज से बने पकवान सूप में रखकर सूर्य को अर्पित किया जाता है । ज्योतिषाचार्य ने बताया कि यह पर्व ईश्वर के प्रति लोगों के कृतज्ञता के भाव को भी दर्शाता है। आज भी भारत में अनाज पहले ईश्वर को अर्पण करने के बाद लोग खुद ग्रहण करते हैं। उन्होंने कहा कि फसल की पहली उपज जैसे गन्ना ,सुथनी, मूली ,कच्चा हल्दी ,गेहूं से बनाने वाला ठेकुआ , अन्य अन्न को सबसे पहले सूर्य को अर्पित किया जाता है।
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कब होती है छठ पूजा
छठ पूजा का पर्व सूर्य देव की आराधना के लिए मनाया जाता है । यह साल में दो बार चैत्र शुक्ल षष्ठी और कार्तिक शुक्ल षष्ठी तिथियों को मानया जाता है। ज्योतिषाचार्य अविनाश ने कहा कि इनमें से कार्तिक की छठ पूजा का विशेष महत्व माना जाता है। 4 दिनों तक चलने वाले इस पर्व को छठ पूजा, डाला छठ, छठी माई पूजा, सूर्य षष्ठी पूजा आदि कई नामों से बुलाया एवं जाना जाता है ।
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क्यों होती है छठ पूजा
ज्योतिषाचार्य ने कहा कि शास्त्रों के अनुसार छठ पूजा और उपवास मुख्य रूप से सूर्य देव की आराधना से उनकी कृपा पाने के लिए होता है । ऐसी मान्यता है कि सूर्य देव की कृपा हो जाए तो हर काम सफल हो जाता है एवं धन-धान्य की प्राप्ति होती है। हालांकि ऐसा भी माना जाता है कि छठ माई की कृपा से संतान प्राप्त होती है । इस पूजा और उपवास से सारी मनोकामना पूर्ण होती है
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माता सीता और कुंती ने भी किया था छठ
उन्होंने कहा कि पौराणिक मान्यताओं के अनुसार छठ माता को सूर्य देव की बहन भी माना जाता है। वही छठ पूजा या व्रत की एक कथा के अनुसार छठ देवी को ईश्वर की पुत्री देवसेना माना गया है। देवसेना के बारे में बताते हुए कई स्थान पर उन्हीं के हवाले से कहा गया है कि प्रकृति की मूल प्रवृत्ति के छठ में अंश से उत्पन्न हुई है यही कारण है कि वे षष्ठी कहलाईं । कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उनकी आराधना करने वालों को विधि विधान से पूजा करने पर संतान की प्राप्ति होती है। पौराणिक कथाओं के अनुसार माने तो भगवान श्री राम ने अयोध्या वापस आने के बाद सीता के साथ कार्तिक शुक्ल षष्ठी को सूर्योपासना की थी। इसी तरह महाभारत काल में कुंती द्वारा सूर्य की पूजा की गई थी।